जब तक सनीमा है, तब तक लोग उससे प्रेरणा लेते रहेंगे… जैसे कि ये 21 Motivational फ़िल्में

Kundan Kumar

फ़िल्में आपको हंसाती हैं, रुलाती हैं, प्यार करना सिखाती हैं… कभी-कभी आपमें हिम्मत भरती हैं. ऐसी बहुत सी फ़िल्में हैं, जिन्हें देख आप अपने कमज़ोर लम्हों में ख़ूद को मज़बूत बना सकते हैं. इनकी कहानियां ऐसी होती हैं, कई दफ़ा हौसलों में पस्त हो चुके लोगों को दोबारा लड़ना सिखाती हैं. कुछ फ़िल्में आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती हैं. कुछ लड़ने की ताकत. कुछ जीने की आशा.

ये हैं कुछ एेसी हिन्दी फ़िल्में, जिन्हें आप ज़िंदगी की अलग-अलग परिस्थितियों में देख कर, याद कर, हालातों को बदलने की इच्छाशक्ति पैदा कर सकते हैं:

क्वीन

क्वीन एक ऐसी मध्यमवर्गीय पारिवारिक लड़की की कहानी है, जिसकी शादी टूट जाती है. इसके बाद वो अकेली हनीमून पर चली जाती है. यहां उसे कई तरह के अनुभव होते हैं. इन अनुभवों से उसके व्यक्तित्व में कई बदलाव आते हैं. ये उस बदलाव की यात्रा की कहानी है.

वेक अप सिड

सिड, एक बड़े बाप का गैर-ज़िम्मेदार बेटा. जिसके ऊपर किसी भी प्रकार की Responsibility नहीं रहीं. ज़िंदगी में हर चीज़ उसे चांदी के थाली में परोस कर मिलती है. उसकी मुलाकात एक आत्मनिर्भर लड़की से होती है. सिड उस लड़की की नज़रों से ज़िंदगी को देखता है. ये एक सीधी-सपाट फ़िल्म है, लेकिन एक सादगी है इस फ़िल्म में, जो देखने वाले को ज़रूर पसंद आती है.

दसविदानिया

एक इंसान जो लगभग अपनी आधी ज़िंदगी जी चुका है, जो वक्त का पाबंद है. सारे रोज़मर्रा के काम वक़्त पर निपटाता है. सब का ख़्याल रखता है, बस एक चीज़ नहीं करता. वो ज़िंदगी नहीं जीता, जो वो जीना चाहता है. वो अपने सारे सपने टालता जाता है. फिर एक दिन उसे पता चलता है कि उसकी ज़िंदगी ख़त्म होने वाली है.

इक़बाल

इक़बाल एक ज़िद्द की कहानी है. एक लड़ते हुए इंसान की और एक हार चुके इंसान की. गांव का एक लड़का क्रिकेटर बनना चाहता है. न वो बोल सकता है और न ही सुन सकता है. उसकी मुलाकात एक पूर्व क्रिकेटर से होती है. जो देश के सिस्टम का मारा हुआ होता है. यहां से दोनों संघर्ष के लिए चल पड़ते हैं.

इंग्लिश-विंग्लिश

एक मां जो ज़माने के साथ चलना चाहती है. इंग्लिश न आने की वजह से उसके बच्चे उससे कटने लगते हैं. पति से वो सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वो हक़दार है. इन सब की बस एक वजह, इंग्लिश का न आना.

क्रांतिवीर

ये फ़िल्म उस वक़्त की है, जब भारत में वैश्विकरण का असर दिखने लगा था. आम जनता कैसे नेताओं, मीडिया, सिस्टम के सामने घुटने टेक देती हैं. एक आम नागरिक अगर अपनी हक़ की बात करता है, तो उसे कैसे सब दबोच लेते हैं, इस बात को बेहद आक्रामकता के साथ दिखाया गया है. इस फ़िल्म के संवाद चर्चित हैं और उत्तेजना पैदा करने वाले हैं.

तारे ज़मीन पर

तारे ज़मीन पर एक ऐसे बच्चे (ईशान) की कहानी है जिसे पढ़ने में थोड़ी दिक्कत होती है. वो डिस्लेक्सिया नामक बीमारी से जूझ रहा होता है, लेकिन क्लास में अव्वल आने और आम बच्चों की तरह व्यवहार करने का दवाब उस पर बढ़ने लगता है. मां-बाप और टीचर्स के इस प्रेशर से उसने बचाने आता है एक टीचर, जो उसकी असली प्रतिभा को समझता है और उस आम से बच्चे को ख़ास बना देता है.

3 इडियट्स

इंजीनियरिंग कॉलेज में तीन लड़के रूममेट बनते है. तीनों इंजीनियर बनना चाहते थे. एक घर की ग़रीबी दूर करने के लिए, एक घर वाले के दवाब में और एक इंजीनियरिंग से प्यार करता है. इसे बॉलीवुड की अब तक की सबसे अच्छी फ़िल्मों से एक माना जाता है. प्यार, दोस्ती, खुशियां, संदेश, बॉलीवुड के गाने, ये सब हैं इस फ़िल्म में.

आनंद

ज़िंदगी कैसी होनी चाहिए, ये हम ‘आनंद’ से सीख सकते हैं. मरने का इंतज़ार करना ज़िंदगी नहीं हो सकती. मौत को गले लगाने से पहले तक ज़िंदादिली से जीना ही ज़िंदगी है. ‘आनंद’ को राजेश खन्ना की सबसे बेहतरीन फ़िल्म माना जाता है. अमिताभ बच्चन के अभिनय क्षमता को इस फ़िल्म से पहचान मिलने लगी.

स्वदेस

नासा में काम करने वाला भारतीय मूल का एक वैज्ञानिक अपने देश अपनी मुंहबोली मां को अमेरिका ले जाने के लिए आता है. यहां उसे भारत की ग़रीबी और अन्य समस्याएं दिखती हैं. वो गांव के लोगों की मदद से गांव में बिजली पैदा करना चाहता है.

मैरी कॉम

पांच बार विश्व विजेता रह चुकी भारतीय महिला मुक्केबाज़ मैरी कॉम की जीवनी पर बनी ये फ़िल्म कई स्तरों पर हमे लड़ना सिखाती है. आमतौर पर ये माना जाता है कि महिला खिलाड़ियों का करियर मां बनने का बाद ख़त्म हो जाता है. मैरी कॉम ने ऐसी सभी अवधारणाओ के अपने मुक्कों से ढाह दिया.

उड़ान

ग़लत पेरेंटिंग क्या होती है, इस फ़िल्म में साफ़-साफ़ देखी जा सकती है. रोहन अपने पिता के साथ रहता है, जो कि व्यवहार के बहुत सख़्त हैं. रोहन के भीतर एक कवि बसता है, लेकिन उसके पिता का मानना होता है कि ये सब काम लड़कों के लिए नहीं बने.

फ़िल्में समाज का आइना ज़रूर होती हैं और कुछ फ़िल्में आइना बन कर ज़िंदगियां सवांरने का काम भी कर देती हैं. रामाधिर सिंह को यहां अपना डायलॉग ठीकर करना चाहिए, जब तक सनीमा है, लोह उससे प्रेरणा लेते रहेंगे.

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