आख़िर कौन था सुल्ताना डाकू, जिसकी हर एक चाल से ख़ौफ़ खाते थे अंग्रेज़?

Maahi

ब्रिटिश काल में हिन्दुस्तानियों पर होने वाले जुल्म से इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं. हमारे ही देश में रहकर अंग्रेज़ हम भारतीयों को अपने जूतों की नोंक पर रखा करते थे. हालांकि, कुछ क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ों का ये ज़ुल्म ज़रा भी पसंद नहीं था. यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आज़ादी का बिगुल फूंक दिया था.   

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अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए उस दौर में क्रांतिकारियों अलग-अलग तरीके अपनाए. इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक ‘सुल्ताना डाकू’ भी था. देश की आज़ादी के लिए इनका मिशन सबसे अलग था. भले ही सुल्ताना डाकू के नाम से आपको लग रहा होगा कि वो ज़रूर कोई ग़लत काम करते होंगे, लेकिन उनके इस ग़लत काम के पीछे भी एक नेक मक़सद था. 

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कौन था सुल्ताना डाकू? 

सुल्ताना डाकू ख़ुद को महाराणा प्रताप का वंसज मानता था. यही कारण था कि उन्होंने अपने घोड़े का नाम भी चेतक ही रखा हुआ था. वो अंग्रेज़ों व अमीरों के यहां डाका डालता था, परंतु उस पैसे को ग़रीबों में बांट दिया करता था. ब्रिटिश काल के दौरान सुल्ताना डाकू ने अंग्रेज़ों की नाक में दम कर रखा था. अंग्रेज़ उसकी हर एक चाल से ख़ौफ़ खाते थे. देश को आज़ाद कराने वाले शहीदों में सुल्ताना डाकू का नाम भी लिया जाता है. 

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अंग्रेज़ों के अत्याचार से 17 साल की उम्र में बन गया था डाकू 

सुल्ताना डाकू मात्र 17 साल की उम्र में डाकू बन गया था. अंग्रेज़ों की पीड़ा देने वाली नीति और ग़रीबों पर हो रहे अत्याचार और शोषण को देखते हुए उन्होंने ये रास्ता चुना. उसका असल मक़सद ग़रीबों को अंग्रेज़ों के चंगुल से मुक्त कराना था. यही कारण था कि ग़रीबों ने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया था. सुल्ताना डाकू ने लगभग 100 डकैतों को लेकर एक गैंग बना रखा था. 

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सुल्ताना डाकू लूटमार के दौरान अंग्रेज़ों का क़त्ल करने से भी नहीं घबराता था. यही कारण था कि वो अंग्रेज़ों के लिए ख़तरा बन चुका था. इस दौरान रणनीति के तहत सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए एक चतुर अंग्रेज़ अधिकारी को भेजा गया. इसके बाद उसने आधुनिक हथियारों से सुसज्जित 300 लोगों की एक टीम बनाई, जिसमें 50 घुड़सवारों का एक दस्ता भी था. बावजूद इसके उसे इसमें कामयाबी नहीं मिल पायी. इसके बाद ये ज़िम्मेदारी फ़्रेडी यंग नाम के अधिकारी को सौंप दी गयी. 

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इस दौरान सुल्ताना डाकू खड़ग सिंह नाम के एक जमींदार को लूटकर फ़रार हो गया. खड़ग सिंह मदद के बहाने अंग्रेज़ों से जा मिला. इसके बाद फ़्रेडी यंग, जिम कॉर्बेट और खड़ग सिंह ने मिलकर सुल्ताना को ढूंढना शुरू कर दिया. बताया जाता है कि तुलाराम नाम के एक ख़बरी की वजह से सुल्ताना डाकू को गिरफ़्तार कर लिया गया था. 

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सुल्ताना डाकू अब अंग्रेज़ कप्तान फ़्रेडी यंग की गिरफ़्त में था. फ़्रेडी सुल्ताना की दयालुता और ग़रीबों की मदद करने के गुण को भलीभांति जानता था. इसलिए उसने सुल्ताना की सजा को माफ़ करने की मांग भी की, लेकिन वो इसमें सफ़ल नही हो पाया. सुल्ताना नहीं चाहता था कि उसका बेटा भी उसी की तरह डाकू बने. इसलिए फ़्रेडी यंग ने सुल्ताना के बेटे को इंग्लैंड में पढ़ने के लिए भेज दिया. 

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आख़िरकार 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना डाकू व उनके 15 अन्य साथियों आगरा की जेल में फांसी पर लटका दिया गया. जबकि उसे पनाह देने वाले 40 परिवारों को ‘काला पानी की सजा’ दी गई. इस तरह से अंग्रेज़ों ने ग़रीबों के इस मशीहा को भी नहीं बख़्शा. 

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