हिन्दुस्तानी सिनेमा अपनी लव स्टोरी की वजह से जाना जाता है या यूं कहें बदनाम है. बॉलीवुड ने लव स्टोरी में विशेषज्ञता हासिल कर ली है. सौ साल के फ़िल्म इतिहास को उठा कर देखेंगे, तो हमे इतनी लव स्टोरियां मिलेंगी जो आपको बोर बहुत बोर करने के लिए काफ़ी है. बॉलीवुड प्यार के हर रंग को लगभग छू चुका है, ये लिस्ट उन अलग रंगों के बारे में ही है. जब बॉलीवुड ने प्यार को सिर्फ़ गुलाबी रंग को ही नहीं परोसा.
ये वो फ़िल्में हैं, जिनमें है तो प्यार ही लेकिन बॉलीवुड स्टाईल वाली नहीं.
1. The Lunch Box
बहुत कम फ़िल्में होती हैं, जिन्हें आलोचक सराहते नहीं थकते और बॉक्स आफ़िस पर भी उन्हें मनचाहा प्यार मिलता है. The Lunch Box भी उन्हीं फ़िल्मों में से है. 2013 में रिलीज़ हुई ये फ़िल्म अंतराष्ट्रीय स्तर भी खूब सराही गई. उस साल कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में इस फ़िल्म को Critics Week Viewers Choice Award मिला था.
एक इंसान जो अपनी नौकरी से रिटायर होने वाला है, एक पत्नी जिसकी शादी शुदा ज़िंदगी से प्यार जा चुका है और डब्बेवाले की ग़लती जिससे, दोनों किरदारों की चिट्ठी के ज़रिए बातचीत शुरू हो जाती है और एक वक़्त के बाद वो ग़लती अनदेखे प्यार का शक़्ल ले लेती है.
इस ताने-बाने को बुनने वाले और लिखने वाले रितेश बत्रा हैं.
2. चीनी कम
हिन्दी फ़िल्मों में 64 साल के हीरो को 34 साल की हीरोईन से प्यार नहीं होता और जब ऐसा होता है तब चीनी कम बनती है. जिसमें प्यार मिठास तो मौजूद है लेकिन उम्र को देखते हुए थोड़ा कम रखा गया है. आर. बल्की की ये पहली फ़िल्म थी, इसे आर. बल्की और मनोज तपाड़िया ने मिल कर लिखा है.
बुद्धदेव गुप्ता जो 64 साल के होते हैं और नीना वर्मा की उम्र होती 34 साल.मुसीबत ये है कि दोनों की शादी करनी है लेकिन नीना के पिता की उम्र बुद्धदेव से भी कम है.
3. दम लगा के हईशा
जैसा की भारत में होता है, शादी पहले हो जाती है फिर कुछ बच्चे हो जाने के बाद प्यार भी हो ही जाता है. फ़िल्म में भी ऐसा ही कुछ हुआ है. शादी तो हो गई लेकिन उनमें प्यार नहीं हुआ. पत्नि की कोशिश रहती है कि वो अपनी पति को अपने प्यार की गिरफ़्त में ले-ले लेकिन पति उसके शरीर की बनावट पसंद नहीं होती. अंत में क्या होता है, वो फ़िल्म देख कर या गूगल कर पता लगा लीजिएगा, हम नहीं बता रहे. वैसे फ़िल्म 90’s के बैकग्राउंड पर बनाई गई है तो देख ही लीजिएगा, अच्छा लगेगा. शरत कटारिया ने इस फ़िल्म को लिखा और निर्देशित किया है.
4. हाईवे
हाईवे मुख्यत: प्यार की कहानी नहीं है, ये कहानी है पहली बार आज़ादी को महसूस करने की, हवाओं को छूने की, सड़कों पर खेलने की कुल मिला कर ज़िंदगी को जीने की. एक रसूखदार बाप की बेटी वीरा की शादी होने वाली थी लेकिन एक दिन पहली उसका अपहरण हो जाता है, अपहरणकर्ता महाबीर को वीरा के बैकग्राउंड के बारे में ख़ास जानकारी नहीं होती है. गंभीर परिस्थितियों से बचने के लिए वो वीरा को लेकर शहर दर शहर भागता रहता है, ये सफ़र ही ‘हाईवे’ है.
इसके लेखक-निर्देशक इमतियाज़ अली बताते हैं कि ये कहानी 15 साल तक उनके साथ रही.
5. बर्फ़ी!
किसी ज़माने में ‘Murphy’ नाम की एक रेडियो कंपनी हुआ करती थी, फ़िल्म का नाम ‘बर्फ़ी!’ उसी Murphy की वजह से है. मर्फ़ी जॉन्सन उर्फ़ बर्फ़ी जो कि जन्म से गूंगा,बहरा और ज़िंदादिल है. ज़िंदगी मज़े में चलती रहती है तभी उसके घर के पास कुछ दिनों के लिए श्रुति रहने आती है, प्यार होता है, बिछड़ना होता है, दोनों ज़िंदगी में आगे भी बढ़ जाते हैं. फिर कहानी का ताना-बाना कुछ ऐसा बनता है कि बर्फ़ी की मुलकात झिलमिल से होती है. झिलमिल दिमाग़ी रूप से अविकसित होती है. अब कहानी किस मोड़ पर उठती-बैठती है, वो ख़ुद देखना में ज़्यादा मज़ा है.
इस बेहतरीन फ़िल्म के निर्देशक और लेखक अनुराग बासु है.
6. सदमा
पार्टी से लौटते समय कार एक्सिडेंट में नेहलता की याद्दाश्त चली जाती है, घटनाक्रम कुछ ऐसे बनते हैं कि उसकी मुलाक़ात सोमु से होती है. दोनों साथ रहते हैं, आपस में प्यार हो जाता है. फिर कहानी कुछ यूं मुड़ती है कि उसकी याद्दाश्त वापस आ जाती है और नेहलता वो सब भूल जाती है, जो उसके साथ एक्सिडेंट के बाद हुआ था. फ़िर सोमु का क्या होता है?
सदमा तमिल फ़िल्म Moondram Pirai का रीमेक है, दोनों फ़िल्म के निर्देश्क और लेखक Balu Mahendra ही थे.
7. The Japanese Wife
स्नेहमोय चैटर्जी और Miyage की आपस में शादी चिट्ठियों के द्वारा ही हो गई थी. स्नेहमोय भारत में रहते थे, Miyage एक जापानी थीं. दोनों न कभी एक दूसरे से न कभी मिले थे, न कभी आवाज़ सुनी थी. कहानी के अंत में स्नेहमोय की मृत्यु हो जाती है और Miyage एक हिन्दु विधवा की ज़िंदगी जीने लगती हैं.
कहानी कुणाल बासु की है और इसे निर्देशित किया है अपर्णा सेन ने.
8. रेनकोट
बारिश से बचने के लिए मनु एक घर में जाता है, इत्तेफ़ाक से वो घर उसके छ: साल पुरानी प्रेमिका नीरु का निकलता है. दोनों अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुके होते हैं, मनु अपने काम के लिए पैसों की तलाश में रहता है, नीरु की गृहस्थजीवन में भी पैसे की किल्लत रहती है. लेकिन दोनों ऐसे बरताव करते हैं कि दोनों की ज़िंदगी में कोई तक़लीफ़ नहीं है. हालांकि बाद में दोनों को एक-दूसरे के हालात के बारे में पता चल भी जाता है. फिर दोनों एक दूसरे की मदद भी करते हैं, पुराने प्रेम के नाते. इसकी कहानी O. Henery की शॉर्ट स्टोरी The Gift of the Magi के ऊपर आधारित है, इसे रितुपर्णो घोष ने निर्देशित किया है.
इन फ़िल्मों के अलावा आपको किस बॉलीवुड फ़िल्म की प्रेम कहानी अलहदा लगी थी, हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.