Who Was Freedom Fighter Rajkumari Gupta: भारत को आज़ाद हुए 76 साल हो गए हैं. इस आज़ादी को पाने के लिए हमारे पूर्वजों काफ़ी ख़ून पसीना बहाया है. ये हमें ऐसे ही थाली में परोस कर नहीं मिली, इसके लिए हमें बहुत सी कुर्बानियां देनी पड़ी हैं.
आज़ादी की लड़ाई में शामिल बहुत से भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighters) भी हैं, जिनकी बातें कोई नहीं करता. उन्हें इतिहास में वो दर्जा नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे. ऐसी ही एक वीरांगना की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
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कानपुर की रहने वाली थीं
गुमनाम होकर रह गई इस वीरांगना का नाम राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta) है. वो कानपुर (Kanpur) के बांदा ज़िले की रहने वाली थीं. उनके पिता एक दुकानदार थे. 13 साल की उम्र में ही इनकी शादी मदन मोहन गुप्ता के साथ हो गई थी. दोनों पति-पत्नी कांग्रेस के सदस्य थे और उनकी हर मीटिंग और कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे.
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असहयोग आंदोलन के बंद होने से थी हताश
गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर वो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुई थीं. मगर असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) के ऐसे बीच में ही बंद हो जाने से वो दुखीं थीं. तब उन्होंने सोचा कि सिर्फ़ आंदोलन करने से कुछ नहीं होगा, आज़ादी के लिए उन्हें कुछ क्रांतिकारी करना होगा. इसलिए वो चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad) की पार्टी ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ जॉइन कर ली.
गरम दल में शामिल होने की परिवार को भी नहीं थी ख़बर
इस बारे में उनके पति और परिवार को कोई भनक तक नहीं थी. देश के लिए मर मिटने को तैयार राजकुमारी गुप्ता ने हर जोखिम भरे काम को अंजाम तक पहुंचाया. वो गुपचुप ढंग से क्रांतिकारियों को संदेश और हथियार आदि पहुंचाने का काम करती थीं. काकोरी ऑपरेशन (Kakori Operation) के क्रांतिकारियों तक हथियार राजकुमारी गुप्ता ने ही पहुंचाए थे.
काकोरी कांड के बाद अंग्रेज़ों ने किया गिरफ्तार
काकोरी कांड के बाद अंग्रेज़ों को उनकी तलाश थी, उन्होंने एक खेत से राजकुमारी गुप्ता गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद पति और परिवार ने भी उनसे पल्ला झाड़ लिया. जेल में उन्हें ब्रिटिश सैनिकों की अमानवीय यातनाएं सहनी पड़ी, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद वो फिर से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गईं.
स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए राजकुमारी गुप्ता जी के योगदान पर हर देशवासी को गर्व है.