Thums Up: 45 सालों से लोगों की प्यास बुझा रही वो सॉफ्ट ड्रिंक, जिसका इतिहास बेहद तूफ़ानी है

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Thums Up History: आपने अक्सर टीवी एड्स के दौरान ‘थम्स अप-टेस्ट द थंडर’ टैगलाइन ख़ूब सुनी होगी. इसके पहले के एड में एक्टर सलमान ख़ान जिस टशन में एक झटके में ‘थम्स अप’ की बोतल खोलकर एक झटके में गट-गट पी जाते हैं. उसे देखकर सबने ही कभी ना कभी तो ‘थम्स अप’ (Thums Up) की बोतल के साथ ऐसा टशन ज़रूर दिखाया होगा. लेकिन 4 दशकों से अधिक समय से भारतीयों की प्यास बुझा रहे इस ब्रांड के लिए ये सब उतना आसान नहीं था, जितना समझ रहे हो. 

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आइए आज हम आपको इस 45 साल पुराने ब्रांड का इतिहास (Thums Up History) बताते हैं. ये मार्केट में कैसे आया और कब कोका-कोला ने इसे ख़रीद लिया, इससे जुड़े अमूमन सभी सवालों का जवाब आज हम आपको देंगे. 

Thums Up History

कोका-कोला की विदाई के बाद हुआ था ‘Thums Up’ का जन्म 

आज के समय में ‘Thums Up’ और Limca दोनों ही Coca-Cola कंपनी के प्रोडक्ट हैं. 70 के दशक में एक बार ऐसा समय आया, जब देश की सरकार ने कोका-कोला कंपनी के सामने एक ऐसी शर्त रख दी थी, कि उसे भारत से विदाई लेनी पड़ी. इसके बाद दो भाई रमेश और प्रकाश चौहान ने भानु वकील के साथ मिलकर इस सॉफ्ट ड्रिंक का परिचय दिया था. उस दौरान लिम्का और गोल्ड स्पॉट भी भारत में पॉपुलर ड्रिंक्स थीं. लेकिन ‘थम्स अप’ इन सबसे आगे निकलकर लोगों की फ़ेवरेट बन गई. 1980s के दौरान इसने देश के सभी कोला प्रोडक्ट्स में पूर्ण एकाधिकार जमा लिया. (Thums Up History)

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चौहान ब्रदर्स ने मौका देखकर मारा चौका

अमरीकी कंपनी की विदाई होने पर चौहान ब्रदर्स ने इस मौके को लपक लिया. रमेश ने स्क्रैच से फ़ॉर्मूला डेवलप किया और दालचीनी, इलायची व जायफल से एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया. कंपनी चाहती थी कि बेहद ठंडी ना होने पर भी उनकी ड्रिंक फ़िज़ी रहे. ताकि इसे वेंडरों द्वारा भी बेचा जा सके. काफ़ी टेस्टिंग और एक्सपेरिमेंट के बाद, चौहान ब्रदर्स और उनकी रिसर्च टीम ने ऐसी ड्रिंक बनाई, जो कोका-कोला से ज़्यादा फ़िजी और तीखी थी. उन्होंने पहले इस ड्रिंक को ‘Thumbs Up‘ नाम देना चाहा, लेकिन इसे और यूनिक बनाने के लिए उन्होंने ‘B’ हटा दिया.

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Coca-Cola की दोबारा एंट्री ने बदल दिया पूरा गेम

सन 1990 में Pepsi ने मार्केट को ज्वाइन किया और ‘Thums Up’ के लिए बड़ी कॉम्पटीटर बन गई. इन दोनों ने सालों तक एक-दूसरे से कॉम्पटीशन किया. इसके बाद ‘थम्स अप’ ने अपनी पॉपुलैरिटी इम्प्रूव करने के लिए एक 300 मिलीलीटर की काफ़ी बड़ी बोतल मार्केट में उतार दी, जिसे उन्होंने ‘महाकोला’ नाम दिया. साल 1993 में, कोका-कोला की वापस मार्केट में एंट्री हुई और फिर तीन कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा का माहौल और गर्म हो गया. इसके बाद, एक बड़ा क़दम उठाते हुए कोका-कोला ने पारले कंपनी को 60 मिलियन डॉलर में ख़रीद लिया. जब पारले को कोका-कोला को बेचा गया था, तब थम्स अप का भारत में लगभग 85 प्रतिशत बाज़ार था. (Thums Up History)

कोका-कोका ने ‘थम्स अप’ का विज्ञापन करना कर दिया था कम

कोका-कोला के थम्स-अप के मालिक होने के पहले कुछ सालों में, उन्होंने इस उम्मीद में ड्रिंक के लिए विज्ञापन कम कर दिया कि इसके बजाय अधिक कस्टमर कोक खरीदेंगे. जब उन्हें एहसास हुआ कि इससे उनकी टीनेजर और यंग एडल्ट के बीच पॉपुलैरिटी गिर रही है, क्योंकि काफ़ी लोगों ने कोक से ज़्यादा पेप्सी को प्रेफ़र करना शुरू कर दिया था. तब उन्होंने ‘थम्स अप’ का विज्ञापन बढ़ाना शुरू किया, ताकि वो पेप्सी से कॉम्पटीशन कर सकें. थम्स अप के पास अभी भी मार्केट शेयर्स का लगभग एक तिहाई हिस्सा था. 

जैसे-जैसे कोका-कोला ने ‘थम्स अप’ की एडवरटाइजिंग बढ़ानी शुरू की, उन्होंने यंग-एडल्ट्स को टारगेट करने के बजाय मिडिल एज लोगों पर फ़ोकस करना शुरू किया. उन्होंने सॉफ्ट ड्रिंक को कोक या पेप्सी की तुलना में एक मज़बूत और अधिक शक्तिशाली ड्रिंक के रूप में स्थापित किया. उनके ‘ग्रोन अप थम्स अप’ कैम्पेन ने थम्स अप का एडल्ट की ड्रिंक के रूप में चित्रण किया. इस कैम्पेन के बाद थम्स अप ने मार्केट में काफ़ी बड़ा प्रतिशत हासिल किया. 

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‘थम्स अप’ ने पहले से ही अपनी सबसे कठिन लड़ाई जीत ली है और तब से खुद को एक ऐसी नींव पर स्थापित कर लिया है जिसे अस्थिर करना कठिन होगा.लेकिन ब्रांड और बाज़ार के जानकारों का मानना ​​है कि 1 अरब डॉलर का आंकड़ा उसके 45 साल के सफ़र में सिर्फ़ एक मील का पत्थर है. 

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