मेनका गुरुस्वामी, इस नाम को याद कर लीजिए. क्योंकि बहुत जल्द ही ये नाम सामान्य ज्ञान का प्रश्न बन जाएगा. ये वही वकील है, जिसने धारा 377 की लड़ाई लड़ी. मेनका वकीलों की टीम में अकेली महिला वकील थीं. उनकी बहस ने अंग्रेज़ों के समय में बनाये गए असंवेदनशील सेक्शन 377 को ढहा दिया.
मेनका गुरुस्वामी एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. कल कोर्ट में सुनवाई शुरु होने से पहले उन्होंने जो ट्वीट किया था, वो उनकी सालों से चल रही लड़ाई का सार था.
LGBTQIA समुदाय से ताल्लुक रखने वाले IIT की छात्रों की ओर से कोर्ट में खड़ी गुरुस्वामी ने इस तर्क के साथ बहस को ख़त्म किया कि धारा 377 संविधान के अनुछेद 14,15,19 और 21 का उल्लंघन करती है.
मानव विरोधी धारा 377 के तर्कों के ख़िलाफ़ उनके बहसों ने केस तो जीता ही, लोगों का दिल भी जीत लिया.
‘हम कैसे प्यार की अभिवयक्ति को दर्शा सकते हैं, जब हम जानते हैं कि इसे सेक्शन 377 के अंतर्गत गुनाह और हमें गुनेहगार मान लिया जाएगा? माननीय, प्यार की इसी अभियक्ति को संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए, सिर्फ़ शारीरिक संबंधों को नहीं.’
गुरुस्वामी ने अपने शब्दों से केस को सही दिशा प्रदान की और उसकी गंभीरता और महत्ता को विस्तार से रखा.
मेनका गुरुस्वामी ने अपनी वकालत की पढ़ाई ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से पूरी की है. कुछ दिनों तक न्यूयॉर्क की एक लॉ फ़र्म में अपनी सेवा भी दी, साथ ही साथ संयुक्त राष्ट्र मे मानव अधिकार के विषय पर सलाहकार की भूमिका में भी रहीं. मेनका पहली भारतीय महिला हैं, जिनकी तस्वीर ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय के Milner Hall में रखी गई है.
बदलाव के पैरोकार मेनका ने इसलिए अचानक भारत की ओर रुख किया, क्योंकि उनको भारत के संविधान पर भरोसा था.
एक साक्षात्कार में वो कहती हैं:
मेरा दिल संवैधानिक क़ानून में बसता है- भारत के संवैधानिक क़ानून में. मेरी प्रैक्टिस का अधिकांश हिस्सा, वो प्रैक्टिस जिसकी में कद्र करती हूं, वो संवैधानिक अधिकारों के बारे में है.
इस ऐतिहासिक जीत के बाद जब उनसे पूछा गया कि आपके काम का सबसे पसंदीदा हिस्सा क्या है, तो उन्होंने कहा:
न्याय का हिस्सा होना. निर्विवादित रूप से, ऐसे मौके बहुत कम होते हैं, लेकिन जब भी होते हैं उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.
समलैंगिकों के प्रति मौजूद अपने देश में विद्यमान सामाजिक क्रूर भेदभाव के बारे में मेनका का कहना है:
‘LBGT भारतीय भी कोर्ट में, संविधान और देश में में सुरक्षा के अधिकारी हैं’
भारतीय कोर्ट में मौजूद महिलाओं के लिए वो कहती हैं:
भारत में एक महिला और महिला वकील के तौर पर में सोचती हूं कि आपको अपने दिल की सुननी पड़ेगी. क्योंकि आपके आस-पास जो कुछ भी है वो कहता है कि तुम नहीं कर सकती लेकिन समय बदल गया है, चीज़ें बदल गई हैं और युवा महिलाएं भी कोर्टरूम में अपना हिस्सा चाहती हैं.
मेनका गुरुस्वामी जैसी वकील हमें संवैधानिक अधिकार को मतलब समझा रही हैं और हम अपने संवैधानिक हकों के प्रति निष्क्रिय होते जा रहे हैं. ये अधिकार हमें लंबी लड़ाई के बाद मिले हैं और उसे बनाए रखने के लिए हमें रोज़ लड़ना होगा.