’कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा धर्म कोई नहीं होता’, इस डायलॉग को जीवन में उतारा है श्याम ने

Jayant

कहते हैं कि फ़िल्में मनोरंजन के लिए होती हैं और उनके कलाकार हमारा टाईपास करते हैं. लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता. कई ऐसी फ़िल्में भी हैं, जो हमारे दिल में और ज़हन में गहरा असर छोड़ जाती हैं. उनके डायलॉग्स हमारी ज़िंदगी के अहम हिस्से.

शाहरुख खान बहुत बड़े स्टार हैं. दुनियाभर में उनके फ़ैन्स उनकी फ़िल्म और एक झलक के दीवाने हैं. आने वाली फ़िल्म रईस के लिए लोगों के अंदर दीवानगी दिख भी रही है. लेकिन इस फ़िल्म का एक डायलॉग शायद हर किसी के दिल को झू गया.

‘कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा धर्म कोई नहीं होता’. फ़ेमस डायलॉग हर किसी को तो पसंद आया, लेकिन उसे अपनी ज़िंदगी में उतारा है सुल्लतापुर के श्याम बहादूर ने. श्याम काम-काज के लिए मुंबई में रहते हैं. इनका काम है मोची का. इन्होंने अपने दुकान के अंदर इस डायलॉग का पोस्टर बनवा कर लगाया है.

Source:  Red Chillies Entertainment

श्याम बताते हैं कि ‘मेरे पिता भी मोची थे, जो एक फ़ैक्ट्री में काम करते थे. मैं अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए मुंबई आ गया और यहां इस काम की और बारिकियां सीखीं. आज मेरे पास अपनी एक दुकान है और मैं अपने काम से काफ़ी खुश हूं’.

फ़िल्म का डायलॉग उन्हें अपनी ज़िंदगी के लिए बिलकुल फिट लगा और उन्होंने इसे अपनी ज़िंदगी जीने सा ढंग बना लिया. ये डायलॉग फ़िल्मी ज़रूर है लेकिन असल ज़िंदगी का एक बेहतरीन उदाहरण इसमें छिपा है. ख़ास कर उन लोगों के लिए जिन्हें अपना काम छोटा लगता है या उनके लिए जो काम से बड़ा सबस कुछ मानते हैं. 

Story Source: topyaps

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