Mughal Gardens: दिल्ली का राष्ट्रपति भवन जितना चर्चा में रहता है उतना ही इसका मुग़ल गार्डन भी चर्चा में रहता है. इस गार्डन में 12 तरह के ट्यूलिप के फूल लगे हैं, जो इस साल 31 जनवरी से 26 मार्च तक आम लोगों के लिए खोला गया है. हालांकि, जब ये बना था तब इसकी ख़ूबसूरती आम लोगों से अछूती थी क्योंकि इसमें आम लोगों का आना वर्जित था. फिर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे आम लोगों के लिए खोलने का आदेश दिया, तब से फरवरी से मार्च के बीच में इसे आम लोगों के लिए खोला जाता है.
हालांकि, इस गार्डन को मुग़लों ने नहीं, बल्कि अंग्रेज़ों ने बनवाया था, ब्रिटिश काल में ब्रिटिशों द्वारा राष्ट्रपति भवन या वायसराय हाउस में 15 एकड़ में फैले इस बगीचे में ट्यूलिप, लिली, डेफ़ोडिल सहित फूलों की हज़ारों प्रजातियां हैं. मुग़ल गार्डन (Mughal Gardens) का निर्माण ब्रिटिश द्वारा किए जाने पर भी इसे मुग़लों के नाम पर पहचान क्यों दी गई, इसके पीछे का इतिहास क्या है, जान लीजिए.
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ब्रिटिश शासन ने जब 1911 में कोलकाता से दिल्ली को अपनी राजधानी घोषित किया तो, इन्होंने वायसराय हाउस बनवाया, जिसे Edwin Lutyens और Herbert Baker ने डिज़ाइन किया. इसे दिल्ली के रायसीना पर्वत के पत्थरों को काटकर बनाया गया था, जिसे अब राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है.
इसमें वायसराय Lord Hardinge ने फूलों का एक बगीचा बनवाया, लेकिन उनकी पत्नी लेडी हार्डिंग को वो बगीचा कुछ ख़ास नहीं लगा. तब बगीचे का नक़्शा दोबारा बनवाया गया, उस नक़्शे को 1917 में Edwin Lutyens ने फ़ाइनल तैयार किया और फिर बगीचे का काम शुरू किया गया, जिसे बनने में पूरे 11 साल लगे और बगीचा 1928 में बनकर तैयार हुआ.
वेबसाइट के मुताबिक़,
इसका नाम मुग़लों के नाम पर रखने के पीछे की वजह इसकी बनावट है क्योंकि जब Edwin Lutyens इसे डिज़ाइन कर रहे थे उन्होंने अपनी डिज़ाइन को ताजमहल के बगीचों, जम्मू और कश्मीर के बाग, भारत और पर्शिया की पेंटिंग को ध्यान में रखते हुए की. जब मुग़ल बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने मुग़ल परंपरा के तहत देश में 1200 बगीचे बनवा रहे थे, तभी इसी परंपरा के चलते इस गार्डन को मुग़ल गार्डन नाम दे दिया गया. मुग़लों ने उस दौर में शालीमार बाग, साहिबाबाद या बेग़म बाग जैसे कई बगीचे बनवाए, जो मुग़लों के शासन के प्रतीक हैं.
मुग़ल गार्डन को चार भागों में बांटा गया है. ‘चतुर्भुजकार उद्यान’, ‘लंबा उद्यान’, ‘पर्दा उद्यान’ और ‘सर्कुलर उद्यान’, जिसमें सभी चबूतरों और फूलों की झाड़ियों को यूरोपीय क्यारियों और बगीचों से प्रभावित होकर डिज़ाइन किया गया है. इसमें जो दूब (एक प्रकार की घास) लगी है उसे कोलकाता से मंगाया था.
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आपको बता दें, गार्डन के नाम को कई बार बचलने की मांग उठी है, जिसमें हिन्दू महासभा ने राजेंद्र प्रसाद उद्यान करने की मांग की थी, लेकिन अब इस गार्डन का नाम बदल चुका है और इसे अमृत उद्यान नाम दिया गया है.