एक्टिंग के साथ-साथ खाना पकाने में भी उस्ताद थे ओम पुरी. खोलना चाहते थे ‘दाल-रोटी’ नाम का एक ढाबा

Sumit Gaur

ओम पुरी साहब को गुज़रे आज पुरे एक साल हो गए हैं. इन एक सालों के दौरान बॉलीवुड में कई फ़िल्में आई और गयीं, पर हर फ़िल्म में वो रोबदार किरदार नहीं मिला, जो ओम पुरी साहब की कमी को पूरा कर सकता. चाहे 80 के दशक का आर्ट सिनेमा वाला दौर रहा या 90s में आये कमर्शियल फ़िल्मों की रेस, ओम पुरी ने ख़ुद को सिनेमा के हर उस रूप में ढाला, जिससे पर्दे पर उनके किरदारों की अलग ही छाप पड़ी.

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ओम पुरी साहब ने करियर के दौरान हॉलीवुड-बॉलीवुड समेत कई फ़िल्मों में काम किया, पर उनकी निजी ज़िंदगी की कहानी भी किसी फ़िल्म से कम नहीं थी. ओम पुरी का जन्म अंबाला के साधारण परिवार में हुआ था, पर पिता पर रेलवे में चोरी का आरोप लगने के बाद साधारण परिवार एक गरीब परिवार में तब्दील हो गया. ओम पुरी के घर का आलम ये था कि खाने-पीने के साथ-साथ उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा. इस बीच बचपन में ही चेचक हो जाने की वजह से चेहरे पर उसके दाग ताउम्र ओम साहब के साथ जुड़ गए. इन सब हालातों के बीच 6 साल की उम्र में ओम पुरी ने एक चाय की दुकान पर गिलास धोने का काम करना शुरू किया. इसके बाद कुछ समय तक एक ढाबे पर काम करने लगे. दुकान पर काम करते हुए भी ओम पुरी ने पढ़ाई जारी रखी और कॉलेज के दरवाजे तक पहुंचे, जहां उनका परिचय थिएटर की दुनिया से हुआ. सुबह नौकरी और शाम थिएटर करते-करते ओम साहब थिएटर के मक्का कहे जाने वाले ‘एनएसडी’ पहुंचे. एनएसडी में रहने के दौरान ओम पुरी की मुलाक़ात नसीरुद्दीन शाह से हुई. ये मुलाक़ात दोस्ती में ऐसी बदली कि बॉलीवुड में आने के बाद दोनों की मिसालें दी जाने लगी.

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ओम साहब ने अपने करियर में हर उन ऊंचाइयों को छुआ, जिसे छूने का सपना लेकर हर कलाकार मुंबई आता है. इसके बावजूद उनका एक ऐसा सपना भी था, जिसे पूरा करने की ओम साहब की ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही बन कर रह गई. ओम साहब की ज़िंदगी से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा हम आपके लिए लेकर आये हैं, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं.

एक इंटरव्यू के दौरान ओम साहब ने बताया था कि ‘मैं खेती के बारे में बहुत कुछ जानता हूं और अच्छा खाना भी पकाता हूं. मैं चाहता हूं किसी दिन मैं एक ढाबा खोलूं, जिसका नाम होगा ‘दाल-रोटी’. इस ढाबे में ज़्यादा कुछ नहीं, पर हां इसमें तरह-तरह की दालें बनेंगी.’

हालांकि, ओम साहब का ये सपना बस सपना बन कर रह गया, पर इस सपने की चमक हाईवे से गुज़रते हुए किसी ढाबे को देख कर आंखों में चुंधियाने लगती है.

ऐसे ही अनसुने किस्सों को जानने के लिए पढ़ते रहिये ग़ज़ब पोस्ट. क्या पता अगली बार कुछ नया ही जानने का मौका मिल जाए!

Feature Image Source: hollywoodreporter

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