वालचंद हीराचंद दोशी: भारत का वो गुमनाम बिज़नेसमैन, जिसको कहा जाता है ‘भारतीय परिवहन’ का जनक

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Walchand Hirachand Doshi Life : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने देश के लिए कई गौरवशाली काम किए हैं. इनकी जितनी तारीफ़ की जाए, उतनी कम है. हालांकि, इस मिशन को ऊंचाई पर पहुंचाने के पीछे कई संगठनों और वैज्ञानिकों का हाथ है. इनमें से एक संगठन महाराष्ट्र में स्थित वालचंदनगर इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड है. इस प्रतिष्ठान ने 1973 के बाद से ISRO को कई अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण उपकरण दिए हैं. साथ ही 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किए गए चंद्रयान 1 से लेकर चंद्रयान 2 के रॉकेट ‘बाहुबली’ तक के लिए, WIL ने एक तरह से कई अंतरिक्ष कार्यक्रमों को ईधन देने का काम किया है.

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हालांकि, ये सब कुछ WIL के संस्थापक वालचंद हीराचंद दोशी के बिना मुमकिन नहीं हो पाता. स्वतंत्र भारत की औद्योगिक ज़रूरतों की कल्पना करने वाले और अग्रणी राष्ट्र निर्माता के रूप में खड़े होने वाले साहसी, दृढ़ विश्वास और आत्म-विश्वास वाले इस व्यक्ति ने अपने जुनून के माध्यम से विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों में भारत के औद्योगीकरण का कार्य किया. इनको भारतीय परिवहन उद्योग का जनक भी कहा जाता है.

आइए आपको वालचंद हीराचंद दोशी के बारे में विस्तार से बताते हैं.

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कौन थे वालचंद हीराचंद दोशी?

वालचंद हीराचंद दोशी भारत के दूरदर्शी उद्योपति और उद्यमी थे. उनका जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव सोलापुर में 23 नवंबर 1882 को हुआ था. उन्होंने सोलापुर सरकारी हाई स्कूल से 1899 में अपनी पढ़ाई पूरी की और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मुंबई से अपनी BA की डिग्री प्राप्त की. अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपना बिज़नेस करियर अपने पिता के बैंकिंग और कॉटन ट्रेड्स के बिज़नेस में शुरू किया. लेकिन धीरे-धीरे उन्हें एहसास हुआ कि उनकी फ़ैमिली बिज़नेस में दिलचस्पी नहीं है. इसके बाद वालचंद ने अपना फ़ैमिली बिज़नेस छोड़ दिया और शिपबिल्डिंग, सिविल इंजीनियरिंग, एयरक्राफ्ट मैन्यूफैक्चरिंग, मैरिटाइम शिपिंग और ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग की दुनिया में अपना सफ़र शुरू किया.  

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इंडस्ट्री की पॉवर पर था यकीन

दोशी को इंडस्ट्री की ताकत और भारत के विकास में इसकी अहम भूमिका पर पूरा विश्वास था. उनके पास टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की इम्पोर्टेंस की गहरी समझ थी और उन्होंने औद्योगिक विकास को गति देने के लिए भारत में अत्याधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग विशेषज्ञता लाने की मांग की थी. वो इस दौरान यूरोप और अमेरिका गए, जहां वो फैक्ट्रीज़ में गए और लीडिंग इंजीनियर्स और उद्योगपतियों से मुलाकात की. उनकी कंपनी का सबसे शुरुआती प्रोजेक्ट सह्याद्री पर रेलवे सुरंग थी, जो मुंबई और पुणे को अलग करती थी.

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समय के साथ बने सबसे सफ़ल उद्योगपति

वालचंद अपने समय के सबसे प्रभावशाली और सबसे सफ़ल उद्योगपतियों में से एक बने. वो भारत में कई पैमाने पर बड़ी इंडस्ट्रीज़ स्थापित करने के लिए अग्रणी थे, जिसमें देश की पहली ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी और पहला शिपबिल्डिंग यार्ड शामिल है. उन्होंने बाकी कई इंडस्ट्री के प्रोजेक्ट्स जैसे चीनी और टेक्सटाइल की फैक्ट्रीज़, पॉवर प्लांट्स और केमिकल प्लांट्स को खड़ा करने में भी अहम भूमिका निभाई थी. यहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश की पहली स्वदेसी शिपिंग कंपनी ‘Scindia Shipyard’ की नींव रखी, जिसे हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड भी कहा जाता है.

दोशी ने भारत की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए शिपिंग सेक्टर की देश में इम्पोर्टेंस को देखा और मुंबई में एक शिपयार्ड खड़ा किया. ये भारत का पहला शिपयार्ड था. इस यार्ड ने इंडियन नेवी और भारतीय व इंटरनेशनल क्लाइंट्स के लिए जहाज बनाए.  

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बने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के फ़ाउंडर

दोशी की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की स्थापना, जो भारत की पहली एयरक्राफ्ट बनाने वाली कंपनी थी. उन्होंने भारत के इंडस्ट्रियल परिदृश्य में गैप देखा और उन्हें नई टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को भारत लाने की उम्मीद दिखाई दी. इसके बाद उन्होंने एक अमेरिकी एयरक्राफ्ट मैनेजर की मदद से साल 1940 में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की स्थापना की. इस कंपनी ने भारत की एरोस्पेस इंडस्ट्री के विकास में काफ़ी अहम रोल निभाया. साथ ही इसने भारतीय एयरफ़ोर्स को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान काफ़ी सपोर्ट किया था.

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भारतीय परिवहन उद्योग के जनक माने जाते हैं वालचंद

शिपिंग, एविएशन और ऑटोमोबाइल में उनकी उद्यमशीलता ने उन्हें “भारत में परिवहन के जनक” की उपाधि दी. हीराचंद दोशी का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स था, जो भारत का पहला स्वदेशी ऑटोमोबाइल निर्माता था. 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, वालचंद ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ देश के दस सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक था. वालचंद हीराचंद दोशी का जीवन इस विचार का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प किसी भी बाधा को दूर कर सकते हैं.

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