Guneet Monga Inspirational Story : वो हर भारतीय के लिए ऐतिहासिक पल था, जब गुनीत मोंगा द्वारा प्रोड्यूस की गई और कार्तिकी गोंसाल्वेस द्वारा डायरेक्ट की गई फ़िल्म ‘द एलिफ़ेंट व्हिस्परर्स’ (The Elephant Whisperers) ने 95वें एकादमी अवार्ड्स में बेस्ट डाक्यूमेंट्री शॉर्ट फ़िल्म का अवार्ड जीता. ये इंडियन प्रोडक्शन की ऐसी पहली मूवी है, जिसे ऑस्कर मिला है. लेकिन ये जीत गुनीत मोंगा के लिए एक्स्ट्रा स्पेशल है, क्योंकि एआर रहमान के बाद वो दूसरी ऐसी भारतीय हैं, जिन्होंने दो ऑस्कर्स जीते हैं. साल 2019 में गुनीत मोंगा की डाक्यूमेंट्री ‘पीरियड. एंड ऑफ़ संटेंस’ को डाक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट में ऑस्कर अवार्ड मिला था.
हालांकि, गुनीत का ऑस्कर तक का सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं था. आइए आपको गुनीत की इंस्पिरेशनल कहानी के बारे में थोड़ा डीटेल में बताते हैं.
बेहद गरीबी में बीता बचपन
हाल ही में गुनीत मोंगा ने एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने अपने संघर्षों के बारे में बात की थी. उन्होंने बताया था कि कैसे उन्होंने अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए अपनी प्रतिकूलता के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी. इतनी यंग एज में अपने पेरेंट्स को खोने से लेकर सड़कों पर पनीर बेचने तक, गुनीत की कहानी आपको अपने सपनों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करेगी.
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बचपन में मां को जिंदा जलाने की कोशिश की गई
उन्होंने अपने बचपन के संघर्षों के बारे में बात करते हुए इंटरव्यू में बताया, “मैंने उधार के सपनों का जीवन जिया है. मैं दिल्ली की एक पंजाबी मिडिल क्लास फ़ैमिली में पली-बढ़ी हूं. दुनिया के सामने हम ख़ुश थे-लेकिन किसी को नहीं पता था कि उन बंद दरवाज़ों के पीछे क्या होता था. मेरी फ़ैमिली को एक बड़े से घर में सिर्फ़ एक कमरा दिया गया था. मेरे भाइयों के बीच में प्रॉपर्टी के चलते झगड़ा होने की वजह से मेरी मां को दबाया गया. वो उन्हें गाली देते थे. एक बार तो ये झगड़ा इस पॉइंट पर पहुंच गया, जहां उन्होंने मेरी मां को ज़िन्दा जलाने की कोशिश की. मेरे पिता ने पुलिस को कॉल किया, हमें पकड़ा और वहां से भाग गए.”
बेहद कम उम्र में शुरू किया काम
गुनीत ने बेहद जल्दी काम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने अपने भाइयों से अलग होकर खुद के लिए एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत की. उनकी मां का सपना था कि उनका ग्राउंड फ़्लोर पर 3 बेडरूम का घर होगा. गुनीत अपनी मां का ये सपना पूरा करना चाहती थीं. 16 की उम्र में उन्होंने अपना स्कूल का काम बैलेंस करते हुए सड़कों पर पनीर बेचना शुरू किया. वो PVR में अनाउंसर बनी, DJ और एंकर की भी नौकरी की. कॉलेज में फ़िल्मों में काम करने के लिए वो मुंबई आने लगीं. वहां वो कोऑर्डिनेटर से एक प्रोडक्शन मैनेजर बनीं. जो भी वो कमाती थीं, इस दौरान वो सब कुछ अपने पेरेंट्स को दे देती थीं.
जब चीज़ों ने लिए एक भयानक मोड़
काफ़ी कड़ी मेहनत के बाद, गुनीत की फ़ैमिली ने एक घर बुक किया. हालांकि, जब तक घर बनकर तैयार हुआ, तब गुनीत ने 6 महीने के अंतराल में अपने दोनों पेरेंट्स को खो दिया. उनकी मां के गले में कैंसर हो गया था और उनके पिता की किडनी फेल हो गई, जिसके चलते उनके दोनों पेरेंट्स इस दुनिया से चल बसे थे.
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पेरेंट्स को खोने के बाद गुनीत ने किया मुंबई का रुख
गुनीत की दुनिया मानों उजड़ सी गई थी. ज़िन्दगी में बदलाव के लिए उन्होंने अपना दिल्ली वाला घर बेच दिया और काम के लिए मुंबई चली गई. उन्होंने अपनी मेहनत फ़िल्मों में लगाई. इसके बाद उनके सपने उनके डायरेक्टर के सपने बन गए. वो उस दौरान दिन में सिर्फ़ 4 घंटे सोती थीं. उनके लिए हर एक फ़िल्म एक चैलेन्ज की तरह होती थी. गुनीत ने अपने इंटरव्यू में बताया, “मुझे याद है कि मेरे पिता ने अपना सोने का कड़ा मुझे मेरी USA की पहली स्कूल की ट्रिप पर भेजने के लिए बेच दिया था. वो चाहते थे कि मैं दुनिया देखूं, भले ही उनके लिए ये कितना ही चैलेंजिंग क्यूं ना था.”
अपने पेरेंट्स को हर मोमेंट में याद करती हैं गुनीत
अपने पेरेंट्स को याद करते हुए गुनीत ने कहा, “मेरे ख़ुशहाल दिनों में चाहे वो ऑस्कर हो या चाहे जब हमने ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ या ‘द लंचबॉक्स’ हो, या जब मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस लॉन्च किया हो. मैं यही चाहती थी कि मेरे पेरेंट्स मेरे साथ हों. लेकिन मुझे पता है कि वो जहां भी हैं, शांति में हैं. किसी दिन मैं उनसे फिर से मिलूंगी. लेकिन अभी के लिए मैं ज़िन्दगी के अच्छे मोमेंट्स उनके लिए इक्कठा कर रही हूं. मैं उम्मीद करती हूं कि वो इस बात पर गर्व महसूस कर रहे होंगे कि मैंने आख़िरकार उधारी के सपने लेना छोड़ दिया है. मैं अपनी ख़ुद की व्यक्ति हूं और मुझे लगता है कि ये अपने आप में एक सच होने जैसा है.”
गुनीत के अचीवमेंट्स ने पूरे देश को गर्व से भर दिया है.