संभाजी महाराज: आज हम आपको मराठा साम्राज्य के उस महान शासक के बारे में बताएंगे जिसके त्याग और बलिदान को आज भी महाराष्ट्र के लोग याद करते हैं. ये वो वीर योद्धा था जिसके बारे में कहा जाता था कि उसने अपने शासन में कोई युद्ध नहीं हारा. उसने मराठा साम्राज्य को बचाए रखने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे.
बात हो रही है छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji) के सबसे बड़े पुत्र संभाजी महाराज की. ये मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे. चलिए आज जानते हैं इनकी वीरता की कहानी.
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16 साल की उम्र में जीता पहला युद्ध
संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj) का जन्म 14 मई 1657 में पुणे में हुआ था. जब वो 2 साल के थे तभी उनकी मां सई बाई का देहांत हो गया. उनका पालन पोषण उनकी दादी जीजाबाई ने किया. जब वो बड़े हुए तो शिवाजी महाराज ने उन्हें अच्छी शिक्षा पाने के लिए आमेर के राजा जयसिंह के यहां भेज दिया. संभाजी महाराज ने यहां घुड़सवारी, तीरंदाजी, 13 भाषाएं, तलवारबाजी की शिक्षा ली. 16 साल की उम्र में उन्होंने पहला युद्ध लड़ा जिसमें वो विजयी रहे.
1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उन्हें राजगद्दी पर बैठाया गया. उन्होंने अपने 9 साल के शासनकाल में मुग़लों और पुर्तगालियों जमकर लोहा लिया और कोई भी युद्ध हारा नहीं.
मुग़लों से आमना-सामना
संभाजी के शासनकाल में मुग़ल मराठाओं के कट्टर दुश्मन थे. उनके ख़िलाफ संभाजी ने पहली बड़ी लड़ाई मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में लड़ी. बुरहानपुर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था. मुग़ल बादशाह औरंगजे़ब (Aurangzeb) यहीं से दक्कन में अपने शासन के विस्तार की योजना बना रहा था, ये संभाजी को पता चल गया इसलिए उन्होंने पहले ही हमला कर इस पर कब्ज़ा कर लिया. ये मुग़लों के लिए बड़ा झटका था.
दक्कन में कब्ज़ा करने के उद्देश्य से औरंगज़ेब ने रामशेज क़िले पर हमला किया, लेकिन यहां भी उसकी सेना को दबे पांव लौटना पड़ा. 1682-1688 के बीच मुग़लों और मराठाओं के कई युद्ध हुए जिसमें संभाजी के नेतृत्व वाली सेना की जीत हुई.
पुर्तगालियों को भी जमकर छकाया
दूसरी तरफ गोवा में पुर्तगालियों (Portuguese) की दमनकारी नीतियों से परेशान लोग परेशान थे. उनकी मदद संभाजी ने की. वो उनकी सेना छापामार युद्ध कर पुर्तगालियों को कमज़ोर कर दिया. अब पुर्तगाली भी उनके दुश्मन बन बैठे थे, उन्होंने संभाजी को हराने के लिए मुग़लों से हाथ मिला लिया. 1687 में वाई की लड़ाई में मराठा सेना के सेनापति और संभाजी के प्रिय मित्र हंबीरराव मोहिते मारे गए. इससे मराठा सेना का मनोबल काफ़ी टूट गया.
औरंगज़ेब के जुल्म के सामने भी नहीं झुके संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj)
संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj)भी इस ख़बर को सुन टूट गए थे. धीरे-धीरे बहुत से सैनिकों ने उनका साथ छोड़ दिया, इधर कुछ रिश्तेदारों ने भी उन्हें धोखा दिया. इसके बाद 1689 में मुग़ल सेना ने संभाजी को बंदी बना लिया. उन्हें औरंगज़ेब के दरबार में पेश किया गया. यहां उसने संभाजी के सामने अपने सारे क़िले और खजाने की बात उन्हें बताने को कहा और धर्म परिवर्तन करने पर जोर दिया. मगर संभाजी महाराज ने कभी उनके जुल्मों के आगे घुटने नहीं टेके. वो उनकी क़ैद में ही शहीद हो गए.
मराठा साम्राज्य के लिए किए गए उनके योगदान और वीरता की कहानियों को आज भी सुनाया जाता है.