आज़ादी के बाद 7 दशक में तमाम नेता आए, मगर कोई भी देश को न तो पैरों पर खड़ा कर सका और न ही लोगों को एक कर सका. मगर 8 नवंबर 2016 को हमारे एकलौते सर्वप्रिय प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी ने ये संभव कर दिया. नोटबंदी के बाद पूरा देश एकसाथ अपने पैरों पर खड़ा था. फिर क्या हिंदू क्या मुसलमान, गांधी जी को एक्सचेंज करने को सभी बेताब हो उठे.
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आज नोटबंदी को बीते 5 साल गुज़र गये. हर 8 नवंबर को चौराहों पर खड़े लोग चौतरफ़ा राह तकते हैं. मगर विकास की सीधी राह पर चलने वाले नेता मोड़ की गुंजाइश नहीं रखते. लोग भी सोचते हैं, काश! नोटों के बजाय उस झोले में चिप लगी होती, जिसे प्रधान सेवक लेकर घूमते हैं. कम से कम लोकेशन तो मालूम पड़ती.
ख़ैर, जब नोटबंदी हुई तो हर शख़्स अंदर से किलसिया गया था. मगर शब्दों के अभाव में भारतीयों की भावनाएं हलक में ही गरारा करने लगीं. बहुत कम मौक़े होते हैं, जब भारतीय सिचुएशन को शब्दों में बयां न कर पाएं.
मगर तब ही 21वीं सदी की इस अभूतपूर्व घटना को एक वाक्य में समेटने वाला महान विचारक अवतरित हुआ.
जी हां, आज ही है वो गौरवपूर्ण दिन, जब इस महान विचारक ने अनंत काल तक भारतीयों के जज़्बात को बयां करने वाले स्वर्णिम शब्द दिये.
जितना पॉपुलरटी कार्ल मार्क्स को शोषितों की दुनिया में नहीं मिली, उससे कहीं ज़्यादा स्टारडम इस शख़्स को मीम की दुनिया में मिल चुकी है. कोई भी कांडी मौक़ा हो, महज़ ये एक वाक्य आपकी भावनाओं के साथ पूरा इंसाफ़ कर देगा. चलिए, कुछ ताज़ा उदाहरण देकर समझाते हैं.
1. टीम इंडिया के टी-20 वर्ल्डकप से बाहर होने के बाद फ़ैन्स-
2. दिवाली पर पटाखे जलने के बाद पर्यावरण-
3. दिवाली पर हर जगह बंटने के बाद सोन पापड़ी-
4. मंडे को काम पर लौटे कर्मचारी-
5. सरकारी नौकरी की राह तकते बेरोज़गार-
आप बताइए, आपकी ज़िंदगी में कब-कब ये स्वर्णिम वाक्य इस्तेमाल होता है?