विजय सिंह पथिक: वो क्रांतिकारी जिसकी पत्रकारिता से इतना डर गए अंग्रेज़ कि बंद करवा दिए थे अख़बार

Nripendra

Freedom Fighter Vijay Singh Pathik in Hindi: देश की आज़ादी की लड़ाई में जन-जन की भागीदारी रही थी. इसमें मुख्य क्रांतिकारियों के साथ-साथ राष्ट्रवादी पत्रकार भी शामिल थे. वहीं, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है कि उस दौरान पत्र-पत्रिकाओं ने राष्ट्रवादी सोच और आज़ादी की लड़ाई को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. उस दौरान महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, बाल गंगाधर तिलक, पंडित मदनमोहन मालवीय, बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे नेता सीधे-सीधे पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे.  

वहीं, क्रांतिकारी प्रत्रकारिता में एक नाम विजय सिंह पथिक का भी आता है, जिनके किसान आंदोलन के सामने अंग्रेज़ों को घुटने टेकने पड़ गए थे. 

आइये, अब सीधे विस्तार से जानते हैं क्रांतिकारी पत्रकार विजय सिंह पथिक (Freedom Fighter Vijay Singh Pathik) के बारे में. 

दादा की देशभक्ति से हुए प्रभावित 

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Freedom Fighter Vijay Singh Pathik in Hindi: विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर के गांव में 27 फ़रवरी 1882 को हुआ था. उनके पिता का नाम चौधरी हमीर सिंह राठी और माता का नाम श्रीमती कमल देवी था. 

विजय सिंह पथिक के बारे में कहा जाता है कि उनके अंदर बचपन से ही राष्ट्रवादी सोच विकसित हो गई थी. उनके दादा दीवान इंद्र सिंह राठी एक देश भक्त थे, जिनकी देशभक्ति से विजय सिंह राठी काफ़ी प्रभावित हुए. उनके दादा 1857 की लड़ाई में शहीद हुए थे.  

क्रांतिकारी संगठन में हुए शामिल 

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life of Vijay Singh Pathik in Hindi: अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद विजय सिंह पथिक अपनी बड़ी बहन के पास इंदौर चले गए थे. उन्होंने ज़्यादा पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, बांग्ला, राजस्थानी व मराठी जैसी भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी. 

जब वो इंदौर में थे तक उनकी मुलाक़ात क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल ने हुई. सान्याल ने उनके अंदर देशभक्ति देखी और जल्द ही विजय सिंह उनके क्रांतिकारी संगठन का हिस्सा बन गए. 

इसके बाद वो शचीन्द्र सान्याल के ज़रिये एक और क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के संपर्क में आए. उन दिनों रासबिहारी बोस की ‘अभिनव भारत समिति’ देश में क्रांति की तैयारी में थी. विजय सिंह भी इसमें शामिल हुए, लेकिन जल्द ही अंग्रेज़ों को उनके बारे में पता चल गया, इसलिए क्रांतिकारियों को अपनी गतिविधियों पर विराम लगाना पड़ा. 

असली नाम था भूप सिंह राठी

बहुतों को इस बारे में जानकारी नहीं होगी कि विजय सिंह पथिक का असली नाम भूप सिंह राठी था. दरअसल, लाहौर असेंबली बम कांड में उनका भी नाम सामने आया था, इसलिए अंग्रेज़ों से अपनी पहचान छुपाने के लिए उन्होंने अपना नाम भूप सिंह राठी से विजय सिंह पथिक कर लिया था. 

उन्होंने न सिर्फ़ नाम बदला बल्कि अपनी वेशभूषा भी बदल डाली और राजस्थान में मेवाड़ियों की तरह रहने लगे. इस दौरान उन्होंने ‘वीर भारत सभा’ नाम के एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना में अपनी भागीदारी दी. 

बिजोलिया किसान आंदोलन (Bijolia Movement)

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Bijolia Movement in Hindi: बिजोलिया किसान आंदोलन मेवाड़ के किसानों द्वारा साल 1897 में किया गया था. ये आंदोलन किसानों पर अत्यधिक लगान यानी कर लगाने का विरोध था. ये आंदोलन बिजोलिया जागीर से लेकर आसपास की जागीरों तक भी फैला था. इस आंदोलन को कई ख़ास लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ , जिसमें विजय सिंह पथिक भी शामिल थे. 

जैसे ही विजय सिंह को इस आंदोलन के बारे में पता चला, वो बिना समय गवाएं आंदोलन में कूद पड़े. इस बीच उन्होंने ‘विद्या प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की और गांव-गांव पहुंचकर लोगों को इकट्ठा करने का काम किया और इस आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. 

इस दौरान उन्होंने पत्रकारिता की भी शुरुआत कर दी. उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ के ज़रिये बिजोलिया किसान आंदोलन की जानकारी देश में फैलाई और चर्चा का विषय बनाया. 

ये विजय सिंह पथिक ही थे, जिनके प्रयासों की वजह से इस आंदोलन ने एक क्रांति का रूप ले लिया. इसके बाद लोकमान्य तिलक ने किसानों की मांग पूरे करवाने के लिए महाराणा फ़तेह सिंह को पत्र लिखा था.  

महात्मा गांधी ने किया आमंत्रित 

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विजय सिंह से धीरे-धीरे देश के क्रांतिकारी और नेता प्रभावित हो रहे थे, जिसमें महात्मा गांधी भी शामिल थे. जब मुंबई में महात्मा गांधी ने एक सभा का आयोजन किया, तो उन्होंने विजय सिंह को इसमें आने के लिए आमंत्रित किया था. 

सभा में एक फैसला लिया गया कि राजस्थान के लोगों को जागरूक करने के लिए वर्धा से एक समाचार पत्र निकाला जाए. इसकी ज़िम्मेदारी विजय सिंह को सौंपी गई और वो वर्धा के लिए रवाना हो गए.  

‘राजस्थान केसरी’ की शुरुआत 

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Freedom Fighter Vijay Singh Pathik in Hindi: वर्धा से उन्होंने राजस्थान केसरी नाम के साप्ताहिक पत्र की शुरुआत की. ये अखबार बेबाक़ होकर राष्ट्रीय विचारों को फैलाने और सरकार की दमन नीतियों के विरूद्ध आवाज़ उठा रहा था. इस वजह से जल्द ही राज्स्थान और मध्य भारत में लोकप्रिय हो गया. 

इस अख़बार की लोकप्रियता से अंग्रेज़ी सरकार इतनी डर गई थी कि इस पर रोक लगा दी गई. फिर भी ये अख़बार लोगों को जागरूक करता रहा. हालांकि बाद में अख़बार बंद हो गया. 

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समाज की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ 

Freedom Fighter Vijay Singh Pathik in Hindi: वर्धा से निकलकर विजय सिंह पथिक अजमेर आ गए और वहां समाज की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने लगे. उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए जागृति फैलाई और सति प्रथा, बाल विवाह, भेद भाव और धार्मिक पाखंड के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का काम किया. 

वो अंग्रेज़ों से डरे नहीं और यहीं से उन्होंने ‘नवीन राजस्थान’ नाम का साप्ताहिक पत्र निकाला. इस अख़बार से किसान आंदलोन को इतना बल मिला कि अंग्रेज़ी सरकार ने इस पर भी रोक लगा दी. 

साथ ही ये घोषणा की कि इस अख़बार को रखना, पढ़ना और प्रचारित करना अपराध माना जाएगा. 

ये अख़बार बंद हुआ, तो उन्होंने इसी को ‘तरूण राजस्थान’ के नाम से शुरू कर दिया. इस अखबार से कई बड़े पत्रकार जुड़े जैसे रामनाथ गुप्त और मुकुड बिहार वर्मा. 

इस अख़बार में विजय सिंह अपने विचार ‘राष्ट्रीय पथिक’ के नाम से अपने विचार लोगों के सामने रखते थे. इसलिए लोग उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से जानते हैं. 

सरकार को आख़िरकार झुकना पड़ा

Freedom Fighter Vijay Singh Pathik in Hindi: विजय सिंह ने अपनी पत्रकारिता के ज़रिये अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया था और बिजोलिया आंदोलन को जन क्रांति का रूप दे दिया था. आख़िरकार अंग्रेज़ी सरकार को घुटने टेकने पड़े और किसानों की कई मांगों को पूरा किया गया. किसानों पर लगाए गए कर हटा दिए गए. 28 मई 1954 में विजय सिंह पथिक ने अपनी आखिरी सांस ली, लेकिन आज भी वो भारतीयों के दिलों में ज़िंदा हैं. 

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