Story of Dadua Dacoit : इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय भूमि कई कुख़्यात डकैतों का घर भी रही है. वीरप्पन, निर्भय सिंह गुर्जर, फूलन देवी व सुल्ताना डाकू कुछ ऐसे नाम रहे हैं, जिनकी कहानी आज भी लोगों के होश उड़ाने का काम करती है. वहीं, इस सूची में एक और कुख़्यात नाम शामिल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो जंगल से अंदर से ही सरकारें बना दिया करता है. वो डैकत था ददुआ, जिसका ख़ौफ़ उत्तर प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश तक था. आइये, जानते हैं ददुआ डकैत की पूरी कहानी.
आइये, अब विस्तार से जानते हैं इस डाकू (Story of Dadua Dacoit) की पूरी कहानी.
कैसे बना डकैत?
Story of Dadua Dacoit : ये तो आप जानते ही होंगे कि कोई भी व्यक्ति पेट से चोर या डकैत बनकर नहीं निकलता. वक़्त और हालात इंसान को ऐसा करने पर मजबूर कर देते हैं या इसके और भी कई कारण हो सकते हैं. ददुआ डकैत के साथ भी कुछ ऐसा ही था. उसके जीवन में कुछ ऐसा घटा, जिससे एक सामान्य इंसान बीहड़ का बागी बन गया. ददुआ का असल नाम था शिवकुमार पटेल. वो उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के देवकली गांव का रहने वाला था.
चंबल में सीखी डकैती
ददुआ चंबल के कुख़्यात डकैत राजा रागोली और गया कुर्मी के गिरोह का हिस्सा बन गया था. ददुआ (Story of Dadua Dacoit) ने क़रीब चार सालों तक उनसे डकैती के गुर और तेंदु पत्तों का कारोबार सीखता रहा. वहीं, जब राजा रागोली को 1983 में मार दिया गया और गया कुर्मी ने सरेंडर कर दिया, तो उसने डाकू सूरज भान के साथ गिरोह की कमान संभाली. वहीं, 1984 में सूरज भान की गिरफ़्तारी के बाद ददुआ ने अपना ख़ुद का गिरोह तैयार कर लिया था.
जब पहली बार ददुआ चर्चा में आया
कहते हैं कि ददुआ पहली बार तब चर्चा में आया, जब उसने 1986 में एक गांव के क़रीब 9 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. उसे शक था कि ये लोग उसकी मुख़बिरी कर रहे थे. वहीं, 1996 में उसने एक गांव के तीन लोगों की हत्या कर गांव में आग लगा दी थी. वहीं, कहते हैं कि 1992 में एक बार वो पुलिस के चंगुल में फंसते-फंसते रह गया था. वो शातीर था, इसलिए बच निकला. माना जाता है कि उसपर 400 आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें 200 अपहरण, डकैती और क़रीब 150 हत्याएं थीं.
बना किंगमेकर
कहते हैं कि ददुआ (Story of Dadua Dacoit) डकैत को राजनीति महत्व समझाने वाला डाकू गया कुर्मी था. ग़रीब व शोषित समाज के बीच उसकी छवि एक रॉबिन हुड की तरह थी. वहीं, ऐसा माना जाता है कि क़रीब 500 गांवों में ददुओ के प्रधान थे और उसका प्रभाव विधानसभा क्षेत्र से लेकर लोक सभा सीट तक था. वहीं, उसके बारे में कहा जाता था कि बिना उसके सपोर्ट के कोई भी बुंदलेखंड में जीत नहीं सकता था. वो जंगल के अंदर से ही वोट जुटाने का काम कर दिया करता था. इसका फायदा कई राजनेताओं ने उठाया था.
ददुआ का मंदिर
जानकर हैरान होगी कि ददुआ के नाम का एक मंदिर भी है. ये मंदिर फतेहपुर के नरसिंहपुर कबराहा गांव में बनाया गया है. कहते हैं कि कभी इस गांव में पुलिस के हाथों आते-आते रह गया था. उसने मन्नत मांगी थी कि अगर वो यहां से बच निकल गया, तो यहां एक मंदिर का निर्माण करवाएगा. इस मंंदिर में आप ददुआ की मूर्ति भी देख सकते हैं.
मारा गया था पुलिस एनकाउंटर में
कहते हैं कि ददुआ पर साढ़े पांच लाख का इनाम था. वहीं, 27 अगस्त 2007 में वो पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. दोनों की मुठभेड़ मानिकपुर थाना क्षेत्र के आल्हा गांव के पास हुई थी. वहीं, कहते हैं कि पुलिस रिकॉर्ड में मौजदू तस्वीर और ददुआ मंदिर में मौजूद मूर्ति के अलावा किसी ने ददुआ का चेहरा नहीं देखा.