1857 के विद्रोह से पहले के वो 5 स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने कभी अंग्रेज़ों के आगे घुटने नहीं टेके

J P Gupta

देश को आज़ादी दिलाने में 1857 के विद्रोह की अहम भूमिका थी. एक सैनिक टुकड़ी द्वारा शुरू किए गए इस विद्रोह के बारे में तो हमें पता है, लेकिन इससे पहले भी कई स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ आवाज़ उठाई थी. वो भी इस विद्रोह से पहले. इन्होंने कभी अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया. 

स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले कुछ ऐसे भूले-बिसरे नायकों की कहानी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं. इनकी कहानियां भले ही इतिहास के पन्नों में दर्ज़ न हुई हों, लेकिन ये हमारी लोक कथाओं का आज भी हिस्सा हैं.

1. रानी चेन्नमा 

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रानी चेन्नमा को कर्नाटक की रानी लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है. वो कित्तूर की रानी थीं. उनके पति के देहांत के बाद उन्होंने शिवलिंगप्पा नाम के बेटे को गोद लिया था. लेकिन अंग्रेज़ों की नीयत उनके सम्राज्य पर थी. उन्होंने ‘Doctrine Of Lapse’ के तहत शिवलिंगप्पा को राजा मानने से इंकार कर दिया. इसके बाद रानी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ सशस्त्र विद्रोह छेड़ दिया. 1824 में रानी चेन्नमा और अंग्रेज़ों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें रानी की जीत हुई. मगर बाद में हुए एक युद्ध में उनके ही सैनिकों ने रानी को धोखा दिया. इसके बाद अंग्रेज़ों ने 1829 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया. 21 फरवरी 1829 को अंग्रेज़ों की कैद में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.

2. तवायफ़: स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम सेनानी 

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स्वतंत्रता संग्राम में आम नागरिकों के साथ ही तवायफ़ों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. मगर उनके योगदान को भुला दिया गया. जैसे अज़ीजुनबाई जी को ही देख लीजिए. उन्होंने 1857 के विद्रोह के समय जब ब्रिटिश सैनिक कानपुर की घेराबंदी कर रहे थे तब वो भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर लड़ीं थीं. उन्होंने पुरुषों की तरह कपड़े पहन घोड़े पर सवार होकर तलवार और बंदूकों से अंग्रेज़ सैनिकों का सामना किया था. क्रातिंकारियों की अधिकतर खुफ़िया बैठकें इनके यहीं होती थीं. इसी तरह सैंकड़ों तवायफ़ों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया था.

3. पजहस्सी राजा 

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केरल वर्मा उर्फ़ पजहस्सी राजा कोट्टायम सम्राज्य के राजा थे. उन्हें लोग केरल सिंघम भी कहकर पुकारते थे. उन्होंने अंग्रज़ों के ख़िलाफ कई युद्ध किए थे. वो गुरिल्ला युद्ध करने में माहिर थे. उन्होंने अंग्रेज़ों के साथ 13 साल चले कोटिओट युद्ध में विजय हासिल की थी. इसके बाद वीर वर्मा जो उनके चाचा थे उन्हें राजा बनाया गया. लेकिन अंग्रज़ों ने फिर से कोट्टायम सम्राज्य पर हमला कर दिया. 18 नवंबर 1805 को पजहस्सी राजा अंग्रेज़ों से लड़ते हुए शहीद हो गए.

4. U Tirot Sing Syiemlieh 

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U Tirot Sing Syiemlieh मेघालय की खासी हिल्स के Nongkhlaw क्षेत्र के प्रमुख थे. उन्होंने 1829-1833 में एंग्लो-खासी युद्ध में खासी समुदाय का नेतृत्व किया था. अंग्रज़ों ने ब्रह्मपुत्र घाटी और सुरमा घाटी को जोड़ने के लिए खासी हिल्स से होती हुई एक सड़क बनाने का प्रस्ताव Syiemlieh के पास भेजा. वो मान गए लेकिन अंग्रेज़ों की नीयत ख़राब थी, उन्होंने खासी समुदाय के खिलाफ़ युद्ध छेड़ दिया. 1829-1833 तक वो अंग्रेज़ों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे. मगर एक बार अंग्रेज़ों की गोली उन्हें लग गई. वो घायल अवस्था में पहाड़ियों में छुपे थे. उनके एक साथी ने धोखा देकर उन्हें पकड़वा दिया. इसके बाद ब्रिटिश सैनिक उन्हें ढाका ले गए, जहां 17 जुलाई 1835 को उनकी मृत्यु हो गई.

5. रानी लक्ष्मीबाई 

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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जिन्हें लोग मणिकर्णिका के नाम से भी जानते हैं, वो भी अंग्रेज़ों की ‘Doctrine Of Lapse’ नीती का शिकार हुई थीं. अंग्रेज़ों ने उनक दत्तक पुत्र दामोदर राव को भी झांसी का राजा मानने से इंकार कर दिया था. इसके बाद उन्होंने अंग्रज़ों के ख़िलाफ युद्ध छेड़ दिया. 1857 के विद्रोह में झांसी की रानी का भी योगदान था. 1858 में ब्रिटिश सैनिकों ने झांसी पर हमला कर दिया. इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे के साथ काल्पी चली गईं. उन्होंने यहां तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेज़ों का सामना किया. इसके बाद उन्होंने ग्वालियर पर फ़तेह हासिल की. 1858 की कोटा की सराय में हुए युद्ध में वो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ लड़ती हुई शहीद हो गईं.

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