हॉस्टल के खाने की बुराई करने वालों! पतली दाल और मोटे चावल के साथ पेश है किस्सा-ए-हॉस्टल का खाना

Sanchita Pathak

पहले मैं बहुत Healthy (Read खाते-पीते घर की) थी. मेरी Health का राज़ था मम्मी के हाथ का खाना. फिर मेरी ज़िन्दगी में आया ‘वो’ और मेरी काया बदल गई.

वो चुपके से आया और तीन सालों तक मेरी ज़िन्दगी में रहा. उसने मुझे ज़िन्दगी जीने का सबसे बड़ा मंत्र दिया- Survival. मैं अब किसी भी परिस्थिती में Survive कर सकती हूं.

चलिये अपने जीवन के सबसे बड़े गुरू से आपको मिलवा भी देती हूं.

तालियों(Read गालियों) के साथ स्वागत करें हॉस्टल के खाने का

हॉस्टल के खाने को ज़लील करने वालों, पेश है उन Life Skills की लिस्ट, जो मैंने हॉस्टल से सिखी

1. पानी से पतली दाल से मिली आर-पार देखने की शक्ति

पानी से भी पतली दाल को खरी-खरी सुनाने वालों, उस Nearly Transparent दाल की बदौलत मेरी आंखों को आर-पार देखने की शक्ति मिली.

2. पत्थर से भी सख़्त चावल- मज़बूत दांत

जैसे मोती अनमोल होता है, हॉस्टल के चावल भी सफ़ेद मोतियों से कम नहीं होते. मज़बूती इतनी कि पत्थर भी उनके सामने कुछ नहीं. ऐसे चावल खाकर मेरे दांतों की मज़बूती अंबूजा सिमेंट जितनी हो गई.

3. पनीर की सब्ज़ी में पनीर ढूंढना- बाज़ सी नज़र

महान नायक ने कहा है,

 बाज़ की नज़र पर कभी संदेह नहीं करते.

ग्रेवी में 0.1 cm X 0.1 cm बड़े पनीर के टुकड़े ढूंढ-ढूंढकर आंखें बाज़ जैसी तेज़ बन गई. मुझे लगता है मैं Microscope को टक्कर दे सकती हूं!

4. आलू- मिलनसार

आलू बस नाम ही काफ़ी है. तुम बस सब्ज़ी का नाम बताओ और आलू आराम से उसके साथ मिल जाता है. मेरा मानना है कि सब्ज़ियां आलू के बिना रह ही नहीं सकती. हॉस्टल में मैंने आलू-भिंडी, आलू-पालक, आलू-कुंदरी, आलू-लौकी, आलू-मटर, आलू-तोरी, आलू-शिमला मिर्च… खाकर यही जाना,

‘बनना ही है तो आलू बनो, किसी भी सब्ज़ी के साथ Fit हो जाता है.’

5. बिन आलू के आलू परांठे- जहां Fit न हो, वहां से कट लो

अक़सर कई रिश्तों में हम सिर्फ़ Adjust करके रह जाते हैं, भले ही वहां हम Fit न बैठते हों. ऐसे रिश्तों से आज़ादी मैंने आलू परांठे से सीखी. उनमें आलू Fit नहीं होता था, इसलिए वो परांठों में होता ही नहीं था.

6. ट्रेसिंग पेपर जैसे पतले ऑमलेट- Slim is the new Fit

0 फ़िगर कितना ज़रूरी है ये हॉस्टल के ऑमलेट से सीखा. जब प्याज़-मिर्च वाला ऑमलेट इतना Fit & Fine हो सकता है, तो हम क्यों नहीं?

7. कच्ची रोटियां/परांठे- खोल दिए ज्ञान चक्षु

सैंकड़ों सालों तक तपस्या करन के बाद ऋषि-मुनियों के ज्ञान चक्षु खुलते हैं, लेकिन मेरे ज्ञान चक्षु हॉस्टल के कच्चे-परांठे खाकर खुल गए. कच्ची रोटियों को Transparent दाल में डुबोकर खाने से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है, ये ज्ञान किसी किताब में नहीं मिलेगा.

8. तेल-मसाले से भरा खाना- बढ़ गई सुनने की शक्ति

स्कूल में टीचर ने पढ़ाया था कि अधिक मिर्च-मसाले का खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. लेकिन हॉस्टल के खाने में शायद कोई दिव्य ताकत थी. खाना इतना तीखा होता था कि कान से धुंआ निकल जाये और कुछ इस तरह मेरी सुनने की शक्ति बढ़ गई. अब मुझे अंतरिक्ष की तरंगें भी सुनाई देती हैं.

तो आज से हॉस्टल के खाने की बुराई बंद कर दो, क्योंकि ये सारी Power घर में कभी नहीं मिल सकती. भावनाएं कमेंट बॉक्स में छोड़ जाना.

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