क़िस्सा: जब जितेंद्र के पास नहीं था कोई काम, मजबूरी में निभाना पड़ा था हीरोइन वाला क़िरदार

Abhay Sinha

बॉलीवुड (Bollywood) में काम मिलना हमेशा से ही मुश्किल रहा है. देशभर के तमाम युवा हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनना चाहते हैं, मगर हर एक का ख़्वाब पूरा नहीं होता. कुछ लंबे वक़्त तक स्ट्रगल नहींं कर पाते. किसी को स्ट्रगल करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं होता. बहुत कम होते हैं, जिनका नसीब उनकी मेहनत से चमक जाता है. बॉलीवुड में ‘जंपिंग जैक’ नाम से मशहूर जितेंद्र (Jeetendra) की फ़िल्मों में एंट्री भी नसीब और मेहनत के इर्द-गिर्द घूमती है.

cinebuster

ये भी पढ़ें: क़िस्सा बॉलीवुड के उस महान म्यूज़िक कंपोज़र का, जिसे शादी के लिये बनना पड़ा था टेलर

दरअसल, आज हम आपको जितेंद्र के फ़िल्मी सफ़र से जुड़ा वो रोचक क़िस्सा बताने जा रहे हैं, जब उन्हें एक हीरोइन वाला क़िरदार निभाने को मजबूर होना पड़ा था. 

ये बात 60 के दशक की है, जब जितेंद्र बॉलीवुड में एंट्री के लिये संघर्ष कर रहे थे. वो फ़िल्मों में हीरो बनना चाहते थे. इसी दौरान उन्हें एक फ़िल्म का ऑफ़र मिला. ये फ़िल्म ‘नवरंग’ (1959) थी. इसे उस ज़माने के मशहूर डायरेक्टर वी. शांताराम डायरेक्ट कर रहे थे. 

catchnews

जितेंद्र को जब ये फ़िल्म ऑफ़र हुई, तो वो बहुत ख़ुश थे. उन्हें लगा कि उन्हें बतौर लीड रोल फ़िल्म ऑफ़र हुई है. मगर उनकी ये ख़ुशी ज़्यादा देर नहीं टिकी. उन्हें मालूम पड़ा कि उन्हें फ़िल्म में हीरो नहीं, बल्कि हीरोइन के ‘बॉडी डबल’ का रोल करना है. 

pinterest

जितेंद्र के लिये ये ख़बर किसी झटके से कम नहीं थी. हालांकि, वो इतने बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने का मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते थे. ऐसे में भले ही उनका कोई सीधा फ़िल्म में रोल नहीं था, फिर भी वो हीरोइन के बॉडी डबल के तौर पर काम करने को तैयार हो गये. 

दरअसल, जितेंद्र ने वी. शांताराम से जुड़ा एक क़िस्सा बताया कि, ‘हम बीकानेर में शूटिंग कर रहे थे. वी. शांताराम को लेट-लतीफी पसंद नहीं थी. मैं रात के खाने के लिए देर से पहुंचा तो वो गु़्स्सा हो गये. उन्होंने प्रोडक्शन को मुझे वापस भेजने को कह दिया. उन्होंने मेरे मेकअप मैन से कहा कि मुझे अगले दिन की शूटिंग के लिए तैयार न करें.’ 

जितेंद्र ने बताया कि ‘अगली सुबह मैं 5 बजे उठा और अपने मेकअप मैन से मुझे तैयार करने का अनुरोध किया. मैं रोते हुए वी. शांताराम के कमरे में गया. वो मुझे इस तरह से तैयार देख काफ़ी प्रभावित हुए. तब से, मैंने उन्हें खुश करने का कोई मौका नहीं छोड़ा. मैं उनकी चमचागिरी करता और जो कुछ उन्होंने कहा वो मैंने किया. इसलिए मैं संध्या के लिए बॉडी डबल भी बन गया.’

upvartanews

बता दें, ये फ़िल्म काफी हिट रही, लेकिन जितेंद्र के करियर को इससे कोई फायदा नहीं हुआ था. जितेंद्र का संघर्ष इसके बाद भी चला. 1964 में उन्होंंने ‘गीत गाया पत्थरों ने’ फ़िल्म की, मगर फ़्लॉप हो गये. फिर 1967 में आई ‘फ़र्ज़’ फ़िल्म से वो एक सुपरस्टार बने. इसी फ़िल्म में उनके द्वारा सफ़ेद जूते और टी-शर्ट पहनी गयी थी, जो बाद में उनका ट्रेडमार्क बन गयी.

आपको ये भी पसंद आएगा
जानिए आख़िर क्या वजह थी, जब 53 साल पहले सरकार ने बैन कर दिया था ‘Dum Maro Dum’ सॉन्ग
2024 में बॉलीवुड के ये 7 स्टार्स इंडस्ट्री में करने जा रहे हैं धमाकेदार कमबैक
Year Ender 2023: ‘डंकी’ और ‘सालार’ ही नहीं, इस साल इन फ़िल्मों की भी हुई थी बॉक्स ऑफ़िस पर टक्कर
‘Salaar’ ने एडवांस बुकिंग में तोड़ा ‘Dunki’ का रिकॉर्ड, USA में हुई ताबड़तोड़ एडवांस बुकिंग
ऋषि कपूर और नीतू कपूर का 43 साल पुराना वेडिंग कार्ड हुआ Viral! जानिए कैसी थी उनकी प्रेम कहानी
पहचान कौन! वो साउथ इंडियन एक्ट्रेस जिसे डायरेक्टर ने बोला दिया था कि पहले “लड़कियों जैसी लचक लाओ”