खुशवंत सिंह ने कहा था, ‘उर्दू सीखनी है, तो इश्क कर लो और इश्क करना है, तो उर्दू सीख लो‘. ये बात तो ठीक कही, लेकिन क्या उर्दी सीखने के बाद सिर्फ़ इश्क करें? उर्दू सीखे है, तो लड़ते हुए भी काम में लाई जा सकती है.
एक बार किसी से बहस करते हुए ज़रा उर्दू के इन प्यारें शब्दों को इस्तेमाल में लाइए, लड़ाई प्यार में न बदल जाए तो कहना.
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बात लेखक से शुरू हुई थी तो ख़त्म भी एक शायर पर करते हैं, शायर कलीम आज़ीज़ फ़रमाते हैं…
बात चाहे बे-सलीका हो ‘कलीम’
बात कहने का सलीका चाहिए
… और बातों में ये सलीका उर्दू अपने-आप भर देती है.