उषा मेहता का क़िरदार निभा रही हैं Sara Ali Khan, जानिए कौन थीं ये महान स्वतंत्रता सेनानी?

Abhay Sinha

Who Was Usha Mehta: ‘अंग्रेज़ों को लग रहा है कि उन्होंने क्विट इंडिया का सर कुचल दिया है, लेकिन आज़ाद आवाज़ें क़ैद नहीं होती. ये है हिंदुस्तान की आवाज़, हिंदुस्तान में कहीं से, कहीं पे हिंदुस्तान में.’ ये सारा अली ख़ान (Sara Ali Khan) की आने वाली फ़िल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ (Ae Watan Mere Watan) का डायलॉग है, जिसे वो रेडियो पर बोलती नज़र आ रही हैं. हाल ही में फ़िल्म का टीज़र रिलीज़ हुआ. टीज़र देख कर ये तो समझ आ गया कि फ़िल्म की कहानी ब्रिटिश भारत के दौरान की है, लेकिन कहानी के क़िरदार के बारे में ज़्यादा जानकारी लोगों को नहीं है.

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मगर हम आपको बता दें कि सारा अली ख़ान फ़िल्म में स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता (Usha Mehta) का क़िरदार निभाने वाली हैं.

कौन थीं उषा मेहता? Who Was Usha Mehta?

उषा मेहता एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ख़ुफिया रेडियो सर्विस शुरू की थी. इन्हें भारत की पहली रेडियो वुमेन भी कहा जाता है.

उनका जन्म गुजरात में हुआ था और वे छोटी उम्र से ही महात्मा गांधी और उनके दर्शन से काफी प्रभावित थीं. सात साल की उम्र से ही उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था. साइमन कमीशन का भी उन्होंने बहुत छोटी उम्र में विरोध किया था. उनके पिता ब्रिटिश राज के तहत एक न्यायाधीश थे. उनके रिटायर होने के बाद वो बंबई आ गईं.

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ग्रेजुएशन और कानून की पढ़ाई कर चुकी ऊषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पूरी तरह से आज़ादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया.

क्विट इंडिया मूवमेंट में शुरू की रेडियो सर्विस

9 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई. महात्मा गांधी के साथ कांग्रेस के सारे बड़े नेता गिरफ़्तार कर लिए गए. उषा मेहता समेत कांग्रेस के कुछ छोटे नेता गिरफ्तार होने से बच गए थे.

9 अगस्त 1942 की शाम कांग्रेस के कुछ युवा समर्थकों ने बॉम्बे में बैठक की. ये लोग इस बात पर विचार कर रहे थे कि कैसे बड़े नेताओं की ग़ैर-मौजूदगी में भी आंदोलन की आवाज़ लोगों तक पहुंचती रहे. इन लोगों का मानना था कि अख़बार निकालकर वो अपनी बात लोगों तक नहीं पहुंचा पाएंगे. क्योंकि ब्रिटिश सरकार के दमन के आगे अख़बार की पहुंच सीमित होगी.

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इस बैठक में रेडियो की समझ रखने वाले उषा मेहता, बाबूभाई ठक्कर, विट्ठलदास झवेरी और नरीमन अबराबाद प्रिंटर जैसे लोग भी थे. इन्होंने मिलकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ खुफिया रेडियो सर्विस शुरू करने का फ़ैसला किया. उषा मेहता खुफिया रेडियो सर्विस की एनआउंसर बनाई गईं. पुराने ट्रांसमीटर को जोड़ तोड़कर इस्तेमाल में लाए जाने लायक बनाया गया और इस तरह से अंग्रेजों के खिलाफ सीक्रेट रेडियो सर्विस कांग्रेस रेडियो की शुरुआत हुई.

27 अगस्त 1942 को पहला प्रसारण

14 अगस्त, 1942 को खुफिया ठिकाने पर कांग्रेस रेडियो की स्थापना की. इस खुफिया रेडियो सर्विस का पहला प्रसारण 27 अगस्त 1942 को हुआ. पहले प्रसारण में उषा मेहता ने धीमी आवाज़ में रेडियो पर घोषणा की- ये कांग्रेस रेडियो की सेवा है, जो 42.34 मीटर पर भारत के किसी हिस्से से प्रसारित की जा रही है.

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रेडियो शो हिंदुस्तान हमारा गीत के साथ शुरू होता और वंदे मातरम के साथ समाप्त हो जाता. ये रेडियो शो ब्रिटिश राडार से छिपने के लिए बारी-बारी से अपने स्थान बदलकर कुछ महीनों तक चलता रहा, लेकिन 12 नवंबर, 1942 को उषा मेहता को ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया.

उषा मेहता को चार साल की सज़ा हुई. अंग्रेज़ों ने जेल में उषा मेहता को पेशकश रखी कि अगर वो दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी दें तो उन्हें विदेश पढ़ने भेज दिया जाएगा. मगर उन्होंने साफ़ इन्कार कर दिया और पूरी सज़ा काटी. उन्हें 1946 में रिहा किया गया और वो बंबई में रिहा होने वाली पहली राजनीतिक कैदी बनीं.

Usha Mehta

भले ही ये रेडियो महज़ तीन महीने ही चला, लेकिन इस रेडियो सेवा ने आज़ादी के आंदोलन में तेज़ी ला दी. रेडियो के ज़रिए जो सूचनाएं ब्रिटिश सरकार आम जनता से छुपाना चाहती थी उसका प्रसारण किया जाता. रेडियो के ज़रिए बड़े-बड़े नेता जनता तक अपनी आवाज़ा पहुंचाते.

यही वजह है कि उषा मेहता भारत की रेडियो वुमेन के नाम से मशहूर हुईं. 80 साल की उम्र में 11 अगस्त 2000 को उन्होंने आखिरी सांस ली.

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