वो भले ही दिव्यांग है पर उसके हौसलों की कहानी हर उस शख़्स के लिए तमाचा है, जो उसे कमज़ोर मानते थे

Ishi Kanodiya

हमारे समाज में दिव्यांग लोगों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. हम उन्हें ‘स्पेशल’ नाम की एक श्रेणी में डाल देते हैं और ऐसे में हम सभी को मानवता दिखाने का मौक़ा मिल जाता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि क्या वो अपने आप को किसी ‘स्पेशल’ श्रेणी में डालने चाहते हैं.

Humans Of Bombay ने शेयर की दिव्यांग नीति पूथरन की कहानी जो बताती है कि लोग विकलांग नहीं होते, मानसिकता विकलांग होती है. 

नीति को जन्म से ही Cerebal Palsy नाम का बीमारी है जिसकी वज़ह से एक समय के बाद उसका दायां पैर और बायां हाथ बढ़ना बंद कर देगा. 

डॉक्टरों ने मेरा पैर तो सही कर दिया था मगर मेरा हाथ सही करने के लिए ऐसी कोई सर्जरी नहीं थी. इसलिए मेरा हाथ जन्म से ही ऐसा है. मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं बाक़ी बच्चों की तरह अपनी ज़िंदगी जियूं. ऐसे में उन्होंने मुझे सामान्य स्कूल में डाला और मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूं.

मगर स्कूल से कॉलेज में आते ही नीति को पता चला कि ये दुनिया कितनी क्रूर है. 

एक बार, जब मैं एक लोकल ट्रेन में यात्रा कर रही थी, तो एक महिला ने मुझे ट्रेन से बाहर धकेल दिया और मुझे दिव्यांगों वाले कोच में जाकर बैठने को कहा. सौभाग्य से ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी थी, इसलिए मुझे चोट नहीं आई लेकिन उस घटना ने मुझे भीतर से मार दिया. 

यही नहीं एक बार कॉलेज में भी नीति पर किसी अंजान व्यक्ति ने आकर थूका और उसे कहा ‘तुम्हें शाप दिया गया है’. इस पर नीति बुरी तरह से हिल गई थी मगर परिवार वालों ने कभी भी उसका हौसला टूटने नहीं दिया. 

मैं लोगों की धारणा को बदल नहीं सकती थी लेकिन मैं अपने जैसे दूसरों की मदद कर सकती थी. मैं एक NGO के संपर्क में आई जो दिव्यांगों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने की दिशा में काम करता है और वहां मैंने काम करना शुरू किया. 

वहां काम करने पर नीति को एहसास हुआ कि वो अकेली नहीं हैं. NGO में आ रहे लोगों ने भी नीति के काम को सरहाना शुरू किया. 

हाल ही में नीति ने शादी भी की है जिसपर वो कहती हैं कि दुनिया में नफ़रत है, तो प्यार भी और प्यार हमेशा जीतता है.   

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