अक्टूबर महीने में कई बड़ी-बड़ी बॉलीवुड हस्तियों का जन्मदिन होता है. इन्हीं में से एक 70 और 80 के दशक की अभिनेत्री स्मिता पाटिल भी हैं. स्मिता पाटिल उस दौर की अभिनेत्रियों में एक हैं, जब अभिनय को रंग-रूप से जोड़ कर देखा जाता था. पर स्मिता पाटिल ने भारतीय सिनेमा की सभी बेड़ियों को तोड़ अपनी एक नई पहचान बनाई.
स्मिता पाटिल के करियर पर ज़्यादा बातचीत करने से पहले थोड़ी सी बात उनकी पर्सनल लाइफ़ पर भी कर लेते हैं. स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को पुणे में हुआ था. उनके पिता शिवाजीराव पाटिल राजनीति का हिस्सा थे. इसके साथ ही वो सामाजिक कार्यों में भी हाथ बंटाते थे. स्मिता पाटिल की पढ़ाई एक मराठी स्कूल से हुई थी और उन्होंने करियर की शुरूआत टीवी एंकर के रूप में की थी. इसके बाद उन्होंने 1983 में ‘घुंघरू’ फ़िल्म से हिंदी सिनेमा की दुनिया में कदम रखा. यही नहीं, स्मिता पाटिल ने श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी के साथ मिलकर हिंदी सिनेमा में कई बड़े-बड़े बदलाव भी किये. जिसमें अभिनेत्री शबाना आज़मी ने उनका साथ भी दिया.
स्मिता पाटिल उन एक्ट्रेसेस में शुमार हैं, जिन्होंने अपनी अदाकारी से कई किरदारों में जान डाल दी थी. यही कारण है कि उनके कई रोल आज भी लोगों के ज़हन में बसे हुए हैं. मगर अफ़सोस इस बात का है कि उन्होंने काफ़ी कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था.
आइये उनके निभाये द्वारा कुछ किरदारों को एक बार फिर से याद करते हैं:
1. ‘निशांत’ की रुकमणी सामंती समाज में स्त्रियों की दशा को दर्शाती है.
2. ‘मंथन’ में बिंदू बन कर सबका दिल जीत लिया था.
3. ‘भूमिका’ की ऊवर्शी के रोल में उन्होंने शानदार अभिनय किया है.
4. ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ की जोन पिंटो.
5. ‘अर्थ’ की कविता सान्याल भी दर्शकों को ख़ूब अच्छी लगी थी.
6. ‘मंडी’ की ज़ीनत ने महिलाओं की आज़ादी पर ख़ूब बात की.
7. ‘मिर्च मसाला’ में सोनबाई का किरदार ज़बरदस्त था.
8. ‘हादसा’ की आशा बड्जात्य चक्रवर्ती.
9. ‘बाज़ार’ की नज़मा खुल कर ज़िंदगी जीने की चाह रखती है.
10. ‘आक्रोश’ की नागी भीकू.
स्मिता पाटिल भले ही कम समय के लिये हिंदी सिनेमा का हिस्सा रहीं, पर उन्होंने यादगार और ख़ूबसूरत रोल किये. बेहतरीन अभिनय के लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्म श्री सम्मान से भी नवाज़ा गया था.
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