Story of Polson Butter in India: वैसे तो आज बटर के कई ब्रांड मार्केट में उपलब्ध हैं, लेकिन भारत में ‘अमूल का बटर’ सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला बटर है. भारत में डेयरी उत्पादों के ब्रांड्स में ‘Amul’ एक भरोसेमंद ब्रांड है. लेकिन, दोस्तों ‘Amul’ से पहले भारत में डेयरी उत्पादों का एक और ब्रांड था, जिसके बटर का बोलबाला था भारत में. वो था ‘पोलसन का बटर’. इस ख़ास लेख में जानते हैं पोलसन ब्रांड का इतिहास और इसकी कामयाबी की कहानी.
आइये, विस्तार से पढ़ते हैं भारत में पोलसन ब्रांड की कहानी (Story of Polson Butter in India)
मक्खन की मांग
History of Butter in India: पोलसन बटर की कहानी भारत में अंग्रेज़ों के आने के वक़्त से जुड़ी है. दरअसल, जब भारत में अंग्रेज़ों का आगमन हुआ, तो बटर की कमर्शियल डिमांड ज़्यादा बढ़ गयी थी. हालांकि, भारत में बटर यानी मक्खन खाने का चलन पहले से ही रहा है. खाद्य इतिहासकार K. T. Achaya के अनुसार, कोलकाता की Eliza Faye अपने लंच में बटर भी खाती थीं. ये वो दौर था जब मक्खन, दूध की मलाई बाकी अन्य मिल्क उत्पाद घर में ही बनाये जाते थे.
जब घरों में बनने वाला बटर बन गया कमर्शियल बटर
Butter Making in India: जैसा कि हमने बताया कि भारत में पहले बटर आम रूप से घर में ही बनाया और खाया जाता था, लेकिन अंग्रेज़ों के आने के बाद इसकी डिमांड बढ़ी और एक पारसी युवक ने आम बटर को बना दिया एक कर्मशियल उत्पाद. उस युवका का नाम था पेस्तोनजी इडुलजी (Pestonjee Eduljee), जो पारसी समुदाय से संबंध रखते थे.
100 रुपये लेकर शुरू किया था व्यापार
Story of Polson Butter in India in Hindi: The Amul India Story के लेखक Ruth Heredia के अनुसार, Pestonjee Eduljee ने अपना कारोबार 100 रुपये में शुरू किया था और ये रुपये उनहोंने अपनी बहन से उधार लिये थे. लेकिन, ये कारोबार कॉफ़ी भूनने और पीसने का था. पीसी हुई कॉफ़ी को घर-घर बेचा जाता था. वहीं, जो स्टॉल उन्होंने किराये पर ली थी, उसका 8 रुपये महीने किराया जाता था.
कैसे पड़ा ‘पोलसन’ नाम
Story of Polson Butter in India in Hindi: यहां ये बात जानना ज़रूरी है कि लोकप्रिय होने से पहले पोलसन डेयरी ब्रांड नहीं बल्कि कॉफ़ी बेचने की दुकान हुआ करती थी. वहीं, ये जानना भी दिलचस्प है कि इसका नाम पोलसन कैसे पड़ा.
दरअसल, Pestonjee को उन्हें दोस्त ‘पॉली’ कहकर बुलाया करते थे. थोड़ा अंग्रेज़ी टच लाने के लिए इसे पोलसन कर दिया गया है और इस तरह ब्रांड का नाम पोलसन पड़ गया. वहीं, उनके सहायकों में अंग्रेज़ और उच्च वर्गीय लोग शामिल थे.
व्यापार जैसे बढ़ा Eduljee ने दुकान बढ़ाई और पोलसन फ़्रेंच कॉफ़ी लांच की, जिसे वो काफ़ी में कासनी (Chicory). 1910 तक उन्होंने अपना व्यापार ठीक-ठाक स्थापित कर लिया था. वहीं, Eduljee के ग्राहकों में अंग्रेज़ों की एक बड़ी संख्या मौजूद थी.
पोलसन बटर
अब तक Eduljee कॉफ़ी ही बेच रहे थे, लेकिन ये जानना दिलचस्प है कि उन्होंने बटर को बेचना कैसे शुरू कर दिया. दलअसल, व्यापार ठीक-ठाक स्थापित होने के बाद उन्होंने इसका विस्तार करने की सोची और नए अवसर की तलाश में लग गए. इस दौरान उनकी मुलाक़ात Supply Corps से हुई, जो देश की सेना की एक ब्रांच, जो सशस्त्र बलों चीज़ों की आपूर्ति कराती है.
Supply Corps ने बताया कि सेना को मक्खन की कमी हो रही है. Eduljee इस मौक़े को हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे और इसलिये उन्होंने गुजरात के केड़ा गांव जो अब खेड़ा के नाम से जाना जाता है वहां डेयरी शुरू की और प्रोडक्शन बढ़ाने के लिये सेना और रेलवे के अधिकारियों से संपर्क किया.
Eduljee ने उस दौरान अंग्रेज़ों और अमेरिकी सैनिकों को बटर की आपूर्ति कराई. तो इस तरह कॉफी बनाने वाली ‘पोलसन बटर’ बनाने लगाने लग गई.
तीन युद्धों का अहम योगदान
Ruth Heredia बताते हैं कि पोलसन बटर की सफलता के पीछे इतिहास के तीन युद्धों का अहम योगदान रहा है, पहला Boer War और दो विश्व युद्ध. इन युद्धों में अमेरिकी और अंग्रेज़ी सैनिकों को पोलसन बटर की आपूर्ति कराई गई थी. Ruth Heredia आगे ये भी बताते हैं कि सैनिकों के उच्च वर्गीय के महिलाओं की ग्रोसरी लिस्ट में पोलसन बटर का भी नाम शामिल हो गया.
इस बटर के साथ गिफ़्ट कूपन भी आने लग गए थे, जिससे इसकी डिमांड और बढ़ गई थी. कहते हैं कि 1945 तक इसका उत्पादन प्रतिवर्ष तीन मिलियन पाउंड तक बढ़ गया था.
इसकी लोकप्रियता इस बात से भी समझी जा सकती है कि कश्मीर में चापलूसों को पोलसन लगाना कहा जाने लगा था यानी ये बटर का पर्यायवाची बन गया था.
कहते हैं कि अमूल बटर की तुलना में पोलसन बटर ज़्यादा क्रीमी हुआ करता था. जब भारत में अमूल बटर आया, उस वक़्त तक पोलसन का ही बोलबाला था.
लंबे समय तक अमूल नहीं कर पाया ता बराबरी
पोलसन का स्वाद ग्राहकों के मुंह में लग चुका था. जानकारी के अनुसार, पोलसन की डेयरी में क्रीम को खट्टा होने के लिए कुछ दिनों तक छोड़ दिया जाता था, जिससे मक्खन में अलग स्वाद आता था. इसके बाद इसमें नमक मिलाया जाता था. दरअसल, ये एक यूरोपीयन तरीक़ा है. वहीं, दूसरी ओर अमूल ताज़ी क्रीम से मक्खन बना रहा था. काफ़ी समय तक अमूल पोलसन की बराबरी नहीं कर सका था, क्योंकि ग्राहकों को पोलसन की तुलना में अमूल का स्वाद फ़ीका नज़र आ रहा था.
वहीं, धीरे-धीरे अमूल ने मार्केटिंग स्ट्रैटिजी और ग्राहकों के स्वाद को ध्यान में रखकर उत्पाद बाज़ार में उतारे. इसका परिणाम ये हुआ कि पोलसन का मार्केट में एकाधिकार वाला अस्तित्व खत्म हो गया. अमूल अपनी निष्पक्ष नीती के साथ आगे बढ़ रहा था.
अंत में ये हुआ की Eduljee की कंपनी बिक गई और ये चमड़ा उत्पादन का काम करने लगी.