व्यंग्य: निगम जी की थाली से ग़ायब हुई रोटी, श्रीमती बोलीं- विदेशी साजिश

Abhay Sinha

साथी हाथ बढ़ाना, ओ साथी हाथ बढ़ाना… निगम जी सोफ़े पे पसरे-पसरे गुनगुनाए पड़े थे कि उनकी श्रीमती जी टोक दीं, ‘अजी किसका हाथ है, जो इतने बेचैन हुए जा रहे.’ अरे न्यूज़ वाले तो विदेशी हाथ बता रहे. कह रहे विदेशी ‘हाथ’ ने छीना स्वदेशी सरकार का ‘रस’… 

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लेकिन जी, आप तो कहे थे कि प्रदेश में कमल की सरकार है, तो फिर ये हाथ कैसे दख़ल दे रहा?

अरे देसी हाथ तो पहले ही कीचड़ में घुसकर कमल उगा चुका है. ये तो विदेशी वाला है, जिस पर अब कमल अपने तोड़े जाने का आरोप मढ़ता रहा.

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क्या ज़माना आ गया. देश में जो हाथ है, उसके साथ जनता नहीं आ रही और इस मुए विदेशी हाथ के दबोचे में पूरी की पूरी सरकार आई जा रही. हम यहां नेताओं को उंगली तक नहीं कर पाते और ये विदेशी साजिशें…

पेट्रोल महंगा तो विदेशी हाथ, आतंकी हमला तो विदेशी हाथ, सरकार के ख़िलाफ़ साजिश तो विदेशी हाथ, छात्रों का आंदोलन तो विदेशी हाथ… अब तो लगता है कोई माननीय ये न कह दे कि उनके घुसलख़ाने में भी विदेशी हाथ है. 

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अरे ये तो बहुत पुराना मर्ज़ है, जिसमें विदेशी हाथ लगते ही आराम मिल जाता है. हलवा आए तो आत्मनिर्भर होकर गप-गप पेल लेते हैं और रायता फ़ैले तो ये विदेशी साजिशों का मेक इन इंडिया हो जाता है. बाकी जब मूर्ख वोटर अचानक होशियारी का महंगा शौक फ़रमाने लगें, तब उसके कान के नीचे एक विदेशी हाथ चिपका ही दिया जाता है. 

अब बताइए कह रहे हैं कि विपक्ष रोटियां सेक रहा है. अरे जिस मुए विपक्ष से आटा तक गूंदा नहीं जाता, वो ससुरा रोटी का सेकेगा. इनसे तो रोटी और परांठे के बीच का अंतर पूछ लो तो नाराज़ हो जाते हैं, कहते हैं ‘वी लव ओनली इटैलियन पिज्जा.’  

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एजी, आपकी इस परपंच में हमारी साड़ी फ़ट गई. अब नई लेनी पड़ेगी. अब्ब.ब.ब, नई साड़ी! अरे देख नहीं रहीं, सरकार बता रही विदेशियों का हाथ कैसे इस वक़्त देश में पहुंच चुका है. पता चला नई साड़ी में देखकर किसी विदेशी ने तुम्हारा हाथ थाम लिया तो… न भाग्यवान, मुझे गठबंधन तोड़कर विपक्ष में बैठने का कतई शौक नहीं है. चुप रहो और खाना परोसो.

अरे सरकार तुम तो सच में सरकार बन गईं. थाली से रोटी ही ग़ायब कर दी, खाली चावल ही बनाए हो क्या? 

अजी इसमें हमारा कसूर नई न, आपकी थाली से रोटी ग़ायब करने में तो विदेशी हाथ है. पड़ोस के मिश्रा जी बता रहे थे कि ‘अल-मैदा’ नाम के संगठन ने देसी रोटियों के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ दिया है. विदेशी फ़ंडिंग से गज़वा-ए-गेहूं की साजिश रची गई है. बाकी जो रोटियां बची हैं, उन्हें विपक्ष सेके डाल रहा. यही लिए चावल ही है, चुपचाप खा लीजिए. बाकी फ़्रिज में आम भी रखे हैं, कहिए तो काट लाएं या फिर आप भी चूस के ही खाते हैं.

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