Underrated Bollywood Movies: बॉलीवुड में ऐसी कई फ़ालतू मूवीज़ बनती हैं, जो बॉक्स ऑफ़िस पर भी ज़बरदस्त हिट रहती हैं. उनकी चर्चा भी हर ओर होती हैं. वहीं, दूसरी ओर कुछ शानदार फ़िल्में ऐसी होती हैं, जो चलती भी नही हैं और लोगों को याद भी नहीं रहतीं. बशर्ते कि इन फ़िल्मों को एक बार देख ना लिया गया हो. क्योंकि, फिर ये फ़िल्में भुलाए नहीं भूलतींं. ऐसे ही फ़िल्म इंडस्ट्री के छिपे नगीने आज हम आपके लिए लेकर आए हैं. जो गज़ब फ़िल्में होने के बावजूद भी ज़्यादातर लोगों तक पहुंच नही पाई हैं. (Best Hidden Gems Of Hindi Movies)
Underrated Bollywood Movies
1. लव शव ते चिकन खुराना – 2012
ये एक कॉमेडी फ़िल्म थी, जो फ़ैमिली ढाबे की सीक्रेट रेसिपी के इर्द-गिर्द घूमती है. फ़िल्म में कुणाल कपूर, हुमा कुरैशी, राजेश शर्मा, डॉली आहलूवालिया समेत कई ज़बरदस्त कलाकारों ने काम किया था.
2. फंस गए रे ओबामा – 2010
क्राइम की गाड़ी दाल में जब कॉमेडी का मस्त तड़का लगता है, तब रंग और स्वाद फंस गए रे ओबामा जैसा ही आता है. ऊपर से संजय मिश्रा, नेहा धूपिया, अमोल गुप्ते सरीखी कास्ट ने फ़िल्म में चार-चांद लगा दिए थे.
3. आई एम कलाम – 2010
बच्चों के सपनों को लेकर फ़िल्में बहुत कम ही बनती हैं. जो बनती भी हैं, वो बेहतरीन होने के बावजूद कम लोगों तक पहुंंच पाती हैं. आई एम कलाम एक ऐसी ही फ़िल्म थी. एक गरीब लड़का, जो भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर अपना नाम कलाम रख लेता है और उनकी तरह बनने का सपना देखता है. ये फ़िल्म आपको बिल्कुल रिफ़्रेश कर देती है.
4. स्टेनली का डब्बा – 2011
फ़िल्म स्टेनली का डब्बा का निर्देशन अमोल गुप्ते ने किया था. फिल्म में मुख्य भूमिका में दिव्या दत्ता, पार्थो गुप्ते, दिव्या जगदले, राज जुत्शी, अमोल गुप्ते नज़र आए थे. फ़िल्म की कहानी में एक अहम मुद्दे को डब्बे के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की है.
5. डोर – 2006
डोर एक बॉलीवुड सामाजिक ड्रामा है, जिसका निर्देशन नागेश कुकुनूर ने किया था. फ़िल्म में आयशा टाकिया, गुल पनाग, श्रेयस तलपड़े मुख्य भूमिका में नज़र आए थे. फ़िल्म की कहानी एक ऐसी महिला की थी, जिसके पति ने सऊदी अरब में ग़लती से एक शख़्स की हत्या कर दी होती है और उसे फ़ांसी की सज़ा से बचाने का एकमात्र तरीका है कि उसे मृतक की विधवा से माफ़ीनामा लेना होगा.
6. तू है मेरा संडे – 2016
तू है मेरा संडे विशुद्ध मुंबइया फिल्म है, जो बिना ओवर ऐक्टिंग या हाई वोल्जेट ड्रामा के मायानगरी की ज़िंंदगी और लोगों की तस्वीर सामने लाती है. फ़िल्म की कहानी में ऐसा ठहराव है कि एक पल को आप ख़ुद की ज़िंदगी में झांकने को मजबूर हो जाते हैं. ये एक बेहतरीन फ़िल्म थी.
7. नो स्मोकिंग – 2007
नो स्मोकिंग फ़िल्म भले ही ज़्यादा लोगों ने ना देखी हो, फिर भी डायरेक्टर अनुराग कश्यप इसे अपनी बेहतरीन फ़िल्मों में से एक मानते हैं. ये सही भी है. क्योंकि, जिसने भी ये फ़िल्म देखी है, उसे बहुत मज़ा आया है. सिगरेट छुड़वाने का बाबा बंगाली का अंदाज़ हर स्मोकर के पसीने छुड़ा देता है.
8. शोर इन द सिटी – 2010
‘शोर इन द सिटी’ फ़िल्म की कहानी की पृष्ठभूमि में मुंबई है और तुषार कांति रे ने क्या खूब फ़िल्माया है इस शहर को. मुंबई को आप इस फ़िल्म के ज़रिए महसूस कर सकते हैं. तुषार कपूर, प्रीति देसाई, राधिका आप्टे, सेंधिल राममूर्ति, संदीप किशन इस फ़िल्म के मुख़्य क़िरदार थे.
9. चलो दिल्ली – 2011
फ़िल्म की कहानी बहुत सिंपल है. लारा दत्ता की फ़्लाइट छूट जाती है और विनय पाठक उन्हें घर पहुंंचने में मदद करते हैं. अब इस पूरे भ्रमण में जो बवाल कटता है, वो आपको हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देगा. विनय पाठक वाक़ई जबराट एक्टर हैं, जो इस फ़िल्म को देखने के बाद आप बखूबी समझ जाएंगे.
10. मेरठिया गैंगस्टर्स – 2015
गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का डेफ़िनेट याद है? जी हां, जीशान कादरी ही बनाए थे ये फ़िल्म. मेरठ के छुटपट लौंडे कित्ते बड़े कांड कर सकते हैं, ये फ़िल्म देखने के बाद आपको मालूम पड़ जाएगा. ऊपर से जयदीप अहलावत, आकाश दहिया, संजय मिश्रा, शदप कमल जैसे एक्टर्स ने जो समां बांंधा था, उसका तो कोई जवाब ही नहीं था.