आख़िर क्यों बाज़ार में नहीं उतर पाई सोयाबीन का इस्तेमाल कर बनाई गई Ford की ग्रीन कार?

Nripendra

ऑटोमोबाइल की दुनिया में ‘Ford’ एक जाना माना नाम है. ये एक अमेरिकी मल्टीनेशनल ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर कंपनी है, जिसका मुख्यालय डियरबोर्न (मिशीगन) में है. वहीं, इस कंपनी के संस्थापक हेनरी फ़ोर्ड थे, जिनके नाम पर कंपनी का नाम आज तक बना हुआ है. इस कंपनी की स्थापना हेनरी फ़ोर्ड द्वारा 1903 में की गई थी. कहते हैं 20वीं सदी में इन्होंने ट्रांसपोर्टेशन बिजनेस को लिए एक बड़ा बाज़ार खड़ा कर दिया था. 

वहीं, बहुत कम लोग ये जानते हैं होंगे कि हेनरी फ़ोर्ड पर्यावरण क्षेत्र में भी एक पुरोधा थे. ये पहले ऐसे व्यक्ति बने जिन्होंने बॉयोप्लास्टिक कार का निर्माण किया. हालांकि, इनका ये ड्रीम प्रोजक्ट बाज़ार में उतर नहीं पाया. आइये, नीचे विस्तार से जानते हैं इसकी आख़िर वजह क्या थी.  

क्या है बॉयोप्लास्टिक?

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सबसे पहले तो ये जानिए कि आख़िर ये बॉयोप्लास्टिक होता क्या है. बॉयोप्लास्टिक दरअसल वो ख़ास प्लास्टिक होता है, जो पौधों और हाइड्रोकार्बन से बनाया जाता है. ये Biodegradable होता है यानी अपने आप ही ख़त्म होता है और पर्यावरण को आम प्लास्टिक की तरह नुक़सान नहीं पहुंचाता है. 

हेनरी ने बनाई बॉयोप्लास्टिक कार 

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जैसा कि हमने ऊपर बताया कि हेनरी फ़ोर्ड पर्यावरण क्षेत्र में भी एक पुरोधा थे. शायद यही वजह थी कि उन्होंने अपनी कार में बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल किया. उन्होंने अपनी इस बायोप्लास्टिक कार को सोयाबीन कार व सोयाबीन ऑटो नाम दिया था क्योंकि इसमें सोयाबीन का इस्तेमाल किया गया था. इस तरह वो इतिहास के पहले ऐसे व्यक्ति बने जिन्होंने कार निर्माण में बायोप्लास्टिक का उपयोग किया था. 

क्यों बनाई बॉयोप्लास्टिक कार?

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बहुतों के मन में ये सवाल भी आ सकता है कि आख़िर क्यों हेनरी ने बॉयोप्लास्टिक कार का निर्माण किया था. इसके पीछे कुछ ख़ास वजहें थीं. सबसे पहली ये कि वो एक कृषि फ़ार्म में पले-बढ़े थे और वो ये हमेशा सोचते थे कि कैसे उद्योग को कृषि से जोड़ा जाए. इसलिए, उन्होंने एक ख़ास लैब बनाई थी जिसमें सोयाबीन, गेहूं, मक्का व भांग के औद्योगिक इस्तेमाल पर रिसर्च किया जाता था. 

वहीं, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी और मेटल यान धातु की कमी बढ़ती जा रही थी. इस वजह से उन्होंने कार में बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल मेटल के विकल्प के रूप में किया था. 1941 में एक इंटरव्यू के दौरान हेनरी फ़ोर्ड ने ये बात सामने रखी थी कि बायोप्लास्टिक अमेरिका में धातु के उपयोग को दस प्रतिशत तक कम कर सकता है.  
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काफ़ी हल्की थी ये कार 

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ये कार स्टील के मुक़ाबले काफी हल्की थी. जानकारी के अनुसार इस कार का वजन मात्र 907 किलो था, जो कि आम कारों के मुक़ाबले 450 किलो कम था. हेनरी फ़ोर्ड ने 13 अगस्त 1941 को अपनी इस कार को लोगों के सामने पेश किया था और साथ ही इसकी खासियत भी बताई थी. 

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आख़िर क्यों मार्केट में नहीं उतर पाई हेनरी की ग्रीन कार? 

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हालांकि, इतनी मेहनत के बावजूद हेनरी की ये ग्रीन कार मार्केट में उतर नहीं पाई. इस कार का एक ही मॉडल बनाया गया था और जिसे बाद में नष्ट कर दिया गया. साथ ही दूसरी कार बनाने का प्लान भी बंद कर दिया गया था. इसके पीछे की ख़ास वजह थी द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका का शामिल होना. उस दौरान अमेरिका में कारों के निर्माण पर रोक लगा दिया गया था. वहीं, युद्ध के बाद ग्रीन कार का विचार पूरी तरह गायब हो गया क्योंकि संसाधन युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए लगाए जा रहे थे.  

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