सत्येंद्र नाथ बोस: भारत का वो महान वैज्ञानिक जिसे क़ाबिलियत के अनुरूप देश में नहीं मिला सम्मान

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सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) को सन 1920 के दशक में क्‍वॉन्‍टम फिजिक्‍स (Quantum Physics) में किए गए उनके शोध के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. सत्‍येंद्र नाथ बोस भारत के एक ऐसे महान वैज्ञानिक थे जिनकी Quantum Theory के मुरीद मशहूर वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्‍टाइन भी हो गए थे. बावजूद इसके बोस की काबिलियत के अनुरूप भारत में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे. यहां तक कि उनके लिखे शोध पत्रों को देश की किसी भी पत्रिका ने जगह तक नहीं दी. 

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भारत के महान वैज्ञानिक सत्‍येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता सुरेंद्रनाथ बोस ‘ईस्‍ट इंडियन रेलवे कंपनी’ के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में काम करते थे. सत्‍येंद्र नाथ उनके 7 बच्‍चों में सबसे बड़े थे. इनकी शुरुआती पढ़ाई नाडिया ज़िले के बाड़ा जगुलिया गांव में हुई. इसके बाद उन्‍होंने कोलकाता के ‘प्रेजिडेंसी कॉलेज’ से इंटर किया. इसके बाद ‘प्रेजिडेंसी कॉलेज’ से ही सन 1915 में उन्होंने ‘अप्‍लाइड मैथ्‍स’ से अपनी MSc पूरी की. बोस ने 1916 में ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ के ‘साइंस कॉलेज’ में रिसर्च स्कॉलर के रूप में प्रवेश लिया और Theory of Relativity की पढ़ाई शुरू की.

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चलिए जानते हैं भारत के महान वैज्ञानिक सत्‍येंद्र नाथ बोस के बारे में जानते हैं जिनकी Quantum Theory के आइंस्टाइन भी मुरीद हो गए थे.

मैथ्स में मिले 100 में से 110 अंक 

सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) के बारे में कहा जाता है उन्होंने इंटरमीडिएट में गणित में 100 में से 110 अंक हासिल किये थे. इस दौरान बोस ने सारे सवाल हल कर दिए और कई सवालों को अलग-अलग तरीकों से भी हल किया था. परीक्षक ने जब कॉपी जांची तो बोस को 100 में से 110 अंक मिले. इसके अलावा उन्‍होंने MSc भी रिकॉर्ड नंबरों से पास की थी, जो आज भी एक रिकॉर्ड है. भौतिकी का छात्र होने के बावजूद बोस गणित के सूत्रों के साथ खेलते थे. सवाल हल करने की छोटी से लेकर जटिल विधियां उनके मनोरंजन का हिस्सा हुआ करती थीं.

सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) 

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जब सत्येंद्रनाथ बोस ने की नई खोज

गैस के अणुओं की गति गणित के औसत के नियम से समझी जाती है. मैक्सवेल और बोल्ट्समैन ने इसके लिए सांख्यिकी की खोज की. आधुनिक भौतिक विज्ञान में इसकी आवश्यकता कदम-कदम पर पाई जाती है, लेकिन अब इसका स्वरूप बदला हुआ है. मैक्सवेल -वोल्ट्समैन के नियम तब तक ही सही रहे जब तक वैज्ञानिकों को सिर्फ परमाणुओं की जानकरी थी. वैज्ञानिकों को जैसे ही ये पता चला कि परमाणु के भीतर भी अनेक परमाणु-कण हैं और उनकी गतियां अनोखी हैं. तब ये नियम फेल हो गया. ऐसे में डॉ. सत्येंद्रनाथ बोस ने नये नियमों की खोज की, जो आगे चलकर Bose-Einstein Statistics के नाम से जाने गए.

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सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) ने सन 1924 में ‘प्लांक्स लॉ एंड लाइट क्वांटम’ नामक शोधपत्र लिखा, लेकिन भारत की वैज्ञानिक सोच के प्रति उस समय उदासीनता का दौर था. लिहाजा बोस के इस लेख को किसी पत्रिका ने जगह नहीं दी गई. इसके बाद उन्होंने अपना ये शोधपत्र को मशहूर वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्‍टाइन को भेजा. आइंस्‍टाइन इससे बेहद प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में प्रकाशित करवा दिया. इस जर्नल में ही पहली बार ‘बोसोन’ शब्द का इस्तेमाल हुआ था. बोस की खोज को ‘बोसोन’ नाम आइंस्टीन ने ही दिया था.

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Bose-Einstein Statistics

सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) को इस शोध की वजह से यूरोप की ‘साइंस लैब’ में काम करने का मौका मिला. बोस के इस नए सिद्धांत से भौतिक विज्ञान को नए आयाम मिले. अलबर्ट आइंस्टाइन ने इस पर सत्‍येंद्र नाथ बोस के साथ काम किया और सामने आई पदार्थ की एक और अवस्था जिसे ‘Bose-Einstein Statistics’ के नाम से जाना जाता है. इस खोज को मौजूदा दौर में ‘Quantum Statistical Mechanic’ का आधार माना जाता है.

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अन्य वैज्ञानिकों को उनके शोध पर मिला नोबेल

दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने परमाणु-कणों का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. इनमें से एक का नामकरण डॉ. सत्‍येंद्र नाथ बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मिऑन’ रखा गया. सत्येन्द्र नाथ बोस को आज इसीलिए भी याद किया जाता है कि क्योंकि उन्‍हें उनकी काबिलियत के अनुरूप सम्‍मान नहीं मिला. जबकि उनके खोजे गए पार्टिकल ‘बोसॉन’ पर काम करने के लिए कई वैज्ञानिकों को ‘नोबेल पुरस्‍कार’ मिला लेकिन पर सत्‍येंद्र नाथ बोस को इसके लिए ‘नोबेल’ नहीं दिया गया.

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सत्‍येंद्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) सन 1926 में यूरोप से भारत लौटे और बतौर प्रोफ़ेसर 1950 तक ‘ढाका विश्वविद्यालय’ में पढ़ाया. इसके बाद शांतिनिकेतन में ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ के कुलपति बने. सन 1954 में भारत सरकार ने सत्येन्द्र नाथ बोस को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्‍मान ‘पद्मविभूषण’ से सम्‍मानित किया. 4 फ़रवरी,1974 को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया.

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