क़िस्सा: एक्टिंग की दुनिया में अपना एक अलग मुक़ाम बना चुके मनोज बाजपेयी कभी करना चाहते थे सुसाइड

J P Gupta

एक्टिंग की दुनिया में टैलेंट के पावर हाउस माने जाते हैं मनोज बाजपेयी. वो अपनी लाजवाब एक्टिंग से सामने वाले को तालियां बजाने को मज़बूर कर देते हैं. सत्या के भीखू म्हात्रे, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के सरदार ख़ान, शूल के इंस्पेक्टर समर प्रताप सिंह, फ़ैमिली मैन के श्रीकांत तिवारी जैसे किरदार इसकी बानगी हैं.

पर एक दौर ऐसा भी था जब मनोज बाजपेयी एक्टिंग छोड़ आत्महत्या करने के बारे में सोचते थे. ऐसा क्यों और कब हुआ, इससे जुड़ा क़िस्सा उन्होंने ख़ुद अपने एक इंटरव्यू में लोगों से शेयर किया है. 

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बात उन दिनों की है जब बिहार और नेपाल के बॉर्डर पर बसे एक गांव का बच्चा फ़िल्मों में काम करने का सपना देखा करता था. चंपारण ज़िले के बेलवा गांव का रहने वाला ये बच्चा कोई और नहीं मनोज बाजपेयी थे. 17 साल की उम्र में ही घर का ख़र्च चलाने के लिए इन्होंने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था.

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उस वक़्त वो अख़बारों और मैगज़ीन में नसीरुद्दीन शाह और राज बब्बर के इंटरव्यू पढ़ फ़िल्मों में जाने के लिए प्रेरित होते थे. इसके बाद वो दिल्ली चले आए. यहां उन्होंने 4 बार नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन लेने के लिए अप्लाई किया. मगर चारों बार वो रिजेक्ट कर दिए गए. इससे वो इतने टूट गए कि उनके मन में आत्महत्या करने के ख़्याल आने लगे.

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किसी ने उन्हें एनएसडी की राह छोड़ नुकड़ नाटक करने की सलाह दी. मनोज को ये मशवरा पंसद आया और वो नुक्कड़ नाटक करने लगे. इस काम से उन्हें काफ़ी सुकून मिलता और इस तरह उनके मन से आत्महत्या करने का ख़्याल भी जाता रहा. इसके बाद वो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने चले गए. 

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यहां उनकी मुलाकात फ़ेमस डायरेक्टर अनुभव सिन्हा से हुई. अनुभव के एक नाटक में उन्होंने काम किया था. तभी उन्होंने पहचान लिया था कि मनोज में टैलेंट की कोई कमी नहीं. इसीलिए तो मुंबई जाने के बाद उन्होंने ही टिकट भेज कर मनोज को मुंबई आने को कहा. यहां पहुंचने पर उन्होंने एक निर्देशक से उन्हें मिलवाया. एक सीरियल के लिए उन्हें सेलेक्ट भी कर लिया गया पर बाद में ये रोल किसी और एक्टर को मिल गया.

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इसके बाद उन्होंने काफ़ी संघर्ष किया. गोविंद निहलानी की फ़िल्म द्रोहकाल में एक छोटा सा रोल किया. शेखर कपूर की फ़िल्म बैंडिट क्विन में उनकी एक्टिंग की तारीफ़ हुई मगर असली पहचान मिली फ़िल्म सत्या से जो 1998 में रिलीज़ हुई थी. इस मूवी के लिए उन्होंने बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. इसके बाद की कहानी तो सभी को पता ही है.

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