जब मिलते हैं हिन्दी सीरियल्स और गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के डायलॉग्स, तो जो होता है, बेमिसाल होता है

Sanchita Pathak

हमारे लिए इंटरटेनमेंट उतना ही ज़रूरी है जितना चाय के लिए अदरक

जितना समोसे के लिए हरी चटनी
जितना ठंड के लिए हीटर
जितना पानी के लिए कूलर
और एंटरटेनमेंट की दुनिया में ‘हिन्दी टीवी सीरियल्स’ की जगह कोई नहीं ले सकता. चाहे वो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ हो या ‘नागिन’ (1,2,3….) 
ठीक है? 
ये ब्रह्म सत्य है कि हिन्दी सिनेमा के इतिहास में ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ की जगह कोई नहीं ले सकता. मेरे दिमाग़ में इस फ़िल्म ने घर बना लिया है, वो भी पक्का 3 मंज़िला. घूम-फिरकर इसके डायलॉग याद आ ही जाते हैं.
कुछ करना था इन डायलॉग्स के संग, तो इन्हें बाइज्ज़त हिन्दी सीरियल्स के सीन्स पर फ़िट किया है. मज़े लो:

प्रस्तुति कैसी लगी ये जानना ज़रूरी है, तो थोड़ा टाइम निकालकर कमेंट ज़रूर करना. 

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