27 मार्च, 2022 को अमेरिका के लॉस एंजिलस सिटी में 94वें अकेडमी अवॉर्ड्स (Oscar 2022) का ऐलान होना है. इससे पहले 8 फ़रवरी, 2022 को Oscar 2022 के नॉमिनेशन का ऐलान हो चुका है. इस दौरान भारत की तरफ़ से ‘जय भीम’ फ़िल्म को ऑस्कर में जगह नहीं मिल पाई, लेकिन भारतीय डॉक्यूमेंट्री राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) ऑस्कर में ‘बेस्ट डॉक्यूमेंट्री फ़ीचर’ श्रेणी के लिए नॉमिनेट हुई है. अब भारत की सारी उम्मीदें इसी डॉक्यूमेंट्री से हैं.
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रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष द्वारा निर्देशित भारतीय डॉक्यूमेंट्री राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) को दुनियाभर की 4 अन्य डॉक्युमेंट्रीज़ के साथ ऑस्कर नॉमिनेशन मिला है. इसमें एसेनशन (Ascension), अटिका (Attica), फ्ली (Flee) और समर ऑफ़ सोल (Summer of Soul) भी शामिल हैं. ये पहला मौका है, जब किसी भारतीय डॉक्यूमेंट्री को ऑस्कर में नॉमिनेशन मिला है.
बता दें कि ऑस्कर नॉमिनेशन से पहले राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) का साल 2021 के ‘सनडांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल’ में वर्ल्ड प्रीमियर हो चुका है. इस फ़ेस्टिवल में ये डॉक्यूमेंट्री ‘द ऑडियंस अवॉर्ड’ और ‘स्पेशल जूरी अवॉर्ड’ जीत चुकी है. इस डॉक्यूमेंट्री को अब तक कुल 20 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.
चलिए जानते हैं आख़िर भारतीय डॉक्यूमेंट्री राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) की कहानी क्या है-
इसकी कहानी है बेहद दमदार
राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) डॉक्यूमेंट्री की कहानी दलित महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे अख़बार ख़बर लहरिया (Khabar Lahariya) के उत्थान की कहानी बयां करती है. ये दलित महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला भारत का एकमात्र अख़बार है. इस डॉक्यूमेंट्री में दलित महिलाओं के एक समूह की कहानी दिखाई गई है, कि कैसे वो इस अख़बार को सामाजिक दायरे से जोड़े रखने के लिए प्रिंट से डिजिटल में तब्दील करती हैं और इस दौरान उनके सामने जाति और जेंडर जैसी कई चुनौतियां आती हैं. इसके मुख्य पात्र मीरा और उनके साथी पत्रकार हैं.
20 साल पूरे कर चुका है ‘ख़बर लहरिया’
ख़बर लहरिया अख़बार की शुरुआत साल 2002 में दिल्ली के एक NGO ‘निरंतर’ द्वारा चित्रकूट में की गई थी. इसकी फ़ाउंडर कविता देवी और मीरा जाटव हैं. इसे पहले महिलाओं द्वारा, महिलाओं से जुड़े विषय पर बात करने वाला अख़बार माना जाता था. लेकिन समय के साथ ‘ख़बर लहरिया’ की महिला पत्रकारों ने लोकल लेवल पर हर तरह की ख़बरों को कवर करना शुरू कर दिया. इसमें पॉलिटिक्स, सोशल और क्राइम न्यूज़ शामिल हैं. इस अख़बार की सबसे ख़ास बात है पाठकों को इसकी हर ख़बर महिलाओं के नज़रिए से देखने को मिलती है.
प्रिंट से डिजिटल में शिफ़्ट होने की कहानी
सूचना और तकनीक के इस दौर में जब ‘ख़बर लहरिया’ अख़बार पढ़ने वालों की संख्या कम होने लगी तो इसने भी ‘प्रिंट से डिजिटल’ में शिफ़्ट होने का फ़ैसला किया ताकि बड़े लेवल पर लोगों तक इसकी पहुंच हो. इस दौरान इस अख़बार के पत्रकारों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. जिन महिला पत्रकारों ने अपने जीवन में कभी स्मार्टफ़ोन या कैमरा इस्तेमाल नहीं किया था, उन्होंने कैसे टेक्नॉलोजी को लोगों तक पहुंचने का ज़रिया बनाया. राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire) डॉक्यूमेंट्री ‘खबर लहरिया’ के इसी ट्रांज़िशन फेज़ की कहानी दिखाती है.
आज के दौर में जहां दर्शकों का न्यूज़ चैनल्स पर न के बराबर भरोसा रह गया है. इसी दौर में ‘ख़बर लहरिया’ का अपना एक अलग पाठक वर्ग है जो इनकी ख़बरों को बड़े चाव से पढता है. इंटरनेट के इस दौर में ‘ख़बर लहरिया’ का होना अपने आप में क्रांति का सूचक है. ये अख़बार/पोर्टल उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की ख़बरों पर ज़्यादा केंद्रित है. ये देश के वो हिस्से हैं, जहां आज भी जाति प्रथा सबसे बड़ा मसला है. महिलाओं से जुड़े सबसे ज़्यादा क्राइम भी इन्हीं दो राज्यों में ज़्यादा रिपोर्ट किए जाते हैं.
ऐसे में पुरुष प्रधान समाज के सामने कुछ ऐसी महिलाएं आती हैं, जो निर्भीक होकर लोकल मुद्दों पर बात करने के लिए एक अख़बार शुरू करती हैं. ये दलित पत्रकार मर्दों, कथित ऊंची जाति के लोगों, पुलिस और प्रशासन से सवाल पूछती हैं. अपने लेख से पुरुष प्रधान समाज की सोच बदलने की ये कोशिश अपने आप में क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. राइटिंग विद फ़ायर (Writing With Fire)
आप ख़ुद ‘राइटिंग विद फ़ायर’ डॉक्यूमेंट्री के ट्रेलर में देख सकते हैं कि ‘ख़बर लहरिया’ की रिपोर्टर कई बार ये कहते हुए सुनाई दे रही हैं कि ‘मुझे डर लग रहा है’. वाकई में ये महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालकर पत्रकारिता कर रही हैं. वो पुलिस से सवाल कर रही हैं कि गांव के उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ FIR दर्ज क्यों नहीं की गई, जिस पर एक लड़की के साथ रेप करने का आरोप है. वो दलितों की बेहतरी की बात करने वाले नेताओं से उनके वादे पर फ़ॉलो-अप लेती हैं. इसके अलावा खनन माफ़ियाओं की लापरवाही से मरने वाले मज़दूरों पर बात कर रही हैं.
‘ख़बर लहरिया’ वेब पोर्टल की सभी महिलाएं आज समाज के लिए प्राणदायक हैं. इसकी एडिटर इन-चीफ़ मीरा देवी ख़ुद में महिला सशक्तिकरण की मिशाल हैं. 14 साल की उम्र में मीरा की शादी हो गई थी. बच्चों को बड़ा करने के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी. मीरा के पास 3 डिग्रियां होने के बावजूद उनके पति नहीं चाहते कि वो काम करे. इसके अलावा ‘ख़बर लहरिया’ की रिपोर्टर सुनीता की शादी इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि उनकी फ़ैमिली दहेज देने की हालत में नहीं है. माता-पिता चाहते हैं कि वो पत्रकारिता छोड़ अपनी गृहस्थी बसाने पर ध्यान दें.
समाज के अहम मुद्दों को उठाने वाले ऐसे कई निर्भीक पत्रकारों को हमारे देश में अक्सर अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ चुका है जो बेहद दुःखद है.
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