अमृता प्रीतम की किताब ‘रसीदी टिकट’ से लेकर आये हैं साहिर-अमृता की प्रेम कहानी का एक अधूरा हिस्सा…

Sumit Gaur

  ख़ूबसूरत राजकुमारी और लक्क्ड़हारा

सिगरेट को ऐश्ट्रै में बुझा कर सोफे पर बैठे-बैठे ही उसने बच्ची को गोद में उठाया और कहा तुम्हें कहानियां सुनना पसंद है?

बच्ची ने बिना देर किये हां में अपना सिर हिलाया.

अच्छा सुनो

‘एक जंगल था, बहुत घना जंगल, इतना घना कि ज़मीन तक धूप की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती थी. उसी जंगल में एक लक्क्ड़हारा दिन-रात लकड़ियां काटा करता था. एक दिन उसने देखा कि एक ख़ूबसूरत-सी राजकुमारी जंगल में घूम रही है. राजकुमारी के आगे-पीछे सिपाहियों का एक कड़ा पहरा है. राजकुमारी ने भी लक्क्ड़हारे को देखा और आंखें फेर के चली गई.

उस दिन के बाद राजकुमारी हर दिन जंगल में आती और लक्क्ड़हारे को देखती और आंखें फेर लेती. लक्क्ड़हारे को भी राजकुमारी का यूं आंखें फेरना पसंद आने लगा और वो अब लकड़ी काटने के बजाय राजकुमारी का इंतज़ार करने लगा. लक्क्ड़हारा चाहता था कि वो राजकुमारी के पास जाए और उसके पास बैठ कर ढेर सारी बातें करे, पर वो डरता था कि राजकुमारी इतनी ख़ूबसूरत और अमीर है और वो इतना ग़रीब.’

इतना कहकर उसने कहानी सुनाना बंद किया और बच्ची से पूछा अच्छा तुम्हें पता है वो राजकुमारी कौन थी?

बच्ची- हां

कहानी सुनाने वाला- कौन?

बच्ची- मम्मी!

और लक्क्ड़हारा?

बच्ची-आप

बच्ची का इतना कहना था कि अमृता की आंखें साहिर पर टिक गई. साहिर ने भी अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और एक सिगरेट अमृता की तरफ़ बढ़ा दी.

रसीदी टिकट से एक अंश.

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