Mrs. Chatterjee Vs Norway Based on Real Story: फ़िल्म मिसेज़ चटर्जी वर्सेज़ नॉर्वे का ट्रेलर हाल ही में रिलीज़ हुआ है, जिसकी कहानी दिल दहला देने वाली है. सच्ची घटना पर आधारित ये फ़िल्म उन कपल की है, जो कोलकाता से नॉर्वे शांति से अपनी ज़िंदगी बसर करने आए थे, लेकिन शायद उनकी क़िस्मत में कुछ और ही लिखा था. चलिए इसी क्रम में हम आपको इस फ़िल्म की रियल कहानी के बारे में बताते हैं.
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चलिए विस्तार से जानतें हैं मिसेज़ चटर्जी वर्सेज़ नॉर्वे की रियल कहानी
ये कहानी अनुरूप भट्टाचार्य और सागरिका भट्टाचार्य की है, जिनके बच्चों को नॉर्वे ऑफ़ीशियल्स फ़ॉस्टर केयर (Foster Care) ले जाते हैं. साथ ही इस फ़िल्म के ट्रेलर में दिखाया गया है कि अपने बच्चों की कस्टडी (Custody) पाने के लिए एक मां कैसे दर-दर की ठोकरें खाती है. देखें ट्रेलर-
Mrs. Chatterjee Vs Norway Real Couple: इस फ़िल्म में दिखाया गया है कि 2007 में इन कपल ने शादी की थी और अपनी शादी शुदा ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए वो नॉर्वे चले आते हैं. कुछ समय बाद उनके बच्चे होते हैं, जिसमें बेटे का नाम अभिज्ञान भट्टाचार्य और बेटी का नाम ऐश्वर्या भट्टाचार्य होता है. उनकी ज़िंदगी काफ़ी ख़ुशहाल चल रही थी कि एक हादसे ने उनकी दुनिया ही उजाड़ दी.
उनके बेटे अभिज्ञान को ‘Autism-like’ के लक्षण थे. ऑटिज़्म (Autism) एक तरह का न्यूरोलॉजिकल और डेवलपमेंट डिसऑर्डर होता है, इससे पीड़ित व्यक्ति को किसी से भी बात करने या अपने भाव प्रकट करने में दिक्कत होती है. ऐसा ही सागरिका के बेटे के साथ हुआ था. एक शाम सागरिका मज़ाक में बच्चे को एक थप्पड़ मार देती है, जिसकी ख़बर ग़लती से Norwegian Child Welfare Services (NCW) को लग जाती है.
इसके बाद ऑथॉरिटीज़ किसी भी वक़्त उनके घर पहुंच जाते थे और देखते थे कि माता-पिता उन बच्चों की ठीक से देख भाल कर रहे हैं या नहीं. लेकिन ऑथॉरिटीज़ ने ध्यान देना शुरू किया कि सागरिका अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाती थी और अपने साथ ही सुलाती भी थी, जो कई विदेशी जगहों पर ‘Bad Parenting’ माना जाता है और ऐसा करना सख़्त मना भी है.
Mrs. Chatterjee Vs Norway In Hindi: इसके बाद मई 2011 में ऑथॉरिटीज़ सागरिका और अनुरूप के बच्चे अभिज्ञान और ऐश्वर्या को ले गई और उन्हें फ़ॉस्टर केयर (Foster Care) में भर्ती करा दिया. फ़ॉस्टर केयर एक तरह की सरकारी जगह होती है, जहां उन बच्चों को रखा जाता है, जिनके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है या फिर उन्हें जिनके माता-पिता ठीक से ख्याल नहीं रख पाते हैं. साथ ही सागरिका और अनुरूप के केस में दोनों को 18 साल से पहले तक बच्चों से मिलने की अनुमति नहीं थी.
माता-पिता और ऑथॉरिटीज़ की इस लड़ाई में बच्चों की कस्टडी अनुरूप के भाई को दी गई और वो बच्चों को वापस घर ले आए.
Mrs. Chatterjee Vs Norway Case: लेकिन 2013 में कोलकाता हाई कोर्ट (Kolkata High Court) ने बच्चों की कस्टडी सागरिका को दे दी.
दरअसल, नॉर्वे उन देशों में से एक है, जहां बच्चों को लेकर काफ़ी सख़्त क़ानून बनाए गए हैं. अगर कोई उनके ख़िलाफ़ जाता है, तो उन्हें उसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं. वहां बच्चों पर हाथ उठाना ‘Illegal’ है. ये फ़िल्म थिएटर्स में 17 मार्च 2023 को रिलीज़ होगी.