रुपये का कमज़ोर होना राष्ट्रहित में है, बस ठीक तरीके से आपको इसके फ़ायदे नहीं बताए जा रहे

Kundan Kumar

NDTV

इस T20 जेनरेशन को सबकुछ जल्दी-जल्दी चाहिए. इनके पास टेस्ट मैच वाला विज़न ही नहीं है. अपना रुपया थोड़ा क्या लड़खड़ाया हाय-तौबा मचाने लगे. अभी धीरज धरने की ज़रूरत है. हम,आप को पूरा प्लान नहीं पता इसलिए परेशान हैं, सरकार आगे के दस चाल सोच कर बैठी हुई है. डॉलर के मुकाबले अपनी रुपये की जीत पक्की है और जीत न भी हुई तो खेल चौपट कर देंगे, हार तो नहीं होनी.  

फ़िलहाल हमें नकारात्मक नज़रिये को बदलने की और सरकार पर आस्था रखने की ज़रूरत है. रुपये के कमज़ोर होने के कई फ़ायदे हैं, बस कोई बता नहीं रहा. अब जब रुपया कमज़ोर होगा तो कोई दूसरा देश(पड़ोसी देश) हमारी नकली करेंसी नहीं छापेगा. फिर वही अपनी पुरानी नोटबंदी वाली थ्योरी- जब नकली नोट नहीं छपेंगे, तो आतंकवादियों को पैसे नहीं मिलेंगे फिर वो बेमौत मारे जाएंगे, उनको ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी, पेट ख़राब हो जाएगा और अंत में देश सुरक्षित. 

ये तो सुरक्षा के लिहाज़ से बात हुई, अब ये देखिए कि रुपये का कमज़ोर पड़ना उसकी सेहत के लिए कैसे फ़ायदेमंद है. रुपया अभी डॉलर के सामने खड़ा नहीं हो पा रहा और सरकार उसकी मदद नहीं कर रही, क्यों नहीं कर रही! क्योंकि वो चाहती है कि रुपये बिना सहारे के डॉलर से लड़े. जब वो ख़ुद डॉलर से लड़ेगा तभी उसमें आगे भी दुनिया की बाकी मुद्राओं से लड़ने की ताकत आएगी. ये बाज़ारवादी दुनिया बहुत ज़ालिम है, अगर हमारी सरकार ने आज रुपये की मदद कर दी तो उसे आदत पड़ जाएगी और फिर कल को यूरो रुपये के सामने खड़ा हो गया तो अपना रुपया क्या करेगा भला!  

कुछ लोगों को ये भी दिक्कत है कि बांग्लादेश का ‘टका’ मज़बूत होता जा रहा है. अजी बांग्लादेश में क्या हो रहा है, उससे हमें क्या मतलब. अच्छे पड़ोसी बनिये, उसकी खुशी में खुश रहिए. हर बात पर कॉम्पटीशन ज़रूर है? वैसे भी बांग्लादेश का ‘टका’ बदतमीज़ है, सबको टके सा जवाब दे देता है, अपना रुपया संस्कारी है. 

और ये क्या बात हुई! लोग हमेशा डॉलर से रुपये की तुलना करते हैं. लेकिन मैं कहता हूं कि ये तुलना करना ही क्यों! क्या हमें स्कूल में नहीं सिखाया गया कि सबकी अपनी ख़ासियत होती है, तुलना करके हम उसकी प्रतिभा का ग़लत आंकलन करते हैं. रुपया रुपया है डॉलर डॉलर है, तुलना करना नैतिकता के आधार पर ग़लत है.  

आख़िर में तारीफ़ तो इस देश के लोगों की बनती है. रुपया गिर रहा है और कोई उठाने वाला नहीं है. कांग्रेस के काल में हमारे बड़े-बुज़ुर्गों ने ऐसा वक़्त भी देखा है कि जब रोड पर चवन्नी गिरती थी तो उसे उठाने के लिए तलवारें खिंच जाती थीं. मेरा देश बदल चुका है. 

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