प्रकाश झा: वो डायरेक्टर, जिसकी रील और रियल लाइफ़ दोनों ही लोगों को प्रेरित करती है

J P Gupta

प्रकाश झा फ़िल्म इंडस्ट्री का एक जाना पहचाना नाम हैं. वो एक कमाल के डायरेक्टर हैं, पारखी नज़र वाले प्रोड्यूसर और अब तो एक्टिंग की फ़ील्ड में भी झंडे गाड़ रहे हैं. इन तीनों में से वो जिस ख़ास चीज़ के लिए जाने जाते हैं वो है ‘लीक से हटकर फ़िल्में बनाने वाले डायरेक्टर’.

प्रकाश झा की छवि फ़िल्म इंडस्ट्री में एक ऐसे कलाकार के रूप में है जो कहानियों को रियलिस्टिक तरीके से कहना जानता है. उनकी फ़िल्में हमारे समाज में व्याप्त कुंसगतियों को उठाती हैं और उनका हल तलाशने की कोशिश करती हैं. वो कहते हैं ना कि फ़िल्में समाज का आइना होती हैं, कुछ ऐसी ही फ़िल्में बनाते हैं प्रकाश झा.

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मगर उनका फ़िल्मी सफ़र इतना आसान नहीं था. या यूं कहना चाहिए कि वो तो फ़िल्में बनाना ही नहीं चाहते थे. पर एक फ़िल्म ने उनके मन में इस फ़ील्ड में आने की चाह जगा दी. ये फ़िल्म थी धर्मा. इसके डायरेक्टर चांद अपनी इस फ़िल्म की शूटिंग दिखाने के लिए प्रकाश झा को ले गए थे.

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तब वो पुणे के फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया में पढ़ाई कर रहे थे. मगर ये तय नहीं था कि वो आगे क्या बनेंगे एक्टर या डायरेक्टर. इस फ़िल्म की शूटिंग में मशगूल लोगों की मेहनत को देख उन्होंने ये पक्का इरादा कर लिया था कि वो एक डायरेक्टर बनेंगे.

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हालांकि, बचपन में वो एक आर्मी ऑफ़िसर बनने का ख़्वाब ज़रूर देखा करते थे. पर ये कभी नहीं सोचा था कि वो फ़िल्में बनाएंगे. ख़ैर, रास्ता मिल गया था पर उस पर चलने के लिए उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ा. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो मुंबई में स्ट्रगल कर रहे थे तब कई रातें उन्हें जूहू बीच पर सो कर गुजारनी पड़ती थीं. 

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पर पक्राश झा ने भी हार नहीं मानी और 1975 में अपनी एक डॉक्यूमेंट्री से इंडस्ट्री में एक निर्देशक के रूप में अपना आगाज़ कर दिया. इसका नाम था ‘अंडर द ब्लू’. संघर्ष जारी रहा और इस बीच कई और डॉक्यूमेंट्रीज़ उन्होंने बनाईं. फिर वो दिन आया जब प्रकाश झा ने अपनी पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्ट की. फ़िल्म का नाम था ‘हिप हिप हुर्रे’ जो 1984 में रिलीज़ हई थी. मगर प्रकाश झा को पहचान फ़िल्म ‘दामुल’ से मिली, जिसमें उन्होंने एक बंधुआ मज़दूर की कहानी दिखाई थी.

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इस फ़िल्म के लिए उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. इसके बाद वो समाज को आईना दिखाने का काम करते रहे. इनमें ‘गंगाजल’, ‘अपहरण’, ‘मृत्युदंड’, ‘राजनीति’, ‘आरक्षण’ जैसी फ़िल्मों के नाम शामिल हैं. प्रकाश झा एक कमाल के पेंटर भी हैं. उन्होंने इन सर्च ऑफ़ स्काई, रोड बिल्डर्स, शेड्स ऑफ़ रेड जैसी पेंटिंग के ज़रिये अपनी इस कला का हुनर भी लोगों के सामने पेश किया है. 

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प्रकाश झा एक अच्छे निर्माता भी हैं. यहां भी उनकी पारखी नज़र देखने को मिलती है. उन्होंने ‘दिल दोस्ती इटीसी’, ‘खोया खोया चांद’, ‘टर्निंग 30’ और ‘ये साली ज़िंदगी’ जैसी अलग-अलग विषयों वाली फ़िल्में प्रोड्यूस की हैं. इसके बाद उन्होंने कई फ़िल्मों में अपनी एक्टिंग का भी उम्दा नमूना पेश किया है. इनमें जय गंगाजल और सांड की आंख जैसी फ़िल्मों के नाम शामिल हैं. इन दोनों ही फ़िल्मों में उनके द्वारा किए गए अभिनय को दर्शकों ने ख़ूब सराहा था.

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प्रकाश झा की अब तक की जर्नी पर नज़र डालें तो ये पता चलता है कि वो इंडस्ट्री के मल्टी टैलेंटेड कलाकार हैं. वो हर किसी के लिए प्रेरणा से कम नहीं हैं.

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