The Kerala Story Loopholes : सुदीप्तो सेन (Sudipto Sen) के डायरेक्शन में बनी फ़िल्म ‘द केरल स्टोरी’ रिलीज़ होने के बाद से ही चर्चाओं में है. इसमें अदा शर्मा ने लीड रोल निभाया है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मूवी ने अब तक वर्ल्डवाइड 251 करोड़ रुपए कमा लिए हैं. हर दिन के साथ मूवी की कमाई में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. हालांकि, अगर कमाई और कलेक्शन की बात को कुछ देर के लिए दूर कर दें, तो मूवी में कुछ ख़ासियत और ख़ामियां दोनों हैं. सबसे पहले आपको मूवी की स्टोरीलाइन बता देते हैं, जिसमें केरल की 3 लड़कियों के धर्म परिवर्तन से लेकर महिलाओं संग ज्यादती और उन्हें आतंकी बनाए जाने की कहानी है.
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मेकर्स का दावा है कि ये मूवी सच्ची घटनाओं पर आधारित है और एक गंभीर विषय पर रोशनी डालती है. हालांकि, मेरा मानना है कि शायद मेकर्स फ़िल्म बनाने से पहले फ़िल्ममेकिंग के उस बात को भूल गए कि ये मीडियम कितना प्रभावशाली है और आप जिस बात का चित्रण करेंगे वो ऑडियंस के मन में गहरी छाप छोड़ जाएगा.
एक मूवी में ख़ामियां भी होती हैं और ख़ासियत भी. मौजूदा समय में ज़्यादातर आप जहां भी देखेंगे, वहां आपको इस मूवी की तारीफ़ करने वाली ऑडियंस ज़्यादा मिलेगी. लेकिन अगर धर्म और नफ़रत के चश्मा निकालकर आप इस मूवी को देखने की कोशिश करेंगे तो शायद आपको इसमें कई कमियां भी दिखाई पड़ेंगी.
आज हम आपको ‘द केरल स्टोरी’ की उन्हीं कमियों के बारे में बताएंगे.
1-मूवी में स्टीरियोटाइप और लीडिंग एक्ट्रेस के बात करने का लहज़ा
बॉलीवुड इंडस्ट्री में हर एक चीज़ को स्टीरियोटाइप करने की आदत है. जैसे अगर कोई लड़की चश्मा लगाती है, तो उसे पढ़ाकू दिखा दिया जाता है. वैसा ही कुछ इस मूवी में भी देखने को मिला. बॉलीवुड में ज़्यादातर जब भी केरल का चित्रण किया जाता है, तो उसमें हाउसबोट, बालों में चमेली के फूल वाली लड़कियां और केरल कथकली जरूर दिखाया जाता है. मानो केरल इसी के बारे में है और कोई हैरानी की बात नहीं है कि सुदीप्तो सेन ने इन्हीं रूढ़ियों के साथ कहानी कहना चुना. इसके अलावा शालिनी उन्नीकृष्णन के नकली मलयाली लहज़े को कान जानबूझकर भी इग्नोर नहीं कर पाते. वो अंग्रेज़ी के वाक्य को भी नकली मलयाली लहज़े में बोलती हैं. जैसे मेकअप को मैकअप बोलते सुन गुस्सा आता है. मज़े की बात ये है कि इस नकली लहज़े को भी एक जैसा इस्तेमाल नहीं किया गया. ये अपने मन मुताबिक आता और जाता है.
2-पूरी फ़िल्म में इस्लामोफ़ोबिया (मुस्लिमों के प्रति नफ़रत)
ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी फ़िल्म को जान-बूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और केरल के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया था. फ़िल्म प्रमोशन के दौरान इसके डायरेक्टर, लीड एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर ने एक ही स्वर में कहा था कि मूवी किसी भी धर्म को टारगेट नहीं करती है. जबकि पूरी मूवी में शुरू से ही फ़ोकस जानकारी देना नहीं, बल्कि धर्म की भावनाओं को जगाना लगा. मूवी में इस्लाम की कई प्रथाएं जैसे ईद मनाना या हिजाब पहनना किसी विलेन की तरह दिखाई गई हैं. मूवी में विलेन कैरेक्टर दिखाई गई आसिफ़ा, अपनी दो दोस्तों शालिनी और गीतांजलि को हिजाब से मिलने वाली सुरक्षा के बारे में बताती है और उनका ब्रेनवाश करती है.
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3-क्या 32000 मनमुताबिक आंकड़ा?
मूवी में 32,000 लड़कियों का आंकड़ा फ़िल्ममेकर्स की सुविधा के मुताबिक आता-जाता रहता है. फ़िल्म के टीज़र पहले 32,000 दिखाया गया, फिर ट्रेलर में इसे 3 कर दिया गया. मूवी के बीच में जब पीड़ितों में से एक निमा नाम की लड़की एक भावुक भाषण देती है, उसमें भी वो 30,000 से अधिक महिलाएं ही कहती है. वो कहती है, “32,000 से ज्यादा लड़कियां लापता हैं,” और ये भी कहती हैं कि अनौपचारिक आंकड़ा 50,000 है.
4- पूरी फ़िल्म में सोशलिस्ट प्रतीकों और पश्चिमी प्रचारकों का उपहासपूर्ण ज़िक्र
इस मूवी में टारगेटेड महिलाओं में से एक गीतांजलि अपने ‘नास्तिक’ पिता से एक सीन में कहती है कि उनकी गलती की वजह से वो धार्मिक जाल में फंसी. उसने अपने पिता से कहा, “आपको मुझे और हमारी संस्कृति और धर्म के बारे में बताना चाहिए था.” अच्छा तो मतलब कम्यूनिज्म की बात इस तरह से करनी थी!
5-फ़िल्म की एंडिंग लाइन्स में भ्रमित किया गया
फ़िल्म के अंत में मेकर्स कहते हैं कि, “पिछले 10 सालों में हमने धर्म परिवर्तन के दावे को वेरीफ़ाई करने के लिए RTI एप्लीकेशन दायर की. इसके जवाब में हमें कहा गया कि www.niyamasbha.org.in पर जानकारी खोजें, लेकिन ये वेबसाइट मौजूद नहीं है.” जब मैंने गूगल सर्च किया तो पाया कि ये वेबसाइट मौजूद है. अब सवाल ये उठता है कि अगर आपने इस दावे को वेरीफ़ाई नहीं किया, तो आप इसका प्रचार क्यों कर रहे हैं? साथ ही फ़िल्म का दावा सिर्फ़ इन महिलाओं के धर्मांतरण के बारे में नहीं था, बल्कि ये था कि वो लापता हैं. इसका कोई मतलब नहीं निकलता है. ज़ाहिर है अगर वो अपनी बातों, अपनी रिसर्च को लेकर इतने ही सच्चे हैं तो फिर कोर्ट में उन्हें यह क्यों कहना पड़ा कि ये ‘फिक्शन’ यानी काल्पनिक फिल्म है?
डिस्क्लेमर- इस आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं.