कहानी कानपुर के उस ‘फ़ाउंटेन पेन’ की, जो 80s और 90s में हर भारतीय के हाथों की शान होती थी

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भारत में 80 और 90 के दशक में फ़ाउंटेन पेन (Fountain Pen) बेहद पॉपुलर हुआ करते थे. ज़माने में स्कूल के बच्चों से लेकर बड़े बड़े अधिकारियों के हाथों में यही फ़ाउंटेन पेन करती थी. हालांकि, उस दौर में डॉट पेन भी मार्किट में उपलब्ध थे, लेकिन ये स्कूलों में बैन थे. 90 के दशक के हमने ‘इंक पॉट वाली पेन’ से लेकर ‘फ़ाउंटेन पेन’ तक के सफ़र को बख़ूबी जिया है. उस दौर में 90 प्रतिशत से अधिक लोग ‘फ़ाउंटेन पेन’ का ही इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन समय के साथ 80 और 90 के दशक की वो सुनहरी यादें बस सपना बनकर ही रह गई हैं.

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चलिए जानते हैं भारत में कितना पुराना है फ़ाउंटेन पेन (Fountain Pen) का इतिहास

भारत में फ़ाउंटेन पेन (Fountain Pen) का इतिहास बेहद पुराना है. सन 1932 में भारत में निर्मित पहला ‘फ़ाउंटेन पेन’ न्यापति सुब्बा राव पंतुलु नाम के व्यक्ति को मिला था, तब उनकी उम्र 76 साल थी. इस हिसाब से वो भारत में निर्मित पहले फ़ाउंटेन पेन का अधिक इस्तेमाल नहीं कर पाए होंगे. इसके बाद 1932 में ही एबोनाइट से बनी दूसरी पेन महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को भेजी गई थी.

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कानपुर शहर था फ़ाउंटेन पेन का किंग

भारत में 80 और 90 के दशक में कानपुर शहर फ़ाउंटेन पेन (Fountain Pens) बनाने वाला देश का सबसे अग्रणी शहर हुआ करता था. उस दौर में इस शहर में 10 से अधिक बड़ी फ़ैक्ट्रियां हुआ करती थीं, जो पूरी दुनिया में भारी मात्रा में ‘फ़ाउंटेन पेन’ का निर्यात करती थीं. 80 और 90 के दशक में कानपुर के ‘फ़ाउंटेन पेन’ का डंका पूरी दुनिया में बजता था. कानपुर में आज केवल Kanwrite नाम की कंपनी ही Fountain Pens बनाने के लिए जानी जाती है, जो 1986 से पेन बना रही है.

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कैसे हुआ Fountain Pens का दौर ख़त्म

90 के दशक के आख़िरी सालों में भारत में जैसे ही डॉट पेन, बॉल पेन, जेल पेन और रोलर पेन ने एक साथ एंट्री मारी तो Fountain Pens का साम्राज्य पूरी तरह से धराशाही हो गया. 21वीं सदी की शरुआत तक देश में ‘फ़ाउंटेन पेन’ का बाज़ार पूरी तरह से ख़त्म हो चला था. देश के कई शहर में मौजूद इसकी फ़ैक्ट्रियां भी बंद हो गईं थीं, लेकिन कुछ शौक़ीन लोगों के लिए ये फ़ैक्ट्रियां जैसे तैसे अपना गुज़ारा कर रहीं थीं. आर्थिक तंगी के चलते इनमें से कई फ़ैक्ट्रियों ने तो अपना पुश्तैनी काम छोड़ डॉट पेन, बॉल पेन, जेल पेन और रोलर पेन बनाना शुरू कर दिया था.

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21वीं सदी में ‘फ़ाउंटेन पेन’ का इस्तेमाल न के बराबर रह गया है. आज डॉट पेन, बॉल पेन, जेल पेन और रोलर पेन का ज़माना है. आज भारत में 95 प्रतिशत से अधिक मार्किट पर डॉट पेन, बॉल पेन, जेल पेन और रोलर पेन के पास है, लेकिन इस बीच अचानक से भारत समेत दुनिया के कई देशों में ‘फ़ाउंटेन पेन’ के शौक़ीनों की तादात बढ़ने लगी है.

दरअसल, पिछले क़रीब 5 सालों से दुनियाभर में एक बार फिर Fountain Pens का इस्तेमाल होने लगा है. भारत समेत दुनिया के क़रीब 25 देशों में कानपुर के ‘फाउंटेन पेन’ और ‘निब’ की डिमांड ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ने लगी है, जिसकी वजह से व्यापारियों ने राहत की सांस ली है.

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भारतीय Fountain Pens क्वालिटी व क़ीमत में बेस्ट

दुनिया में Fountain Pens बनाने वाले केवल 4 ही देश हैं. इनमें जर्मनी, जापान, चाइना और भारत शामिल हैं. जर्मनी और जापान में बनने वाले पेन बेहद महंगे होते हैं. जबकि चीन में बनने वाले पेन के क्वालिटी बेहद ख़राब होती है. ऐसे में भारत में बनने वाली पेन क्वालिटी और क़ीमत के मामले में बेस्ट होती हैं. ये क़ीमत के मामले में जर्मनी और जापान में तैयार होने वाले पेन से लगभग 5 गुना कम हैं. यही वजह है कि भारतीय ‘फ़ाउंटेन पेन’ पूरी दुनिया में ख़ासे मशहूर हैं.

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INKED HAPPINESS बातचीत में फ़ाउंटेन पेन निर्माता Kanwrite के मालिक संदीप अवस्थी ने बताया कि, ‘कानपुर शहर में आज Fountain Pen की 30 तरीक़े की ‘Nibs’ बनाई जाती हैं, जो दुनिया के क़रीब 25 देशों में सप्लाई की जाती हैं. आज दुनिया की कई बड़ी कंपनियां जैसे रेनॉल्ट, क्लिक, कैमलिन, लग्ज़र, रागा, डेक्कन अपनी ‘फ़ाउंटेन पेन’ में हमारी कंपनी की ‘निब’ ही इस्तेमाल कर रही हैं. इसके अलावा हम विदेशों में ‘फ़ाउंटेन पेन’ की सप्लाई भी करते हैं. आज हम दुनिया के 25 से अधिक देशों में हर साल क़रीब 2.5 करोड़ रुपये के पेन एक्सपोर्ट कर रहे हैं’.

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क्या ख़ासियतें हैं मॉर्डन Fountain Pens की

भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में आज फ़ाउंटेन पेन केवल शौक़ के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं. फ़ाउंटेन पेन में लगने वाली ‘निब’ 5 तरीके के मेटल से बनाई जाती है. इनमें प्लैटिनम, टाइटेनियम, 18 कैरेट गोल्ड, 14 कैरेट गोल्ड और स्टेनलेस स्टील शामिल हैं. लेकिन मार्किट में गोल्ड व प्लैटिनम की ‘निब’ की डिमांड सबसे ज़्यादा है. भारत में अधिकतर लोग शौक़ के लिए गोल्ड वाले ‘फ़ाउंटेन पेन’ की ख़रीदारी करते हैं.

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भारत समेत इन देशों में है ‘फ़ाउंटेन पेन’ की मांग

भारत में पिछले कुछ सालों में अचानक से ‘फ़ाउंटेन पेन’ की मांग बढ़ने लगी है. देश में दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, हैदराबाद और पुणे इस पेन की मांग बढ़ी है. जबकि सिंगापुर, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इटली, स्पेन, पोलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ब्राजील, नीदरलैंड और अफ़्रीकी देशों में Fountain Pens और Nibs की काफ़ी डिमांड बढ़ी है. आज भारतीय और इंटरनेशनल मार्किट में 1 ‘फ़ाउंटेन पेन’ की क़ीमत 50 रुपये से लेकर 10 हज़ार रुपये तक है.

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