Dabur : 138 साल पहले खोले गए एक वैद्य के छोटे क्लीनिक से 1 लाख करोड़ के ब्रांड बनने का सफ़र

Nripendra

भारतीयों के लिए डाबर कोई नया नाम नही हैं. सालों से डाबर का च्यवनप्राशडाबर हनी लोग खाते आए हैं. इसकी लोकप्रियता इस बात से जानी जा सकती है कि कॉम्पिटिशन के दौर में भी ये अधिकांश भारतीयों का एक भरोसेमंद ब्रांड बना हुआ है. लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि करोड़ों की इस कंपनी की शुरुआत एक छोटे आयुर्वेदिक क्लीनिक से हुई थी. इसकी स्थापना करने वाले एक भारतीय वैद्य थे. आइये, इस लेख में जानते हैं डाबर ब्रांड की शुरुआती कहानी (History of Dabur company). 

लेख में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं History of Dabur company. 

डाबर की प्रारंभिक कहानी  

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भारत की आज़ादी से पहले की कई भारतीय कंपनियां आज भी अपने अस्तित्व के साथ बरक़रार हैं. इनमें डाबर का नाम भी शामिल है. जानकर हैरानी होगी कि डाबर की स्थापना एक भारतीय वैद्य के हाथों 1884 में की गई थी. ये वो दौर था जब मलेरिया और हैज़ा जैसी गंभीर बीमारियों से लोग पीड़ित थे. वो माहौल आज के करोना जैसा ही था. 

उस दौरान एक भारतीय आयुर्वेदिक वैद्य हुए जिनका नाम था डॉ. एस.के बर्मन. डॉ. एस.के बर्मन ने एक छोटा-सा क्लीनिक खोला और लोगों का इलाज करने लगे. वहीं, उन्होंने मलेलिया और हैज़ा जैसी गंभीर बीमारियों के लिए आयुर्वेदिक दवा भी बनाई. वहीं, इसके बाद उन्होंने स्वास्थ वर्धक उत्पादों को बनाना शुरु किया. इसे ही डाबर कंपनी की नींव (History of Dabur company) कहा जाता है. 

कैसे पड़ा डाबर नाम?  

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बहुतों के मन में ये सवाल आ सकता है कि आख़िर कंपनी का नाम डाबर ही क्यों रखा गया. दरअसल, कंपनी के नाम डाबर में ‘डा’ डॉक्टर शब्द से लिया गया है और ‘बर’ बर्मन से. कहते हैं 1896 तक कंपनी के उत्पाद इतने लोकप्रिय हो गए थे कि डॉ. बर्मन को एक अलग फ़ैक्ट्री बनानी पड़ी थी. 

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डॉ. बर्मन के निधन के बाद डाबर  

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 डाबर कंपनी के संस्थापक डॉ. बर्मन 1907 में इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए. इसके बाद कंपनी की बागडौर उनके पुत्र सी.एल बर्मन के कंधों पर आ गई थी. अपने कड़ी मेहनत से सी.एल बर्मन ने अपने पिता की कंपनी को और मजबूत करने का काम किया. उन्होंने डाबर की रिसर्च लैब खोली और उत्पादों का विस्तार किया.  

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ऊंचाइयों तक पहुंचा डाबर  

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सी.एल बर्मन के तहत कंपनी आसमान की ऊंचाइयां छू रही थी. 1972 में दिल्ली के साहिबाबाद में एक विशाल फ़ैक्ट्री का निर्माण किया गया और साथ ही रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बनाया गया. कहते हैं कि कंपनी ने इतना प्रॉफ़िट हासिल कर लिया था कि कंपनी को 1994 में अपने शेयर लॉन्च करने पड़े. भरोसेमंद कंपनी होने की वजह से डाबर का IPO यानी Initial public offering 21 गुणा ज़्यादा सब्सक्राइब किया गया था. 

वहीं, कंपनी ने इतना ग्रोथ कर लिया था कि कंपनी को तीन हिस्सों (Dabur Healthcare, Family Products और Ayurvedic Products) में बांट दिया गया. कहते हैं कि साल 2000 में कंपनी का टर्नओवर पहली बार 1 हज़ार करोड़ पार पहुंचा था. वहीं, 2006 में कंपनी का मार्केट कैप 2 बिलियन डॉलर जंप कर गया था. वहीं, कंपनी ने समय के साथ कई अन्य कंपनियों को अपने अधिकार में ले लिया जिसमें बल्सरा ग्रुप, फे़म केयर फ़ार्मा, होबी कॉस्मेटिक व अंजंता फ़ार्मा की 30-Plus ब्रांड शामिल हैं.   

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