अगर कॉमेंटरी गेंदबाज़ों की Malcolm Marshall होती, तो हर्षा भोगले कॉमेंटरी बॉक्स के राहुल द्रविड़!

Akanksha Thapliyal

क्रिकेट देखने के शौक़ीन हैं, तो कॉमेंटरी भी पसंद करते होंगे. अच्छी कॉमेंटरी पसंद करते हैं, तो हर्षा भोगले को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाए होंगे.

क्रिकेट में जो ओहदा सचिन, द्रविड़ का है, वो कॉमेंटरी के खेमे में हर्षा भोगले का.

The Hindu

पिछले कई सालों से अपनी हाज़िरजवाबी, क्रिकेट पर अच्छी पकड़ और इस खेल के लिए प्यार को अपनी कॉमेंटरी में दर्शा रहे हैं हर्षा भोगले.

शोर और कमेंटरी में फ़र्क होता है

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कॉमेंटरी की वैल्यू, उसकी फ़ील समझने वाले इतना जानते होंगे कि ‘दोहे’ और ‘तुकबंदी’ मार लेने से कॉमेंटरी नहीं होती और न ही ‘भारी शब्दों को बार-बार रिपीट’ कर ये होती है. मैदान पर जो रहा है, उसे सीधा-सीधा बताना भी कॉमेंटरी नहीं होती. ये तब होती है जब एक पैशनेट फ़ैन की तरह आप मैदान पर मौजूद उस इमोशन को पकड़ पाएं. हर्षा भोगले ये करने में माहिर हैं.

वरना वो द्रविड़ के लिए ये न कहते:

सचिन के लिए दुनिया ने बहुत कुछ कहा है, ये सिर्फ़ क्रिकेट को चाहने वाला कह सकता था:

एक क्रिकेटर खेल को अच्छे से समझता है, लेकिन उतनी ही बारीकी से उसे शब्दों में पिरो दे, ये ज़रूरी नहीं. इसलिए कॉमेंटरी बॉक्स में आज क्रिकेटर्स की भीड़ के बीच वो अपनी क्लास दिखा देते हैं. 

ये बहुत स्वाभाविक है कि क्रिकेटर रिटायरमेंट के बाद कॉमेंटरी करने लगे, और ऐसा हो भी रहा है. जाने-पहचाने चेहरों को सुनने की उत्सुकता एक अलग चीज़ होती है, लेकिन वो ज़्यादा समय तक नहीं रहती.

ख़ास कर हिंदी कॉमेंटरी में, जहां ज़्यादातर पूर्व क्रिकेटर्स की भरमार है. सहवाग को सुनना एक अच्छा अनुभव था, लेकिन शुरुआत में. उसके बाद उनके शब्द, समझ से बाहर हो कर शोर का हिस्सा बन गए.

GQ

हर्षा भोगले, जो कि ज़्यादातर कॉमेंटरी इंग्लिश में करते हैं, उन्हें हिंदी में भी सुनना उतना ही अच्छा लगता है. मुझे याद है बचपन में हम इंग्लिश में Geoffrey Boycott को सुना करते थे. इस इंसान को सुनने का मतलब था क्रिकेट से जुड़ी हर नॉलेज का मिलना. उनके बोलने के तरीके, टीम्स की आलोचना, गेम के हर पहलू पर बात करना, ये सब एक फ़ैन के ज्ञान के भंडार को बढ़ाते थे. हिंदी में ये काम अरुण लाल करते थे. यहां देखना होगा कि ये दोनों ही पूर्व खिलाड़ी थे और गेम की समझ रखते थे. लेकिन एक नॉन-क्रिकेट बैकग्राउंड से आये आदमी का खेल के लिए इतनी समझ होना, ये साबित करता है कि उसे खेल से प्यार है. और ये वही आदमी था, जिसने धोनी को नंबर 4 पर भेजने का सुझाव दिया था. Rest is History.

अगर हर्षा को पसंद करने वाले हैं, तो निष्पक्ष होने के लिए उन्हें ग़लत मानने वाले भी. कई सेलेब्स, क्रिकेटर्स के हिसाब से हर्षा भारतीय टीम की साइड नहीं लेते, जो कि ग़लत है. एक कॉमेंटेटर का काम किसी टीम की साइड लेना नहीं होता, उसका काम खेल के प्रति निष्पक्ष रहना होता है और हर्षा भोगले ये काम अच्छे से कर रहे हैं. शोर शराबे और जिस नौटंकी की जगह कॉमेंटरी बॉक्स बन गया है, वहां असली जगह हर्षा भोगले की है.

अपने ये किस्सा तो सुना ही होगा:

Geoffrey Boycott ने कमेंटरी रूम में कहा, ‘सचिन भले ही महान बल्लेबाज़ हैं, लेकिन उनका नाम कभी भी लॉर्ड्स के ऑनर बोर्ड पर नहीं आ पाया.’ हर्षा ने जवाब दिया, ‘तो किसका नुकसान हुआ? सचिन का या लॉर्ड्स का?’ 

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