कहानी सत्येंद्रनाथ टैगोर की, जो अंग्रेज़ों का ग़ुरूर तोड़कर बने थे भारत के पहले IAS अधिकारी

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सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) मशहूर लेखक, कवि, साहित्यकार, संगीतकार और समाज सुधारक के तौर पर जाने जाते हैं. सन 1864 में उन्होंने ‘इंडियन सिविल सर्विस’ जॉइन की थी. सत्येंद्रनाथ टैगोर को भारत के पहले IAS अधिकारी (India First IAS Officer) के तौर पर भी जाना जाता है. वो विश्वविख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के बड़े भाई थे. लेखक, कवि, साहित्यकार के अलावा उन्होंने महिलाओं के उत्थान में भी अपना काफ़ी योगदान दिया था. (Satyendranath Tagore India First IAS Officer)

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चलिए भारत के पहले IAS ऑफ़िसर सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) के बारे में कुछ रोचक बातें भी जान लीजिये-  

सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता में हुआ था. उन्होंने कोलकाता के मशहूर ‘प्रेसिडेंसी कॉलेज’ से पढ़ाई की थी. सन 1859 में सत्येंद्रनाथ का विवाह ज्ञानदानंदिनी देवी (Jnanadanandini Devi) से हुआ था. सत्येंद्र नाथ और ज्ञानदानंदिनी के दो बच्चे थे. बेटा सुरेंद्रनाथ टैगोर (Surendranath Tagore) बंगाली लेखक, साहित्यिक विद्वान और अनुवादक थे, जिन्हें रवींद्रनाथ टैगोर की कई रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. जबकि बेटी इंदिरा देवी चौधुरानी (Indira Devi Chaudhurani) भी साहित्यकार, लेखिका और संगीतकार थीं.

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सत्येंद्रनाथ टैगोर ने तोडा अंग्रेज़ों का गुरुर

इंडियन सिविल सर्विस (ICS), जिसे आधिकारिक तौर पर ‘इंपीरियल सिविल सर्विस‘ के रूप में जाना जाता है. ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1858 और 1947 के बीच ये भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की ‘उच्च सिविल सेवा’ थी. ब्रिटिशकाल के दौरान सन 1861 में ‘इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट 1861’ के तहत ‘भारतीय सिविल सेवा’ का गठन किया गया. इसके बाद जून 1863 में सत्येंद्रनाथ टैगोर (पहले भारतीय) का चयन हुआ था. इससे पहले तक केवल अंग्रेज़ ही इस पद के लायक समझे जाते थे.

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भारत के पहले IAS अधिकारी  

सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) सन 1862 में IAS की परीक्षा के लिए लंदन चले गये. सन 1863 में ‘इंडियन सिविल सर्विस’ की परीक्षा में उनका चयन हो गया. ट्रेनिंग के बाद सन 1864 में वो भारत लौट आये. बतौर IAS अधिकारी सत्येंद्रनाथ टैगोर की पहली नियुक्ति ‘बॉम्बे प्रेसिडेंसी’ में हुई. इस दौरान 1865 में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ‘अहमदाबाद’ में असिस्टेंट मजिस्ट्रेट और कलेक्टर के पद पर की. सन 1882 में उनकी नियुक्ति कर्नाटक के ‘कारवार’ में ज़िला न्यायाधीश के रूप में हुई. वो सिविल सर्विसेज़ में क़रीब 30 सालों तक रहे. इस दौरान अधिकारियों का मुख्य काम टैक्स की उगाही करना होता था.

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भारत में परीक्षा के लिए 50 साल का संघर्ष

सिविल सर्विस परीक्षा (Civil Service Exam) में ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय भाग ले सके, इसके लिए भारतीयों ने क़रीब 50 सालों तक संघर्ष किया. इस दौरान भारतीय चाहते थे कि ये परीक्षा लंदन की बजाय भारत में आयोजित की जाये, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके ख़िलाफ़ थी. भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आख़िरकार ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और सन 1922 से ये परीक्षा भारत में होने लगी.

सत्येंद्रनाथ का भारतीय साहित्य में योगदान 

सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) लेखक, कवि और साहित्यकार के तौर पर काफ़ी मशहूर रहे. उन्होंने बांग्ला और इंग्लिश में कई किताबें लिखीं हैं. इसके अलावा उन्होंने कई किताबों का संस्कृत से बांग्ला में अनुवाद भी किया. सत्येंद्रनाथ टैगोर को काम के सिलसिले में देशभर का भ्रमण करना पड़ता था. इसीलिए उन्हें बांग्ला, हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा भी कई अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था. उन्होंने मशहूर क्रांतिकारी बाल गंगाधर और तुकाराम की कई किताबों का बांग्ला में अनुवाद भी किया था.

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​महिलाओं की आज़ादी में योगदान

सत्येंद्रनाथ टैगोर ने महिलाओं की आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी. वो अपनी पत्नी ज्ञानंदिनी देवी को अपने साथ इंग्लैंड ले जाना चाहते थे, लेकिन उनके पिता देबेंद्रनाथ ने इसकी अनुमति नहीं दी. IAS अधिकारी बनने के बाद जब वो बॉम्बे (मुंबई) में पोस्टेड थे तो उन्होंने अपनी पत्नी को भी अन्य ब्रिटिश अधिकारियों की पत्नियों की तरह रहने में मदद की. जब वो कलकत्ता वापस आए तो ‘गवर्नमेंट हाउस’ में आयोजित एक पार्टी में अपनी पत्नी को भी अपने साथ ले गये. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि कोई बंगाली महिला किसी खुले स्थान पर दिखे. शुरू में लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे, लेकिन पर्दा सिस्टम को ख़त्म करने की दिशा में ये पहला कदम था.

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सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) ने सन 1877 में एक और साहसिक कदम उठाते हुए अपनी पत्नी ज्ञानदानंदिनी देवी और बच्चे सुरेंद्रनाथ टैगोर को इंग्लैंड भेज दिया. भारत में ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोई महिला अपने बच्चे के साथ अकेले विदेश गईं. इस दौरान ज्ञानदानंदिनी और सुरेंद्रनाथ कुछ दिनों तक अपने किसी रिश्तेदार के पास रहे और इसके बाद वो लंदन में अकेले रहने लगे. ये महिलाओं की आज़ादी के लिए उनका एक क्रांतिकारी कदम था.  

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ब्रह्मो समाज से जुड़ाव 

सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore‘ब्रम्हो समाज’ के सदस्य भी थे. उन्होंने जीवन भर ब्रह्मो समाज का प्रचार किया. सन 1876 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के बेलगछिया में हिंदी मेला का आयोजन करने में अहम भूमिका निभाई और इसके लिए गीत लिखे. इसके बाद सन 1907 में वो ‘आदि ब्रह्मो समाज’ के अध्यक्ष और आचार्य बन गये. 

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30 साल तक ‘सिविल सर्वेंट’ की नौकरी करने के बाद सन 1897 में सत्येंद्रनाथ टैगोर महाराष्ट्र के ‘सतारा’ के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत हो गये. रिटायरमेंट के बाद वो कलकत्ता लौट आये और साहित्य लेखन में लग गये. क़रीब 20 सालों तक देश-विदेश में बतौर लेखक, कवि, साहित्यकार, संगीतकार, समाज सुधारक और भाषाविद प्रसिद्धि हासिल करने के बाद 9 जनवरी, 1923 को कोलकाता में उनका निधन हो गया.

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