जानिए उन 6 रियासतों के बारे में जिन्होंने भारत में शामिल होने से कर दिया था इंकार

Nripendra

Princely States that Refused to Join India in Hindi: आज का अखंड भारत कभी 565 रियासतों में बंटा हुआ था, जहां उनका अपना स्वतंत्र शासन चलता था. BBC के अनुसार, इन रियासतों के पास भारत की क़रीब एक तिहाई ज़मीन थी और इनमें से कई राजघरानों के पास अपनी मुद्रा, स्टैंप व सेनाए थीं. 

इन रियासतों को एक करने का काम लौह पुरुष सरदार वल्भव भाई पटेल को जाता है. हालांकि, ये काम इतना आसान नहीं था, क्योंकि इनमें कई रियासतें ऐसी थीं जिन्होंने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया था. 

कहते हैं कि क़रीब 2 सालों तक सरदार वल्लभ भाई पटेल और वी.पी. मेनन ने राजघरानों को मनाने का काम किया था.

आइये, अब विस्तार से जानते हैं उन रियासतों के बारे में जिन्होंने भारत में विलय के (Princely States that Refused to Join India in Hindi) लिए कर दिया था मना.  

1. हैदराबाद रियासत 

Image Source: BBC

Princely states which refused to be a part of India: हैदराबाद की गिनती भारत के बड़े राजघरानों में होती थी, जो क़रीब 82,698 वर्ग किलोमीटर में फ़ैली हुई थी. इस रियासत के सांतवें शासक मीर उस्मान अली ने यहां क़रीब 37 वर्षों तक राज किया था. इस रियासत की अपनी सेना, अपनी रेल सेवा व डाक सेवा भी मौजूद थी. हैदराबाद का निज़ाम चाहता था कि वो इस रिसायत को आज़ाद रखे. 

माउंटबेटन का मानना था कि वो नेहरू की मदद से निज़ाम को मना लेंगे, लेकिन सरदार पटेल को निज़ाम पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था. उन्हें उस वक़्त हैदराबाद रियासत भारत के पेट में कैंसर जैसी नज़र आ रही थी, जिसका इलाज करना ज़रूरी था. वहीं, निज़ाम को जिन्ना का समर्थन प्राप्त था. क़रीब चारों दिनों तक कड़े संघर्ष के बाद निज़ाम को हथियार डालने पड़े. 

जब निज़ाम ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया था, तो भारत को हैदराबाद रियासत के खिलाफ़ सैन्य कार्यवाही करनी पड़ी, इसे ‘ऑपरेशन पोलो’ (13 सितंबर 1948) का नाम दिया गया.

2. जूनागढ़ रियासत 

Image Source: Wikipedia

Which Princely States Refused to Join India: गुजरात की जूनागढ़ रियासत भी भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी. ये रियासत देश की आज़ादी तक यानी 15 अगस्त 1947 तक भारत का हिस्सा नहीं थी. इसका विलय भारत में 9 नवंबर 1947 को हुआ था. ये भी भारत की प्रमुख रियासतों में एक थी.

वहीं, जब जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय ने मुस्लिम लीग के नेता शाह नवाज़ भुट्टो को अपने मंत्री मंडल में जगह दी, तो वो रियासत को पाकिस्तान में मिलाने पर ज़ोर देने लग गए. पाकिस्तान भी इस बात से राज़ी हो गया था, लेकिन भारत नहीं चाहता था कि ऐसा हो. 

भारत ने इस ओर कदम उठाया और सैन्य कार्यवाई कर जूनागढ़ पर कब्ज़ा कर लिया. इस बीच जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया. भारत के इस कदम से माउंटबेटन नाराज़ हुए, तो वहां जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें क़रीब 90 प्रतिशत लोग भारत में शामिल होने के लिये राज़ी हो गए. इसके बाद जूनागढ़ भारत का हिस्सा बना. 

3. कश्मीर रियासत 

Image Source: Wikipedia

Which Princely States Refused to Join India: जम्मू और कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह भी अपनी प्रजा के साथ स्वतंत्र रूप से रहना चाहते थे. उन्होंने ने भी भारत में शामिल होने से मना कर दिया था. वीपी मेनन उनसे मिले थे, मनाया भी, लेकिन वो नहीं मानें. लेकिन, जब कश्मीर पर कबीलाई आक्रमण हुआ, तो राजा हरि सिंह को भारत सैन्य मदद मांगनी पड़ी, जिसके बदले उनके सामने विलय का प्रस्ताव रखा गया. हरि सिंह मजबूरन भारत में शामिल होने के लिये राज़ी होना पड़ा. 

कबीलाइयों को पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त था और वो उन्हें हथियार भी मुहैया करा रहे थे. कबीलाइयों कश्मीर में भारी लूटपाट, आगजनी और बेरहमी से लोगों को मार रहे थे. 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर का भारत में विलय हुआ. 

ये भी पढ़ें: जानिए क्यों महाराजा हरि सिंह को न चाहते हुए भी भारत में कश्मीर के विलय के लिए राज़ी होना पड़ा था

4. त्रावणकोर रियासत  

Image Source: nottingham

दक्षिण भारत की त्रावणकोर रियासत भी भारत में शामिल न होने के खुले पक्ष में थी. इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार, त्रावणकोर की इस सोच के पीछे जिन्ना के विचार काम कर रहे थे. 

वहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि रियासत के दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर के बीच एक सिक्रेट समझौता भी हुआ था, जिसमें ब्रिटिश सरकार रियासत की मांग का समर्थन करेगी. ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार त्रावणकोर पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहती थी. वहीं, जब सीपी अय्यर पर 1947 में  केरल की सोशलिस्ट पार्टी के एक सदस्य द्वारा हमला हुआ, तो वो भारत में विलय के लिये तैयार हो गए थे. 30 जुलाई 1947 को  त्रावणकोर रियासत भारत का हिस्सा बनीं. 

5. भोपाल रियासत

Image Source: hindustantimes

उपरोक्त रियासतों के अलावा, मध्य भारत की भोपाल रियासत भी भारत में विलय के लिये तैयार नहीं थी. रिसायत के नवाब नवाब हमीदुल्लाह ख़ान मुस्लिम लीग के करीबी थे और क्रांग्रेस विरोधी. 

भोपाल रियासत के नवाब ने माउंटबेंटन के सामने अपने इरादे साफ कर दिये थे, लेकिन बाद में वो ये कहकर भारत में विलय के लिए तैयार हो गए कि कोई भी अपने सबसे क़रीबी स्वतंत्र उपनिवेश से भाग नहीं सकती है. वहीं, जुलाई अगस्त को भोपाल रिसायत भारत में आधिकारिक रूप से शामिल हो गई. 

6. जोधपुर रियासत

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जोधपुर रियासत पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहती थी, जबकि वहां के राजा और अधिकांश प्रजा हिन्दू थी. रिसायत के राजा महाराजा हनवंत सिंह का मानना था कि पाकिस्तान में मिलकर ही उनका भला होगा. वहीं, कहा जाता है कि जिन्ना की ओर से महाराजा को कराची के बंदरगार पर पूर्ण नियंत्रण का लालच भी दिया गया था. जब इस बात का पता सरदार पटेल को लगा, तो उन्होंने काफ़ी कोशिश की वो पाकिस्तान का हिस्सा न बनें. उन्होंने पाकिस्तान में शामिल होने की दिक्कतें भी महाराजा को बताईं. बाद में जोधपुर रियासत भारत का हिस्सा बन गई थी. 

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