मशहूर शायर जां-निसार अख्तर ने नज़्मों में लिखे थे ऐसे एहसास, जो समय के चक्र में भी पुराने नहीं हुए

Komal

जां-निसार अख्तर 20वीं सदी के एक उर्दू शायर, गीतकार और कवि थे. प्रगतिशील लेखक आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे जां-निसार ने हिंदी फ़िल्मों के लिए भी गाने लिखे. जां-निसार अख्तर को कलम की जादूगरी का हुनर विरासत में ही मिला होगा. उनका ताल्लुक शायरों के परिवार से था. उनके परदादा ’फ़ज़्ले हक़ खैराबादी’ ने मिर्ज़ा गालिब के कहने पर उनके ‘दीवान’ का संपादन किया था.

1955 में आई फ़िल्म ’यासमीन’ से जां-निसार के फ़िल्मी करियर ने गति पकड़ी, तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. फिल्मों के लिए लिखे गये उनके लिखे प्रसिद्ध गीतों में ’आंखों ही आंखों में इशारा हो गया’, ’ग़रीब जान के हमको न तुम दगा देना’, ’ये दिल और उनकी निगाहों के साये’, ’आप यूं फासलों से गुज़रते रहे’, ’आ जा रे ओ नूरी’ जैसे गीत शामिल हैं. कमाल अमरोही की फिल्म ’रज़िया सुल्तान’ के लिए लिखा गया गीत ’ऐ दिले नादां’ उनका आखिरी गीत था. आज उनके बेटे जावेद अख्तर शायरी की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिंदी फ़िल्मों में गीत लिख रहे हैं.

1935 से 1970 के दरमियान लिखी गई उनकी शायरी के संकलन “ख़ाक़-ए-दिल” के लिए उन्हें 1976 का साहित्य अकादमी पुरुस्कार प्राप्त हुआ था. आइये आज जां-निसार अख्तर के जन्मदिन पर याद करते हैं उनकी लिखी कुछ खूबसूरत नज़्में.

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