भगवान विष्णु से भी अधिक फलदायी होता है उनके स्वरूप शालीग्राम की पूजा करना

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सनातन धर्म में ईश्वर का वास कण-कण में माना गया है. संसार के संहारक शिव को लिंग के रूप में पूजने की व्यवस्था है. उसी तरह संसार के पालनकर्ता विष्णु को शालीग्राम रूप में पूजा जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो विष्णु का पूजन जिस विशेष पत्थर के रूप में होता है, उसे शालीग्राम के नाम से जाना जाता है. विशेष रूप से यह काले रंग का चिकना पत्थर होता है. जिसे भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है.

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शालीग्राम के पत्थर मुख्य रूप से नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी में पाए जाते हैं. इस नदी को तुलसी का रूप भी माना जाता है. इस नदी को नारायणी नदी भी कहा जाता है. यह मध्य नेपाल में बहते हुए उत्तर भारत में प्रवेश करती है. सोनपुर और हाजीपुर में जाकर यह गंगा में मिल जाती है.

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यह ख़ासतौर पर काले रंग में पाया जाता है. लेकिन सफेद, नीले और ज्योति स्वरुप में भी यह मिल जाते हैं. सम्पूर्ण शालीग्राम में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र बना होता है.

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शालीग्राम मुख्य रूप से वैष्णव भक्त अपने घर में रखते हैं. इसके साथ भगवान विष्णु और कृष्ण भगवान के मन्दिरों में भी प्राण प्रतिष्ठा और दैनिक पूजा में इनका उपयोग किया जाता है.

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पूजा करते समय यदि आप शालीग्राम के ऊपर तुलसी के पत्ते अर्पित करते हैं, तो भगवान विष्णु शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं.

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अलग-अलग आकारों में विष्णु के अलग-अलग अवतार माने जाते हैं. यदि शालीग्राम गोल आकार में होता है, तो उसे भगवान कृष्ण के अवतार के रूप में पूजा जाता है. यदि शालीग्राम मछली के आकार में हुआ, तो इसे मत्स्य शालीग्राम कहा जाता है. जो शालीग्राम कछुए के आकार का होता है, उसे भगवान विष्णु के कछुआ रूप कुर्म अवतार के रूप में माना जाता है. इस तरह कई प्रकार के अनेक शालीग्राम पाए जाते हैं.

शालीग्राम की पूजा से जुड़ी जानकारी और इसके फायदे-

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पूजा के नियम नियम-

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सनातन धर्म में जीवन से जुड़े हुए अनेक पहलुओं में आस्था के साथ वैज्ञानिक पक्ष भी रखे जाते हैं. शालीग्राम एक जीवाश्म पत्थर होता हैं, अत: इसके कई फायदें वैज्ञानिक तौर पर भी है. आस्था और विज्ञान का संगम ही मनुष्य जीवन को बेहतर बनाता है.

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