एक लाचार मां का 25 साल का बेटा ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा है. उसे आपकी मदद चाहिए

Sanchita Pathak

ज़िन्दगी कभी-कभी कितनी निष्ठुर हो जाती है. जो पहले से ही मुसबीतों से घिरा हो उसके लिए मुसीबतों का एक और ज़कीरा तैयार रखती है.

कुछ ऐसा ही हुआ है 25 वर्षीय प्रवीण साल्वे के साथ. उसके पास जीने की इच्छा है, कुछ नहीं है तो वो है जीने के लिए वक़्त.’

मेरी आई मेरी ताकत है. मुझे पता है कि चाहे जो कुछ भी हो, मेरी आई हमेशा मेरे साथ रहेगी. वो मेरी आई और बाबा दोनों है. मेरे पिता एक शराबी थे और आई की मेहनत की कमाई शराब पर ही ख़र्च कर देते थे, मुझसे उनसे ज़्यादा मतलब नहीं था.

मैं प्रवीण साल्वे हूं. जब मैं 11 वर्ष का था तब मेरी पढ़ाई के लिए मेरी आई छोटे-मोटे काम किया करती थी. टिफ़िन में सब्ज़ी लेकर वो काम की तलाश में मोहल्ले के हर घर जाती. देर रात घर लौटती और कभी-कभी स्कूल की फ़ीस देने के लिए भूखे पेट सो जाती. मुझे ये सब देखकर बहुत बुरा लगता और एक दिन मैंने आई से कह दिया कि मुझे पढ़ना-लिखना पसंद नहीं और मैं स्कूल नहीं जाऊंगा. वो पहली बार था जब मैंने उसे निराश किया था. उस रात वो बहुत रोई, लेकिन उसके बाद उसने पागलों की तरह नौकरी ढूंढ़ने की कोशिशें कम कर दीं. मैंने सिर्फ़ 6ठीं जमात तक पढ़ाई की. किशोरावस्था में कदम रखने पर मैंने अपनी आई के लिए कुछ करने का निर्णय लिया. मैंने Housekeeping, Catering, जनरल स्टोर में काम किया. मुझे एक अच्छी नौकरी चाहिए थी, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. ज़्यादातर कंपनियां तो 6ठीं पास को नौकरी देने के बारे में सोचती भी नहीं. मैंने ड्राइविंग सीखने का निर्णय लिया. 20 साल का होते ही मैंने ड्राइवर की फुल-टाइम नौकरी ले ली. मेरी पहली पगार थी 4000 रुपये, उससे मैंने आई के लिए एक साड़ी ख़रीदी. इसी के साथ मैं अपने छोटे भाई की कॉलेज फ़ीस के लिए भी बचत करने लगा. इसके अगले ही साल मैंने उस लड़की से शादी की जिससे मुझे प्यार था. मैं सिर्फ़ 21 साल का था. ये दूसरी बार था जब मैंने अपनी आई को निराश किया था, क्योंकि मेरी पत्नी दूसरी जाति से थी. 4 साल हो गए शादी को और अब आई भी समझ गई हैं. अब वो मुझसे ज़्यादा मेरी पत्नी से प्यार करने लगी हैं.

सब सही चल रहा था, लेकिन पिछले महीने मेरे परिवार को एक और झटका लगा. डॉक्टर्स ने बताया कि मुझे Decompensated Chronic Liver Disease है. मेरे घर में सभी टूट गए, जब उन्हें पता चला कि मेरे Liver का 80% हिस्सा ख़राब हो चुका है. डॉक्टर्स का कहना है कि मुझे जल्द से जल्द ट्रांसप्लांट करवाना होगा, वरना मेरी जान भी जा सकती है. मेरी आई का कोई सहारा नहीं होगा. ये ख़्याल ही अपने आप में बहुत डरावना है.

बीमारी की वजह से मैं बिस्तर पर पड़ गया हूं. बहुत जल्दी थक जाता हूं. 1 मिनट बात करते ही हांफने लगता हूं. Liver ख़राब होने की वजह से मेरे पेट में बहुत सारा पानी जमा हो जाता है. फिर से बचपन वाली बातें याद आती हैं, आई उस वक़्त भी मेरे लिए परेशान थी और आज भी परेशान है. मैं ड्राइविंग नहीं कर रहा और घर में पैसे भी नहीं आ रहे. मेरी पत्नी घरों में बर्तन मांज कर कुछ पैसे कमा रही है.

यहां तक का सफ़र बहुत कठिनाई में बीता. सारी जमा-पूंजी बिल भरने और दवाइयां ख़रीदने में लग गयी. मेरे घर में सब पैसे इकट्ठे करने की कोशिश कर रहे हैं. मेरे इलाज में 25 लाख रुपये लगेंगे. इतने पैसे तो मेरे घर में किसी ने सपने में भी नहीं देखे होंगे. मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. मेरी ज़िन्दगी बचाने का यही एक उपाय है. बिना पैसे के डॉक्टर्स भी मेरी सहायता नहीं कर सकते.’

अगर मैं कभी ठीक हो पाया तो अपनी आई को बेइंतहा प्यार दूंगा. उसने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. अगर सब ठीक रहा तो मैं एक ट्रैवल एजेंसी भी खोलने की सोच रहा हूं. जब तक मेरे लिए डोनर की खोज चल रही है, आशा करता हूं कि मेरा Liver मेरा साथ दे. सबसे ज़्यादा ज़रूरत अभी पैसों की है, काश की पैसे इकट्ठे हो जाएं.

Humans Of Bombay, फ़ेसबुक पेज ने प्रवीण की कहानी शेयर की और एक Fund Raiser कैंपेन शुरू किया है.

इस पोस्ट को देखकर लोग प्रवीण की मदद के लिए आगे आए. 11 जनवरी को शाम से लेकर 13 जनवरी तक 17 लाख से ज़्यादा रुपये तक जमा हो गए हैं.

लेकिन अभी भी 8 लाख रुपयों की ज़रूरत है. एक मां से उसके बेटे को वक़्त छीनने पर तुला है. इस परिवार की खुशियां लौटाने के लिए देश-विदेश से लोग आगे आ रहे हैं.

हम आपसे गुज़ारिश करते हैं कि अगर आप डोनेट न भी कर सकें तो इस ख़बर को अपने परिवार और दोस्तों से ज़रूर शेयर करें.

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