क़िस्सा: जब ओमप्रकाश को ट्रेन में बैठने के लिए अंग्रेज़ों के सामने करनी पड़ी थी गूंगे की एक्टिंग

J P Gupta

हिंदी सिनेमा के महान कलाकार थे ओमप्रकाश. उन्होंने अपनी कमाल की कॉमिक टाइमिंग-मिमिक्री और एक्टिंग से हमेशा लोगों को चकित किया है. उन्होंने लगभग 350 फ़िल्मों में काम किया है. इनमें ‘पड़ोसन’, ‘जूली’, ‘चुपके-चुपके’, ‘बैराग’, ‘शराबी’, ‘नमक हलाल’, ‘प्यार किए जा’, ‘खानदान’, ‘चौकीदार’, ‘लावारिस’, ‘आंधी’, ‘लोफर’, ‘ज़ंजीर’ जैसी फ़िल्मों के नाम शामिल हैं.

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फ़िल्मों में भले ही उन्होंने चरित्र भूमिकाएं ही निभाई हों, लेकिन उनकी अदाकारी के सामने बड़े-बड़े स्टार भी भौचक्के रह जाते थे. फिर चाहे बात नमक हलाल में अमिताभ के द्दू की हो या फिर पूरब पश्चिम में एक लाचार ससुर की.

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पर्दे पर तो वो उम्दा एक्टिंग करते ही थे, असल ज़िंदगी में भी परिस्थिति के हिसाब से कमाल का अभिनय कर जाते थे. अभिनय भी ऐसा की लोगों को पता भी न चले कि वो अभिनय कर रहे हैं. ओमप्रकाश जी की ज़िंदगी से जुड़ा ऐसा ही एक क़िस्सा आज हम आपके लिए लेकर आए हैं. बात उन दिनों की है जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था और भारत से भी फ़ौज को जंग लड़ने के लिए भेजा जा रहा था.

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किसी काम से ओमप्रकाश जी को लाहौर से रावलपिंडी जाना था. मगर करें क्या? सारी रेलगाड़ियां फ़ौजियों से ठसाठस भरी हुई थीं. उन्होंने थर्ड क्लास का टिकट लिया और ट्रेन में अपने लिए जगह तलाशने लगे. काफ़ी मशक्कत के बाद जब उन्हें तीसरे और दूसरी क्लास में जगह नहीं मिली तो ओमप्रकाश जी ने पहले दर्ज़े का रुख किया. यहां कुछ अंग्रेज़ फ़ौजी अफ़सर बैठे हुए थे, गाड़ी चलने वाली थी इसलिए वो उस डिब्बे में घुस गए.

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अब अंग्रेज़ अफ़सर आपस में अंग्रेज़ी में गिटपिट करने लगे. शायद वो उन्हें ऐसा करने के लिए कोस रहे थे. अब ओमप्रकाश जी को अंग्रेज़ी नहीं आती थी. इसलिए उन्होंने स्थिति को संभालने के लिए एक गूंगे की एक्टिंग करने का फ़ैसला किया. इस तरह इज़्ज़त भी बच जाएगी और सफ़र करने को भी मिल जाएगा.

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तब ओमप्रकाश जी ने गूंगे की ऐसी एक्टिंग कि अंग्रेज़ अफ़सर भी चकमा खा गए. उन लोगों ने ओमप्रकाश जी को सफ़र करने दिया औैर साथ में खाने-पीने का सामान भी ऑफ़र किया. जब रावलपिंडी आने वाला था तो उन्होंने ओमप्रकाश जी से पूछा क्या वो जन्म से ही गूंगे हैं. तब उन्होंने सिर हिलाकर ऐसा जवाब दिया कि वो लोग समझ ही नहीं पाए कि वो असल में गूंगे हैं या नहीं?

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ख़ैर, उनका स्टेशन आया और वो चलते बने. बेचारे अंग्रेज़ अफ़सर समझ ही नहीं पाए कि वो एक्टिंग कर रहे थे. शायद यही वजह है कि उनके जाने के इतने दिनों बाद भी कला जगत में आज भी उनका नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है.

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