रानी वेलु नचियार: भारत की वो पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अंग्रेज़ों के घमंड को रौंद डाला

Abhay Sinha

भारत को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए अनगिनत लोगों ने अपना बलिदान दिया था. ऐतिहासिक रूप से 1857 की क्रांति को पहला स्वतंत्रता संग्राम माना गया. मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ बगावत का झंडा बुलंद किया जा चुका था. तमिलनाडु का शिवगंगई क्षेत्र भी एक ऐसा ही इलाका था, जहां की रानी वेलु नचियार (Rani Velu Nachiyar) ने अंग्रेज़ों के घमंड को चूर-चूर कर दिया था. 

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रानी वेलु नचियार ने न सिर्फ़ अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई की, बल्कि उन्हें हराया भी. ये काम उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले किया था. आज हम आपको इसी वीरांगना की कहानी बताने जा रहे हैं.

भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थी रानी वेलु नचियार

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रानी वेलु नचियार का जन्म 1730 ईस्वी में रामनाड साम्राज्य में हुआ था. वो राजा चेल्लमुत्थू विजयरागुनाथ सेथुपति (Chellamuthu Vijayaragunatha Sethupathy) और रानी स्कंधीमुत्थल (Sakandhimuthal) की एकलोती बेटी थीं. रानी वेलू को एक राजकुमार की तरह ट्रेनिंग दी गई थी. वो युद्धकला में पारंगत थीं. अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाएं जानती थीं. 

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16 साल की उम्र में उनका विवाह शिवगंगा राजा Muthuvaduganathaperiya Udaiyathevar के साथ कर दिया गया. दोनों की एक पुत्री हुई, जिसका नाम वेल्लाची रखा गया. 

अंग्रेज़ों के कारण छोड़ना पड़ा शिवगंगई

25 जून, 1772 को शिवगंगा सैनिकों को एक ब्रिटिश जनरल ने घेर लिया था. ऐसे में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसे कलैयार कोली युद्ध नाम से इतिहास में जाना जाता है. इस जंग में रानी वेलु के पति और कई सैनिक शहीद हो गए. हालात को देखते हुए रानू वेलु को अपना राज्य छोड़कर तमिलनाडु में डिंडीगुल जिले के पास एक जगह विरुप्पाची जाना पड़ा. यहां वो गोपाल नायकर के यहां रहीं. उनके साथ उनकी बेटी वेल्लाची और शिवगंगा के मारुथु भाई भी थे.

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इतिहास के पहले सुसाइड अटैक को दिया अंजाम

रानी वेलु नचियार ने अपने अंगरक्षक मारुथु भाइयों (वेल्लैमारुथु और चिन्नामारुथु) के साथ मिलकर सेना बनाने की तैयारी की. इस काम में उनकी मदद मैसूर के शासक हैदर अली और गोपाल नायकर ने भी की. इस दौरान वो डिंडिगुल के पहाड़ी किले में ही रहीं.

अंग्रेज़ों के खिलाफ़ उन्होंने 7 सालों तक भयंकर युद्ध लड़ा. 1780 में ही रानी वेलू नचियार और अंग्रेज़ी सेना का आमना-सामना हुआ. इस दौरान कुछ ऐसा हुआ, जो इतिहास में कभी नहीं हुआ था. रानी वेलू ने एक सुसाइड अटैक प्लान किया, जिसे उनकी सेना की कमांडर और वफ़ादार Kuyili ने अंजाम दिया.

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दरअसल, रानी वेलु को ख़बर लग गई थी कि अंग्रेज़ों ने अपना गोला-बारूद कहां रखा है. उसके बाद कुइली ने ख़ुद पर घी डाला, आग लगाकर अंग्रेज़ों के गोला-बारूद और हथियार घर में कूद पड़ीं. इस तरह कमांडर कुइली ने दुनिया के पहले आत्मघाती हमले को अंजाम दिया. 

आख़िरकार एक लंबी लड़ाई के बाद अंग्रेज़ों को शविगंगा से भागने को मजबूर होना पड़ा. जब वेलु नचियार ने शिवगंगा को दोबारा हासिल किया,तो  चिन्नामरुथु को देश के मुख्यमंत्री के रूप में और वेल्लैमारुथु को राज्य के कमांडर-इन-चीफ़ बनाया. रानी वेलु नचियार ने 1789 ई. तक शिवगंगा पर शासन किया. उसके बाद शासन की ज़िम्मेदारी मारुथु भाइयों पर रही. 1796 में रानी वेलु का निधन हो गया. 2008 को रानी के सम्मान में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था.

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