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नौशाद अली का जन्म साल 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था. बचपन से ही उन्हें फ़िल्में देखने और संगीत सुनने का शौक़ था. काफ़ी स्ट्रगल के बाद उन्हें 1940 में पहला ब्रेक मिला था. ‘प्रेम नगर’ फ़िल्म से नौशाद साहब ने अपने संगीत निर्देशन की शुरुआत की. साल 1944 में आई ‘रतन’ फ़िल्म के गाने काफ़ी सफ़ल हुए. ‘अंंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’ गाना लोगों का काफ़ी पसंद आया.
मगर ये वो वक़्त था, जब फ़िल्मी सितारों को आम लोग अच्छी नज़रों से नहीं देखते थे. नौशाद साहब भी इससे अछूते नहीं थे. दरअसल, उनकी शादी के लिये जब भी रिश्ता देखा जाता तो, लड़की वाले उनके काम के कारण शादी से इन्कार कर देते. ऐसे में उनके पिता ने कहना शुरू कर दिया कि उनका लड़का मुंबई में टेलर का काम करता है.
नौशाद साहब ने भी ख़ुद को वाक़ई में ट्रेलर दिखाने के लिये बोल दिया कि ‘मैं अचकन और कुर्ता बहुत अच्छे से सिल लेता हूं.’ ये तरीका काम भी आ गया. नौशाद साहब की शादी तय हो गयी.
कहते हैं जब लखनऊ में उनके घर पर शादी हो रही थी, तब रतन फ़िल्म का गाना ‘अंंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’ लाउड स्पीकर पर बज रहा था. उसे सुन नौशाद साहब के ससुर ने कहा, ‘इस तरह के गाने इस समाज को बर्बाद कर रहे हैं. जिसने ये गाना बनाया है उसे जूतों से पीटना चाहिए.’
ये सुनकर नौशाद साहब डर गये थे. मगर कोई नहीं जानता था कि इस गाने के पीछे उनका ही दिमाग़ है. ख़ैर, किसी तरह उनकी शादी हो गयी. हालांकि, बाद में सभी लोगों को नौशाद साहब की असली पहचान मालूम पड़ गयी थी. मगर उस वक़्त तक वो देश का एक बड़ा और माना-जाना नाम बन चुके थे.
उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर में एक से बढ़कर एक संगीत दिये. ‘जब दिल ही टूट गया…’, ‘आवाज दे कहां है..’, आ जा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे…’, ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज..’, ‘गाए जा गीत मिला के…’ ,’ये जिंदगी के मेले, दुनिया में कम ना होंगे..’ ये सभी गीत हिंदी फ़िल्म संगीत की अमर विरासत का अभिन्न अंग बन गये.
नौशाद साहब पहले संगीतकार थे, जिन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 1981 में ‘दादा साहेब फाल्के’ सम्मान और साल 1992 में ‘पद्म भूषण’ से नवाज़ा गया. बता दें, साल 2006 में इस महान संगीतकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया था.