हर फ़्राइडे हॉल में मूवी देखने वालों, क्या आप जानते हैं कि थियेटर की स्क्रीन काम कैसे करती है?

Akanksha Tiwari

अगर आप मूवी लवर हैं, तो थिएटर में फ़िल्म देखने भी जाते ही होंगे. अब हममें से ज़्यादातर लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें सिर्फ़ फ़िल्म देखने से मतलब होता है न कि ह़ॉल में लगी स्क्रीन से. अच्छा अगर आप से पूछा जाए कि थिएटर में लगी स्क्रीन को देख कर आपके मन में क्या ख़्याल आता है, तो आपके ज़हन में एक बड़ी सिल्वर कलर की स्क्रीन की छवि उतर आएगी. पर असल में ऐसा नहीं होता है, कई मामलों में मूवी स्क्रीन में बहुत सारी डिवाइसेज़ लगी होती हैं. इसके साथ ही इसके निर्माण में तरह-तरह की टेक्नोलॉजी और डिज़ाइन का इस्तेमाल किया जाता है.

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Light Reflection के अनुसार, ये चार प्रकार की होती हैं :

1. Matte White : मैटी वाइट स्क्रीन पर ब्लैक कलर का इस्तेमाल करने से वो डार्क ग्रे रंग में परिवर्तित हो जाती है, जिसकी वजह से सिर्फ़ 5 प्रतिशत रिफ़लैक्शन होता और हमें इमेज़ साफ़ नहीं दिखाई देती.

2. Pearlescent : इसमें काले रंग का उपयोग करने पर 15 प्रतिशत रिफ़लैक्शन होता है, क्योंकि काला रंग ग्रे में बदल जाता और ये हमें सबसे अच्छी स्क्रीन प्रदान करता है.

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3. Silver : इसमें ब्लैक कलर लाइट ग्रे में बदल जाता है, जिसकी वजह से 30 प्रतिशत रिफ़लैक्शन होता है, जिससे हमें ब्राइट स्क्रीन दिखाई देती है.

4. Glass Bead : इसमें ब्लैक कलर लाइट ग्रे में बदल जाता है, जिसकी वजह से 40 प्रतिशत रिफ़लैक्शन होता है, और हमें ब्राइट स्क्रीन दिखाई देती है. इसे विशेष परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाता है.

वैसे ज़्यादातर स्क्रीन के लिए Pearlescent का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा मूवी स्क्रीन्स डिज़ाइन करते वक़्त सिर्फ़ उसकी छवि ही नहीं, बल्कि थिएटर की ध्वनि को भी ध्यान में रखा जाता है. अधिकांश स्क्रीन में छोटे-छोटे से छेद होते हैं, ताकि दर्शकों को स्क्रीन के पीछे से भी आवाज़ सुनाई दे. वैसे Typical थिएटर में आपको स्क्रीन के पीछे तीन स्पीकर लगे हुए मिलेंगे, जो कि एक उचित दूरी पर स्थित होते हैं. Reflectivity के साथ-साथ थिएटर मालिकों के पास Flat screen, Horizontal-Curve Screen और Torex screen चुनने का भी ऑप्शन होता है.

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इसके साथ ही थिएटर में एक और बड़ा बदलाव आया और वो था सिटिंग अरेंजमेंट. पहले के समय में लोग फ़िल्म एक लाइन में बैठ कर देखते थे, जिससे उनको स्क्रीन के बजाए सामने वाला व्यक्ति दिखाई देता था. लोगों की इसी परेशानी का हल निकालने के लिए थिएटर के सिटिंग अरेंजमेंट को बदलते हुए, उसे स्टेडियम की तरह बना दिया गया, जिससे कि लोग आसानी से फ़िल्म देख सकें और हर Row में करीब 12 से 15 फ़ीट का अंतर होता है.

अब यहां सवाल ये है कि किस Row में बैठ कर अच्छे से मूवी का आनंद लिया जा सकता है, तो इसके लिए आपको थिएटर के बैक से दूसरी या तीसरी Row चुननी चाहिए, ताकि आपको स्क्रीन पर सब साफ़-साफ़ दिखाई दे और फ़िल्म की आवाज़ भी सही से सुनाई दे.

Source : howstuffworks

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