साल 2015 में रिलीज़ हुई तेलुगु फ़िल्म बाहुबली (Baahubali) ने हिंदी सिनेमा के दर्शकों को अपना दीवाना बना लिया था. अपनी शानदार कहानी, दमदार डायलॉग और बेहतरीन स्क्रीनप्ले की वजह से ‘बाहुबली’ नॉर्थ इंडिया में साउथ की सबसे सफल फ़िल्म बनी थी. इस फ़िल्म ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. फ़िल्म की कई ख़ूबियां थीं, इनमें एक ख़ूबी इसकी क्रिएटिविटी भी थी. अपने वर्ल्ड क्लास एनिमेशन से लेकर काल्पनिक भाषा तक ये फ़िल्म हर मामले में अव्वल थी.
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आज हम आपको ‘बाहुबली’ फ़िल्म के विलेन ‘कालकेय’ के लिए काल्पनिक भाषा का निर्माण करने वाले आर्टिस्ट मदन कार्की वैरामुत्तु के बारे में बताने जा रहे हैं.
मदन कार्की वैरामुत्तु (Madhan Karky Vairamuthu) लिरिक्स राइटर, स्क्रीन राइटर, रिसर्च असोसिएट, सॉफ़्टवेयर इंजीनियर और एंटरप्रेन्योर हैं. कार्की 7 बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजयता गीतकार वैरामुत्तु के बड़े बेटे हैं. वो यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड से कम्प्यूटर साइंस में पीएचडी हैं. कार्की ने इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय गिंडी में सहायक प्राध्यापक के रूप में अपने प्रोफ़ेशनल करियर की शुरुआत की थी. तमिल फ़िल्म इंडस्ट्री में आने के बाद वो गीतकार और संवाद लेखक के रूप में काम करने लगे. साल 2013 में अपने शिक्षण पेशे से इस्तीफ़ा दे दिया और फ़ुल टाइम फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़ गये.
मदन कार्की वैरामुत्तु ने इस दौरान कार्की रिसर्च फ़ाउंडेशन शैक्षिक अनुसंधान की नींव रखी. ये संस्था मुख्य रूप से लैंग्वेज कम्प्यूटिंग और लैंग्वेज लिट्रेसी पर केंद्रित है. इस सस्था के ज़रिए उन्होंने मेल्लिनम एजुकेशन की स्थापना की. ये संस्था बच्चों में सीखने के उत्साह को बढ़ाने में किए गए शैक्षिक खेल और कहानी की किताबों को विकसित करने का काम करती है. ये भारत में इस तरह की पहली संस्था है.
जब ‘बाहुबली’ फ़िल्म के लिए मिला ऑफ़र
दरअसल, एस एस राजामौली की फ़िल्म ‘बाहुबली’ में ‘कालकेय’ जनजाति की ‘किलिकि’ भाषा दिखाई गई थी. हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब फ़िल्म में किसी जनजाति के लिए काल्पनिक भाषा इस्तेमाल किया गया. इस कृत्रिम भाषा के पीछे मदन कार्की वैरामुत्तु का दिमाग़ था. ऑस्ट्रेलिया में अपने अध्ययन के दौरान बेबीसिटर का काम करते हुए उन्होंने बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए क्लिक (Click) नाम की भाषा को रची.
मदन कार्की वैरामुत्तु ने ‘बाहुबली’ फ़िल्म के लिए जो ‘किलिकि’ भाषा रची थी उसमें हिन्दी, अंग्रेज़ी, तमिल और संस्कृत आदि के शब्दों की बालभाषा भी झलकती है. इस भाषा में सात को सेवन 7 को विनो, 3 को मोवो (तमिल), 9 को नमो (संस्कृत), 10 को तमो (संस्कृत) भाषाओं से लिए गए हैं. जबकि 8 के लिए रेनो (तमिल) का तद्भव रूप दिखता है. कार्की ने इस भाषा को आधार बनाते हुए 12 स्वरों, 22 व्यंजनों और 5 ध्वन्यात्मक चटकारे (*क्ले, *त्त, *थे, *र्रऽ, क्वे) भी शामिल किया था.
मदन कार्की वैरामुत्तु ने इसके अलावा 750 शब्दों और 50 व्याकरण के नियमों वाली ‘किलिकि’ भाषा की रचना की थी. इस भाषा में पछतावे के भाव वाले शब्द नहीं रखे गए थे, क्योंकि किलिकि भाषी ये भाव प्रदर्शित ही नहीं करते. इस भाषा में विलोम शब्द ध्वनियों को उलट उच्चारण करके भी बनाया गया था. जैसे मिन (मैं) को पलट कर निम (तुम) बनाया गया था.
इसी प्रकार दिशाओं के नामों में मीकी (उत्तर), कीमी (दक्षिण), रैनै (पूर्व), नैरे (पश्चिम), कीनै (दक्षिणपश्चिम), मीनै (उत्तर-पश्चिम), कीरै (दक्षिण-पूर्व), तथा मीरै (उत्तर-पूर्व) हैं, मीक (ऊपर) एवं कीम (नीचे) जोड़कर दस दिशाएं बनाई गई थीं. इनके मध्य-केंद्र को ‘ईपे’ कहते हैं.
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