पासपोर्ट या अन्य डॉक्यूमेंट में क्यों होता है Middle Name वाला कॉलम, जानिए क्या है इसका इतिहास

J P Gupta

हम जब भी कोई डॉक्यूमेंट, फ़ॉर्म या फिर ई-मेल के लिए Sine Up कर रहे हैं होते हैं तो हमसे हमारा Middle Name भी पूछा जाता है. जबकि आम जीवन में बहुत कम ही लोग होते हैं जो हमसे हमारा Middle Name पूछते हैं तो फिर मिडल नेम क्यों रखे जाते हैं और इनका इतिहास क्या है?

इस सवाल का जवाब इतिहास में छुपा है और ये रोमन साम्राज्य से जुड़ा है. चलिए आज आपके लिए इस गुत्थी को भी हल किए देते हैं.   

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रोम से जुड़ा है Middle Name का इतिहास  

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प्राचीन काल में रोम के लोगों के तीन नाम हुआ करते थे. Praenomen जो उनका पर्सनल नाम होता था, Nomen जो उनकी फ़ैमिली का नाम होता था और Cognomen जिससे आपके गोत्र का पता चलता था. तब ऐसा माना जाता था जितने अधिक आपके नाम होंगे आपको उतना ही अधिक सम्मान मिलेगा. महिलाओं को दो ही नाम होते थे और दास-दासियों का बस एक ही.

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स्पेन-अरब में रखे जाते हैं पैतृक नाम  

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1700 के दशक में कई नामों की ये परंपरा पश्चिमी संस्कृतियों में फैल गई. अभिजात वर्ग के लोग अपने बच्चों को Middle Name देने लगे ताकी लोगों को पता चल सके की वो किस खानदान से ताल्लुक रखते हैं. स्पेन और अरब संस्कृतियों में लोग अपने बच्चों को पैतृक नाम देने लगे ताकी उनके फ़ैमिली ट्री को ट्रैक करने में आसानी हो. मगर आज जिस तरह से हम Middle Name को इस्तेमाल करते हैं उसका चलन मध्य युग में यूरोप में शुरू हुआ, जब वो अपने बच्चों के संत का नाम अपने नाम में जोड़ने के लिए परेशान थे.  

दक्षिण भारत में भी है मिडल नेम रखने का चलन  

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तब उन्होंने तय किया कि वो पहले बच्चे का नाम फिर संत का नाम और अंत में सरनेम रखेंगे. इस तरह Middle Name रखने का चलन पूरी दुनिया में फैल गया. भारत में भी इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं खासकर दक्षिण भारत में. यहां के अधिकतर लोग अपने बच्चों को पहले अपने गांव का नाम फिर पिता का नाम और बाद में उनका नाम देते हैं. इस तरह से उनके भी तीन नाम हुए Middle Name के साथ. तभी तो साउथ इंडियन्स के नाम बहुत बड़े-बड़े होते हैं, जैसे फ़ेमस क्रिकेटर वी.वी.एस. लक्ष्मण. इनका पूरा नाम वैंगिपुरापु वेंकटा साईं लक्ष्मण है.   

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