भारत के इन 10 स्कूलों ने बच्चों के दिल से पढ़ाई का ख़ौफ़ दूर कर दिया है, स्कूल हों तो ऐसे!

Kundan Kumar

आज जब दौड़-भाग भरी ज़िन्दगी में पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो लगता है कि स्कूल का समय ही सबसे अच्छा था. मगर जब स्कूल में थे तब भी सुकून कहां था! भारी बस्ते, रोज़-रोज़ का होमवर्क, टीचर की डांट, गणित के सवाल और कुछ भी ऐसा नहीं जो नया हो. हर रोज़ एक ही क्लास में और कभी-कभी तो एक बैंच पर भी.

पर आज हम आपको भारत के उन 10 स्कूलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बाकी स्कूलों जैसे नहीं हैं, यहां बच्चे हर रोज़ स्कूल जाना चाहते हैं, और ऐसा क्यों है? चलिए जानते हैं…

1. लोकतक लेक स्कूल, मणिपुर

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लोकतक की ये झील स्थानीय लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इससे पनबिजली बनती है, खेती के लिए और मछलीपालन के लिए भी इसके पानी का इस्तेमाल होता है. यहां की मुख्य आबादी अनपढ़ है. उनके लिए ही झील के बीच में एक स्कूल खोला गया है.

चूंकि गांव वाले अपने बच्चों को सुदूर पढ़ने के लिए नहीं भेज सकते और बच्चों को भी मां-बाप के साथ काम में हाथ बटाना पड़ता है, इसलिए ये स्कूल उनके बहुत काम का है.

2. चिराग स्कूल, उत्तराखंड

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कनाई लाल ने 2006 में इस स्कूल की स्थापना की थी. इसे नैनिताल ज़िले में वहां के गरीब और स्थानीय बच्चों के लिए खोला गया था. दाखिले के वक़्त लड़कियों को तरजीह दी जाती है. इस स्कूल की ख़ासियत ये है कि यहां परीक्षा नहीं होती है. 120 बच्चों के लिए स्कूल में 9 शिक्षक मौजदू हैं. साथ ही साथ यहां बच्चों को स्थानीय बोली कमाउनी और गढ़वाली भी पढ़ाई जाती है.

शिक्षकों का पढ़ाने का अंदाज़ भी बिल्कुल अलग है, इनकी कोशिश रहती है कि प्रैक्टिकल के ज़रिये बच्चों को पढ़ाया जाए है.

3. प्लेटफ़ॉर्म स्कूल, बिहार

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इस स्कूल का कार्य बेहद सार्थक है. इसको शुरु करने का मक़सद था स्टेशन पर चाय या अन्य सामान बेचने वाले बच्चों को शिक्षित करना. यहां बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाता है और पूरी पढ़ाई मस्ती-मज़ाक, खेल कूद के साथ साथ होती रहती है.

इंद्रजीत खुराना ने जब इस स्कूल को खोला था, तब कुछ ही दिनों में 100 बच्चे उनके पास पढ़ने आ गए थे. स्कूल के शिक्षक अजीत कुमार बताते हैं कि इन बच्चों को बहुत कम उम्र में नशे की लत लग जाती है, शिक्षा ही एक मात्र साधन है जिसके ज़रिए उन्हें इस दलदल से निकाला जा सकता है.

4. The Yellow Train School, तमिलनाडु

खेतों में घूमना, जंगल और जीवों के बारे में जानना, गाना, बजाना, झूले झूलना… इस स्कूल में ये सारी एक्टिविटीज़ केवल गर्मी की छुटिटयों में ही नहीं होती, बल्कि हर रोज़ होती हैं. यहां बच्चों को कविताएं सिखाई जाती हैं, बच्चे बागानी भी पढ़ते हैं. यहां किताबों पर ध्यान नहीं दिया जाता, यहां बच्चों के मानसिक विकास पर पूरी तरह से ध्यान दिया जाता है.

5. स्मार्ट स्कूल, महाराष्ट्र

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पश्तेपाड़ा के एक साधारण ज़िला परिषद स्कूल को वहां के एक शिक्षक संदीप गुंड ने डिजिटल शाला बना दिया है. संदीप ने देखा कि वहां के बच्चे स्कूल आना पसंद नहीं करते, बल्कि टीवी देखना उन्हें अच्छा लगता है. संदीप ने बच्चों कि दिलचस्पी को पढ़ाई के साथ मिला दिया. ख़ुद कुछ पैसे दान दिए कुछ अन्य शिक्षकों और गांव वालों से पैसे लिए और स्कूल में कंप्यूटर और टैबलेट लगा दिये. इस स्कूल को एक आदर्श स्कूल का दर्जा दिया गया हैं. महाराष्ट्र के 500 अन्य स्कूलों को इस स्कूल का अनुसरण करने के लिए भी कहा गया है.

6. बंगाल का एक अनोखा स्कूल

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यहां बच्चे स्कूल में बस्ता लेकर नहीं जाते क्योंकि उन्हें किताबें नहीं ढोनी पड़ती हैं. छात्र एक-दूसरे को पढ़ाते हैं. गणित, अंग्रेज़ी या विज्ञान सबको खेल, Puzzle और App की मदद से समझाया जाता है. इस स्कूल के क्लासरूम के तो क्या ही कहने, ये ढाई एकड़ में फैले हुए हैं. यानी बच्चे खुले में पढ़ते हैं न कि चार दीवारों में क़ैद हो कर.

इन्हें कम उम्र में बड़े-बड़े साहित्यों का ज्ञान दिया जाता है, जिस पर बाद में ये वाद-विवाद भी करते हैं.

7. वीणा वंदनी स्कूल, मध्य प्रदेश

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मध्य प्रदेश का ये स्कूल अपने आप में अनोखा है, यहां पढ़ने वाले सभी 300 बच्चे अपने दोनों हाथों से लिख सकते हैं. उन्हें कक्षा 1 से ही दोनों हाथों से लिखना सिखाया जाता है. साथ ही साथ बच्चों को 6 भाषाओं का ज्ञान भी दिया जाता है.

8. SECMOL, लद्दाख

Secmol

मुख्य रूप से व्यवहारिक ज्ञान पर केंद्रित इस स्कूल में इको-फ्रेंडली माध्यमों का इस्तेमाल कर के बच्चों को शिक्षित किया जाता है. Students’ Educational And Cultural Movement Of Ladakh(SECMOL) की सफ़लता को देखते हुए दुनियाभर में ऐसे स्कूल शुरु करने की पहल चल रही है. Sonam Wangchuk इस स्कूल के संस्थापक हैं.

9. Aurinko Academy, कर्नाटक

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विवेक को पढ़ने-लिखने का शौक़ नहीं था उसका मन बढ़ई के कामों में लगता था. उसके मां-बाप इस बात को समझते थे, उन्हें डर था कि बेटे का हुनर यूं ही बेकार न चला जाए. उन्होंने अपने बच्चे के हुनर के हिसाब से स्कूल ढूंढना शुरु किया. लंबी तलाश के बाद उन्हें बेंगलुरु के Aurinko Academy के बारे में पता चला, जहां उसको किताब से बिल्कुल अलग अपने पसंद का काम करने का ज्ञान मिला. इस स्कूल में बच्चों की ऐसी ही स्किल्स को तराशा जाता है.

10. अन्नया, बैंगलुरु

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1998 में डॉक्टर शशि राव ने इसकी स्थापना वंचित बच्चों के लिए की थी. वो बच्चे जो घरेलू हिंसा या किसी कारणवश स्कूल तक नहीं पहुंच पाते ख़ास उनके लिए इसकी नींव रखी गई. इस स्कूल में कम से कम किताबों की मदद ली जाती है और किसी भी प्रकार की परीक्षा नहीं होती है. धीरे-धीरे अन्नया ट्रस्ट ने दक्षिण भारत में ऐसे कई स्कूल खोले हैं.

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